हैदराबाद: देश में लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा होने में महज कुछ समय ही बाकी है. ऐसे में सभी राजनीतिक दल इलेक्शन की तैयारियों में जुट गए हैं. वहीं, दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के बाद शुरू हुआ सियासी संकट जगजाहिर है. राज्य में आई अनिश्चितता ने एक विकट स्थिति पैदा कर दी है. प्रदेश इकाई को भांपने में नाकाम रही कांग्रेस असहाय सी दिख रही है तो वहीं अन्य राज्यों में भी स्थिति अनूकूल नहीं है.
ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस पार्टी खत्म होने की कगार पर है. भले ही लोग इसके लिए वोट करना चाहें, लेकिन यह आत्म-विनाशकारी तरीके से व्यवहार करता है, जिससे लोगों के लिए इसका समर्थन करना दिन-ब-दिन कठिन होता जाता है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि पार्टी अंतर्कलह से संकट की ओर बढ़ रही है. पिछले सप्ताह राज्यसभा के लिए हुए द्विवार्षिक चुनाव को ही ले लीजिए. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को पूरी तरह अपमानित होना पड़ा, जब उसके 6 विधायकों ने पार्टी व्हिप के खिलाफ मतदान किया. इससे पार्टी उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी की हार हुई. उत्तर प्रदेश में, इसकी मुख्य सहयोगी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की एक या दो लोकसभा सीटें जीतने की एकमात्र उम्मीद को उस समय करारा झटका लगा, जब पार्टी के कुछ आधा दर्जन विधायकों ने पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ मतदान किया, जिससे भाजपा को एक अतिरिक्त सीट मिल गई.
हिमाचल प्रदेश में पार्टी की स्थिति तो काफी दयनीय हो गई है. इतनी बुरी हार को आसानी से रोका जा सकता था. लेकिन पार्टी के मामलों में ऐसी अव्यवस्था है कि जब हिमाचल प्रदेश के एक वरिष्ठ नेता ने पूर्व चेतावनी दी, तब भी पार्टी आलाकमान ने चीजों को सुचारू करने के लिए कुछ नहीं किया. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा, जो हाल तक राज्यसभा के सदस्य थे और एक और कार्यकाल के इच्छुक थे, ने हिमाचल प्रदेश से एक बाहरी व्यक्ति के नामांकन पर विरोध जताया. शर्मा ने सिंघवी के नामांकन के खिलाफ पार्टी विधायकों में बेचैनी को जाहिर करते हुए कहा कि इससे पहले कभी भी हिमाचल प्रदेश कांग्रेस को राज्य से किसी बाहरी व्यक्ति को चुनने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ा था.
शिमला में यह सार्वजनिक रहस्य था कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को कांग्रेस विधायक दल में असंतोष का सामना करना पड़ा. चौदह महीने पहले जब उन्हें पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री पद के लिए नामित किया था, तो विधायकों के एक वर्ग ने अपना विरोध दर्ज कराया था. क्योंकि, वे चाहते थे कि या तो प्रदेश कांग्रेस प्रमुख और छह बार के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह या उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह को मुख्यमंत्री बनाया जाए. सुक्खू के पक्ष में हाईकमान ने उन्हें ठुकरा दिया.
नतीजतन, सुक्खू को सीएम पद की शपथ लेने के बाद से ही सीएलपी में असंतोष से जूझना पड़ा. जब असंतुष्टों को विरोध दर्ज कराने का मौका मिला तो उन्होंने हमला बोल दिया. पार्टी के 6 विधायकों ने पार्टी व्हिप का उल्लंघन करते हुए सिंघवी के खिलाफ मतदान किया. पूर्व कांग्रेसी हर्ष महाजन और हाल ही में भाजपा में शामिल हुए सिंघवी को 34-34 वोट मिले. विजेता का फैसला नामों के ड्रा से हुआ. चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित अजीब विधि में, जिसने भी बॉक्स से नाम निकाला, वह चुनाव हार गया. जबकि जिसकी चिट अभी भी बॉक्स में बची थी, वह विजयी हुआ. सिंघवी ने अपने नाम की चिट उठाई और चुनाव हार गए.
68 सदस्यीय हिमाचल प्रदेश विधानसभा में, सत्तारूढ़ दल के 40 सदस्य थे, विपक्षी भाजपा के 25 जबकि तीन निर्दलीय थे. 6 कांग्रेस सदस्यों ने पार्टी व्हिप का उल्लंघन किया और तीन निर्दलियों के साथ भाजपा उम्मीदवार को वोट दिया, इस तरह प्रत्येक उम्मीदवार के वोट 34 हो गए.
अब सुक्खू सरकार लड़खड़ाने की कगार पर थी. चुनाव के एक दिन बाद जब विधानसभा की बैठक हुई तो 15 भाजपा विधायकों को निलंबित कर दिया गया और बजट ध्वनि मत से पारित हो गया. सभा आनन-फानन में स्थगित कर दी गई. पार्टी में संकट को रोकने के लिए केंद्रीय पर्यवेक्षकों के एक समूह को शिमला भेजा गया. विधानसभा अध्यक्ष ने एक प्रस्ताव पर क्रॉस वोटिंग करने वाले 6 कांग्रेस विधायकों को निष्कासित कर दिया. बाद वाले ने निष्कासन के लिए निर्धारित प्रक्रिया में कमी के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया और उन्हें स्टे मिलने की उम्मीद है. प्रतिभा सिंह के बेटे और पीडब्ल्यूडी मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने नाराजगी जताते हुए सरकार से इस्तीफे की घोषणा कर दी. विक्रमादित्य कहा कि वह अपमानित महसूस कर रहे हैं, सीएम ने उन्हें काम नहीं करने दिया.