हैदराबाद : जलवायु परिवर्तन से जूझ रही दुनिया में, स्वच्छ ऊर्जा उत्सर्जन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. विश्वसनीय बिजली स्रोतों तक पहुंच की कमी वाले समुदायों को भी लाभ पहुंचा सकती है. आज भी 67.5 करोड़ (675 मिलियन) लोग अंधेरे में रहते हैं. 5 में से 4 लोग सब-सहारा अफ्रीका से हैं.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार कोयला, तेल और गैस (जीवाश्म ईंधन) लगभग 90 फीसदी वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए 2030 तक उत्सर्जन में लगभग आधी कटौती करने और 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन करने का लक्ष्य है. जीवाश्म ईंधन अभी भी वैश्विक ऊर्जा उत्पादन पर हावी है, लेकिन पवन, सौर, पनबिजली और भूतापीय जैसे ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत अब दुनिया भर में लगभग 29 फीसदी बिजली पैदा करते हैं.
स्वच्छ ऊर्जा पहुंच के बिना आबादी के लिए, विश्वसनीय बिजली की कमी शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और आर्थिक अवसरों में बाधा डालती है. इनमें से कई विकासशील क्षेत्र अभी भी अपने दैनिक जीवन के लिए प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन पर भारी निर्भर हैं, जिससे गरीबी बनी रहती है. यदि मौजूदा रुझान जारी रहता है, तो 2030 तक चार में से एक व्यक्ति असुरक्षित, अस्वास्थ्यकर और अकुशल खाना पकाने की प्रणाली, जैसे लकड़ी या गोबर जलाना का उपयोग करेगा.
हालांकि इस स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन दुनिया सतत विकास लक्ष्य 7 (SDG7) को प्राप्त करने की राह पर नहीं है, जिसका लक्ष्य 2030 तक सभी के लिए सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना है. महासभा अप्रैल 2024 में SDG7 प्रगति का आकलन करने और समाधानों की सिफारिश करने के लिए एक ग्लोबल स्टॉकटेकिंग आयोजित करेगी.