मुंबई:महाराष्ट्र की वर्तमान खंडित राजनीति राजनीतिक पंडितों के लिए बुरा ख्वाब हो सकती है, लेकिन राज्य ने पिछले लगभग तीस साल से एक पार्टी का शासन नहीं देखा है. 1995 के बाद से राज्य में केवल गठबंधनों ने ही शासन किया है, हालांकि पिछले पांच साल में यहां असाधारण गठबंधन देखने को मिले हैं, जहां पूर्व सहयोगी कट्टर दुश्मन बन गए और कट्टर दुश्मन दोस्त बन गए.
राज्य में आखिरी बार एकदलीय सरकार 1990 में बनी थी, जब कांग्रेस ने 288 सदस्यीय विधानसभा में 141 सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी थी. हालांकि, वह साधारण बहुमत से चूक गई थी. उस वक्त भाजपा ने 42 और शिवसेना ने 52 सीटें जीती थीं. वहीं, राज्य में गठबंधन युग की शुरुआत 1995 में हुई थी, जब शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने ग्रैंड ओल्ड पार्टी के वर्चस्व को खत्म कर सरकार बनाई थी.
1978 में पहली बार गठबंधन
वैसे राज्य के इतिहास में यह पहली गठबंधन सरकार नहीं थी. महाराष्ट्र में पहला गठबंधन 1978 में सत्ता में आया था, जब कांग्रेस के दो इमरजेंसी के बाद के गुटों कांग्रेस (O) और कांग्रेस (इंदिरा) ने मिलकर सरकार बनाई थी.
हालांकि, बाद में इस सरकार में शामिल शरद पवार ने सरकार को गिरा दिया और कांग्रेस से अलग हुए एक गुट, जनता पार्टी और कुछ अन्य विपक्षी दलों के विधायकों के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए. इंदिरा गांधी ने केंद्र में सत्ता में वापस आने के बाद इस सरकार को बर्खास्त कर दिया.
1978 तक कांग्रेस का गढ़ रहा महाराष्ट्र
1978 तक महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ रहा था. राज्य के गठन के बाद 1962 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस 264 में से 215 सीटें जीतकर सत्ता में आई थी. 1972 में उसने 270 में से 222 सीटें जीती थीं. गौरतलब है कि बाल ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना ने 1972 में एक सीट जीतकर अपनी शुरुआत की थी.
1980 में, 'इंदिरा कांग्रेस' 186 सीटें जीतकर सत्ता में लौटी. महाराष्ट्र से कांग्रेस का वर्चस्व 1995 में उस समय समाप्त हो गया, जब शिवसेना-भाजपा गठबंधन 45 कांग्रेसी बागियों के साथ सत्ता में आया, जिन्होंने भगवा शासन का समर्थन करते हुए निर्दलीय के रूप में जीत हासिल की थी.
कांग्रेस और एनसीपी ने बनाई सरकार
1999 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस में विभाजन और शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के गठन की पृष्ठभूमि में हुए. कांग्रेस फिर भी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जबकि एनसीपी ने 58 सीटें जीतीं. सत्तारूढ़ शिवसेना और भाजपा ने क्रमशः 69 और 56 सीटें जीतीं और सत्ता गंवा दी. इस बार कांग्रेस और एनसीपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, लेकिन सरकार बनाने के लिए साथ आए. इस गठबंधन ने अगले 15 साल तक शासन किया.
2014 में चारों दलों ने अलग-अलग लड़ा चुनाव
वहीं, 2014 में, चारों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. भाजपा को 122 सीटें, शिवसेना को 63, कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटें मिलीं. इस तरह देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई में भाजपा-शिवसेना ने सरकार बनाई.
2019 में भाजपा और शिवसेना ने साथ लड़ा चुनाव
2019 में भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा. इस बार भाजपा ने 105 और शिवसेना ने 56 सीटें जीती थीं, गठबंधन सत्ता में बने रहने के लिए तैयार था, लेकिन जब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सेना ने मुख्यमंत्री पद पर जोर दिया तो यह अलायंस टूट गया.
इसके बाद देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा ने अजित पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट के साथ सरकार बनाकर सबको चौंका दिया, लेकिन संख्याबल की कमी के कारण यह तीन दिन में ही गिर गई. इसके बाद शिवसेना ने अकल्पनीय काम किया और धुर विरोधी कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाकर महा विकास अघाड़ी की सरकार बना ली.
2019 के चुनावों में कांग्रेस ने 44 और एनसीपी ने 54 सीटें जीती थीं. उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली यह सरकार जून 2022 तक चली. इसे शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने बगावत कर गिरा दिया. शिंदे ने शिवसेना को तोड़ दिया और सरकार बनाने के लिए भाजपा से हाथ मिला लिया.
एक साल बाद, अजित पवार ने एनसीपी को तोड़ दिया और 'महायुति' सरकार में शामिल हो गए. अजित पवार और शिंदे दोनों गुटों को उनकी विधायी ताकत के आधार पर असली राजनीतिक दल के रूप में मान्यता दी गई. तब से, राज्य में अभूतपूर्व स्थिति है, जहां छह प्रमुख राजनीतिक दल हैं और प्रत्येक पक्ष में तीन-तीन दल शामिल हैं.
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