कच्छ:26 जनवरी 2001, वो दिन जब गुजरात के भुज में आए विनाशकारी भूकंप ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. 7.6 तीव्रता के इस शक्तिशाली भूकंप ने भुज शहर को पूरी तरह से तबाह कर दिया था. हजारों इमारतें मलबे में तब्दील हो गईं थीं और लगभग 15 हजार लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी. इस त्रासदी के 24 साल बाद भी उस दिन की भयावहता लोगों के दिलों में जिंदा है.
भूकंप के चार दिन बाद भी मलबे से लाशें निकालने का सिलसिला जारी था. इन्हीं मलबों के बीच, बचावकर्मी जीवन की तलाश में जुटे थे. तभी एक तीन मंजिला इमारत के मलबे से एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी. कंक्रीट के ढेर के नीचे आठ महीने का एक बच्चा दबा हुआ था. घंटों की मशक्कत के बाद, बचावकर्मियों ने उस बच्चे को जिंदा बाहर निकाला. चार दिनों तक मलबे में फंसे रहने के कारण, बच्चे के सिर, माथे, गाल और पीठ पर गहरे घाव थे. उसे तुरंत भुज के जुबली ग्राउंड स्थित भारतीय सेना कैंप अस्पताल ले जाया गया, जहां से उसे बेहतर इलाज के लिए मुंबई के लीलावती अस्पताल रेफर कर दिया गया.
उस आठ महीने के बच्चे का नाम था मुर्तजा अली वेजलानी, जिसे अब 'लकी अली' के नाम से जाना जाता है. मुर्तजा का लीलावती अस्पताल में 21 दिनों तक इलाज चला, जिस पर 3,79,674 रुपये का खर्च आया. आज तक यह पता नहीं चल पाया कि इस खर्च का भुगतान किसने किया. इतनी कम उम्र में, भयानक भूकंप के मलबे में इतने दिनों तक जिंदा रहना और सफलतापूर्वक बचाया जाना, किसी चमत्कार से कम नहीं था.