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उन्नाव बस हादसा: जांच रिपोर्ट में कई अधिकारी फंसे, फिर भी एक अफसर पर ही एक्शन, बाकी को अभयदान - Unnao Bus Accident - UNNAO BUS ACCIDENT

उन्नाव जिले में बस हादसे में 18 लोगों की मौत हो गई थी. हादसे के बाद गठित टीम ने जांच रिपोर्ट पेश कर दी है, जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. हालांकि इस मामले में फंस रहे कई अधिकारियों को बचा लिया गया है.

उन्नाव बस हादसा.
उन्नाव बस हादसा. (Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 16, 2024, 8:11 PM IST

लखनऊः उन्नाव में जिस बस हादसे में 18 लोगों की जान चली गई, उसमें परिवहन विभाग की तरफ से एक अधिकारी पर कार्रवाई कर तमाम जिम्मेदार को बचा लिया गया है. गोरखपुर के तत्कालीन यात्री कर अधिकारी रविचंद्र त्यागी को इस तर्क के साथ सस्पेंड कर दिया गया कि उन्होंने सात बार इस बस का चालान किया था, लेकिन बस सीज नहीं की. अगर वे बस सीज कर देते तो हो सकता है कि इतने लोगों की जान ही नहीं जाती. अब सवाल यह भी उठता है कि यही बस अगर रजिस्टर्ड ही नहीं होती तो इतने लोगों की जान बच सकती थी. मानकों की अनदेखी कर इस बस को महोबा एआरटीओ कार्यालय में दर्ज कर लिया गया था.


एआईएस 119 कोड पर नहीं थी बस की बॉडी फिर भी हुआ पंजीकरण
हादसे के बाद गठित की गई तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि कोड एआईएस 119 पर स्लीपर बस बॉडी बनी ही नहीं थी. बावजूद इसके बस संख्या यूपी 95 टी 4729 का रजिस्ट्रेशन किया गया. यह कोड स्लीपर बसों की बॉडी के लिए मानक है. इसी मानक पर बनने वाली बसों का ही रजिस्ट्रेशन मान्य है. लेकिन महोबा में इस कोड पर बस तैयार भी नहीं हुई थी, बावजूद इसके पंजीकृत कर ली गई. बस पंजीकृत करने वाले तत्कालीन एआरटीओ महेंद्र प्रताप सिंह पर दिखावे की कार्रवाई कर उन्हें बचा लिया गया. सिर्फ एक महीने का वेतन वृद्धि रोक कर सीनियर अफसरों ने अभयदान दे दिया है.


दर्जन भर और अफसरों ने किया चालान, फिर भी नहीं हुआ एक्शन
गोरखपुर के यात्री कर अधिकारी रहते समय रविचंद्र त्यागी ने इस बस का आखिरी चालान 21 दिसंबर 2022 को किया था. यह उनकी तरफ से इस बस का सातवां और आखिरी चालान था. बस सीज कर उन्होंने दो किलोमीटर दूर थाने में नहीं बंद कराई. यही तर्क परिवहन विभाग के अधिकारियों ने लेकर पीटीओ को सस्पेंड कर दिया. जबकि इस तारीख के बाद इस बस के 18 और चालान हुए. लेटेस्ट चालान मार्च अप्रैल 2024 को हुआ, लेकिन इन जिम्मेदारों पर परिवहन विभाग की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई. कुल मिलाकर इस स्लीपर बस के 81 चालान हुए और एक या दो छोड़कर सभी पेंडिंग हैं.

अधिकतर जिलों में हुए चालान, नहीं हुई जुर्माने की भरपाई
बस का चालान 26 अगस्त 2021 को उन्नाव में हुआ और 35,500 का जुर्माना लगाया गया. 6 अगस्त 2021 को गाजियाबाद में बस का चालान कर 24,400 का जुर्माना लगाया गया. 18 अक्टूबर 2021 को बस्ती में चालान कर 28,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया. चाएक जनवरी 2022 को गोरखपुर के परिक्षेत्र में अधिकारी अरुण कुमार ने 1,66,500 रुपए का जुर्माना लगाया. 18 जून 2022 को फिरोजाबाद में सुरेश चंद्र यादव ने इस बस का चालान कर 16,000 रुपए का जुर्माना लगाया. 23 मार्च 2024 को बस्ती में फिर इस बस का चालान हुआ और 43,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया. इसी साल 28 फरवरी को फिरोजाबाद में बस का चालान कर 32,500 रुपए का जुर्माना लगाया गया. 17 फरवरी को इसी साल ट्रैफिक की तरफ से 12,000 का चालान किया गया.11 दिसंबर 2023 को बस का चालान अयोध्या में कर 40500 रुपए का जुर्माना लगाया गया था. 12 नवंबर 2023 को गोरखपुर के अधिकारी वीके आनंद ने इस बस का 2300 रुपए का चालान किया था. 16 अक्टूबर 2023 को सुल्तानपुर में इस बस को पकड़ा गया था और 10,500 रुपए का जुर्माना लगाया गया था. इन सभी के चालान पेंडिंग हैं. वहीं, मथुरा में आठ नवंबर 2023 को इस बस का चालान अधिकारी मनोज प्रसाद वर्मा ने किया और 46,500 रुपए का जुर्माना लगाया था, जिसे बस मालिक ने चुकता कर दिया था.

लखनऊ में भी हुए तीन चालान, सिर्फ एक बार जुर्माना भरा
20 जुलाई 2022 को लखनऊ आरटीओ में तैनात पीटीओ आभा त्रिपाठी ने इस बस का चालान किया 55, 500 का जुर्माना लगाया. बस मालिक ने जुर्माने की भरपाई की. सूत्र बताते हैं कि इस बस को थाने में बंद भी कराया गया था, लेकिन बाद में से छूट गई. 24 नवंबर 2023 को लखनऊ में पीटीओ मनोज कुमार ने इस बस का चालान किया और 11,000 रुपए का जुर्माना लगाया था. 29 फरवरी को यात्री कर अधिकारी मनोज कुमार भारद्वाज ने इस बस का चालान कर 22,725 रुपए का जुर्माना लगाया. दोनों चालान पेंडिंग है.

एक पर एक्शन, दर्जनों को छूट पर उठे सवाल
परिवहन आयुक्त चंद्र भूषण सिंह की तरफ से सिर्फ एक यात्री कर अधिकारी को इस मामले में निलंबित करने के बाद कार्रवाई पर ही सवाल उठने लगे हैं. परिवहन विभाग के अधिकारियों में ही चर्चा है कि 21 दिसंबर 2022 के बाद इसी साल के मार्च अप्रैल माह तक इस बस के कुल 18 चालान अलग-अलग जिलों में अलग-अलग अधिकारियों ने किया, तो इन अधिकारियों को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया गया? इन पर कार्रवाई का चाबुक क्यों नहीं चला. सवाल यह भी है कि उन्नाव में जहां यह बस हादसे का शिकार हुई, वहां के प्रवर्तन अधिकारियों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

जिस फर्म के नाम पर इस बस समेत कई बसें दर्ज हो रही थीं, उसका नाम मेसर्स केसी जैन ट्रेवल्स के नाम से फाइनेंस कर अपने नाम से लेकर राजस्थान के जोधपुर से लेकर बिहार से होते हुए उत्तर प्रदेश और दिल्ली तक संचालन करता है. बस कोड एआईएस 119 पर इस स्लीपर बस की बॉडी नहीं बनी थी, फिर भी तत्कालीन एआरटीओ महेंद्र प्रताप सिंह ने इस बस को रजिस्टर्ड किया था. जांच करने के बाद मुख्यालय को रिपोर्ट भेज दी गई थी, जिसके बाद उनकी एक माह की वेतन वृद्धि रोक दी गई. उदयवीर सिंह, आरटीओ बांदा

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