कन्याकुमारी: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नए चेयरमैन वी. नारायणन ने हाल ही में पदभार संभालने के बाद रविवार को पहली बार तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में अपने गृहनगर का दौरा किया. नागरकोइल के सरकारी गेस्ट हाउस पहुंचने पर उन्हें पुलिस गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. इस अवसर पर अन्य अधिकारियों और पदाधिकारियों ने भी गुलदस्ता भेंट कर उनका स्वागत किया. कई अन्य गणमान्य लोगों ने भी उनसे मुलाकात की और उन्हें बधाई दी.
अपने पैतृक गांव मेलकट्टुविलई जाने से पहले, इसरो चेयरमैन नारायणन ने नागरकोइल सरकारी गेस्ट हाउस में ईटीवी भारत के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में विभिन्न विषयों पर चर्चा की.
सवाल: आप एक साधारण परिवार से हैं और इसरो के अध्यक्ष बने. आज के छात्रों को आप क्या बताना चाहेंगे?
जवाब: मैंने एक साधारण गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. उसके बाद, मैंने अपना डिप्लोमा पूरा किया और इसरो में शामिल हो गया. कल, मैंने इसरो में 41 साल की सेवा पूरी की. मेरे जैसे कई वैज्ञानिक साधारण परिवारों से आते हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस गांव से हैं; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस स्कूल में पढ़ते हैं. मायने यह रखता है कि हम कैसे पढ़ते हैं.
अगर कोई युवा सफल होना चाहता है, तो सिर्फ पढ़ाई ही महत्वपूर्ण नहीं है. उन्हें एक अच्छे दिल के साथ बड़ा होना चाहिए जो हर तरह से दूसरों की सेवा कर सके. कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. मेहनत भी जरूरी है; हमें अपने देश के लोगों के लिए जो करना है, उसे करने के लिए खुले दिमाग से काम करना चाहिए.
सवाल: इसरो में नौकरी के अवसरों के बारे में बताइए? युवाओं को उस नौकरी को पाने के लिए किस तरह की तैयारी करनी चाहिए?
जवाब: जरूरी नहीं है कि आप सिर्फ इसरो में ही काम करें. इसरो से जुड़ी कई निजी कंपनियों में युवाओं के लिए कई नौकरियां हैं. कई निजी कंपनियां सैटेलाइट इंजन वगैरह बनाती हैं. युवाओं को ऐसी नौकरियों का भी लाभ उठाना चाहिए. इसरो से सीधे जुड़ना अच्छी बात है. अगर ऐसा नहीं होता है तो आप दूसरी कंपनियों से जुड़ सकते हैं.
सवाल: इसरो में लंबे कार्य अनुभव के बाद आप अपने काम में क्या उपलब्धि मानते हैं?
जवाब: मैं सिर्फ एक विशिष्ट उपलब्धि के बारे में नहीं बता सकता. इसरो की उपलब्धियों का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता. यह सामूहिक प्रयास की सफलता है. इसरो में 20,000 कर्मचारी काम करते हैं. मैं इसरो की उपलब्धियों को उन सभी की उपलब्धियों के रूप में देखता हूं.
1962 से अब तक हमने छह तरह के रॉकेट विकसित किए हैं. हमने अलग-अलग तकनीकों से अलग-अलग तरीके से 131 सैटेलाइट तैयार किए हैं. ये सभी किसी एक व्यक्ति की सफलता नहीं कही जा सकती. ये इसरो के 20,000 कर्मचारियों की सफलता है.
हम हर दिन एक चुनौतीपूर्ण कार्य कर रहे हैं. हमने 40 साल पहले एक छोटा रॉकेट डिजाइन किया था. उस समय इसे एक उपलब्धि माना जाता था. जब हमने क्रायोजेनिक इंजन तकनीक का उपयोग करके रॉकेट लॉन्च करने की कोशिश की, तो एक छोटे से परीक्षण में एक छोटी सी चिंगारी भी हमारे लिए उपलब्धि मानी जाती थी.
सवाल: जिन देशों ने हमें क्रायोजेनिक इंजन तकनीक सिखाने से इनकार कर दिया, वे भारत को किस तरह सम्मान देते हैं?