हैदराबाद:वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो कचरे से बेहतर प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं. बिजली को स्टोर करने वाले सुपरकैपेसिटर में निगेटिव इलेक्ट्रोड को वेस्ट (अपशिष्ट) चिकन की चर्बी का इस्तेमाल करके विकसित किया गया है. वैज्ञानिकों के इस इन्वेंशन ने शानदार प्रदर्शन किया है. इस इन्वेंशन से हमारे पर्यावरण को फायदा पहुंचेगा साथ ही ग्रीन फ्यूल स्टोरेज को हम काफी कम समय में बढ़ा सकते हैं.
क्या होता है ग्रीन हाइड्रोजन
हाइड्रोजन नेचुरल तरीकों से पाए जाने वाला बेहद आम तत्व है, जो अन्य तत्वों के साथ मौजूद होता है. इसे नेचुरल तौर पर पाए जाने वाले कंपाउंड जैसे पानी से निकाला जाता है. हाइड्रोजन मॉलिक्यूल के इस उत्पादन की प्रक्रिया ऊर्जा लेती है. हाइड्रोजन बनाने की यह प्रक्रिया इलक्ट्रोलाइसिस कहलाती है. पानी के मामले में रिन्यूएबल एनर्जी (जैसे हवा, पानी या सोलर नर्जी ) का उपयोग करके पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़कर हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है. उसे ही ग्रीन एनर्जी कहा जाता है.
पर्यावरण के अनुकूल बिजली उत्पादन ने हाल ही में प्रदूषण को कम करने में अहम भूमिका निभाई है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुमान के मुताबिक, 2022 की तुलना में पिछले साल दुनिया भर में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, यह एक अप्रत्याशित विकास है. दुनिया को असली फायदा तभी होगा जब इन ग्रीन सिस्टम में पैदा होने वाली अतिरिक्त बिजली को स्टोर किया जा सके. उदाहरण के लिए, अमेरिका के कैलिफोर्निया में घरों की छतों पर सोलर पैनल लगाए गए हैं. इसकी वजह से उन दिनों बिजली उत्पादन में उछाल आया, जब सोलर लाइट ज्यादा उपलब्ध थी और बिजली की कीमतों में भारी गिरावट आई थी.
इस संदर्भ में, ग्रीन सिस्टम में पैदा होने वाली बिजली को स्टोर करने वाले कैपेसिटर की मांग बढ़ गई है. वर्तमान में, उच्च दक्षता वाले ऊर्जा भंडारण उपकरण कार्बनिक पदार्थों जैसे कि ग्रेफीन से बनाए जा रहे हैं, जो प्रकृति में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. हालांकि, इन कार्बनिक पदार्थों से सुपरकैपेसिटर के घटकों का निर्माण एक महंगा मामला है. ये हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं. वे प्रदूषण भी पैदा करते हैं. इस पृष्ठभूमि में, सस्ते और पर्यावरण के अनुकूल सुपरकैपेसिटर डिजाइन करने की आवश्यकता है.