नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराधों से उत्पन्न आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की याचिका पर विचार करने से पहले अदालत को पीड़ित और आरोपी के बीच वास्तविक समझौते के अस्तित्व से पूरी तरह संतुष्ट होना चाहिए.
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, "कथित अपराध बहुत गंभीर थे. कथित अपराध आईपीसी की धारा 376(2)(N) और अत्याचार अधिनियम के तहत थे... हाई कोर्ट को खुद को संतुष्ट करना चाहिए कि पीड़ित और आरोपी के बीच वास्तविक समझौता है."
पीठ ने कहा कि जब तक अदालत वास्तविक समझौते के अस्तित्व से संतुष्ट नहीं हो जाती, तब तक याचिका को रद्द करने की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ सकती. पीठ ने कहा कि अगर अदालत वास्तविक समझौते के अस्तित्व से संतुष्ट है, तो विचार करने योग्य दूसरा सवाल यह है कि क्या मामले के तथ्यों के आधार पर, याचिका को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग किया जाना उचित है.
शीर्ष अदालत ने 5 नवंबर को पारित आदेश में कहा, "भले ही समझौता स्वीकार करने वाली पीड़िता का हलफनामा रिकॉर्ड में हो, लेकिन गंभीर अपराधों और विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ मामलों में, पीड़िता की व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थिति सुनिश्चित करना हमेशा उचित होता है, ताकि अदालत ठीक से जांच कर सके कि क्या वास्तविक समझौता हुआ है और पीड़िता की कोई शिकायत नहीं है."
शीर्ष अदालत ने गुजरात हाई कोर्ट के 29 सितंबर, 2023 के आदेश के खिलाफ दुष्कर्म पीड़ित महिला की याचिका को स्वीकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं. पीड़ित महिला की पैरवी करने वाले वकील ने दलील दी कि उनकी मुवक्किल अशिक्षित हैं और उन्हें विषय-वस्तु के बारे में बताए बिना ही संदिग्ध परिस्थितियों में टाइप किए गए हलफनामों पर अंगूठे के निशान लिए गए हैं.
हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा 376(2)(N) और 506 तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(R), 3(1)(W) और 3(2)(5) के तहत महिला द्वारा अपने मालिक (नौकरी पर रखने वाला) के खिलाफ दर्ज की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया था. हाई कोर्ट ने आरोपी द्वारा महिला के पति को तीन लाख रुपये का भुगतान और समझौते के आधार पर दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया था.