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बीजेपी और कांग्रेस के लिए सिर दर्द साबित हो रहे बागी! कई निर्दलीय चुनाव मैदान में ठोक रहे ताल - Haryana Assembly Election 2024 - HARYANA ASSEMBLY ELECTION 2024

Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा की पहली लिस्ट के बाद ही जिस तरह से बगावत के सुर दिखे. हरियाणा ही नहीं बल्कि जिन राज्यों में आने वाले दिनों में भी चुनाव हैं उनमें हरियाणा की तरह बागियों को मानने की नौबत ना आए इस पर भी पार्टी अभी से काम कर रही है. हरियाणा में कांग्रेस के 23 वहीं भाजपा के 10 बागी विधायक चुनावी मैदान में अपनी पार्टियों के खिलाफ ही ताल ठोक रहे हैं. ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट...

HARYANA ASSEMBLY ELECTION 2024
हरियाणा का रण (ANI)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 14, 2024, 10:54 PM IST

नई दिल्ली: हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, बीजेपी और आप तीनों ही पार्टियों ने सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. मगर बड़ी पार्टियां जिनमे मुख्य तौर पर भाजपा और कांग्रेस का खेल उन्ही पार्टी से अलग हुए निर्दलीय उम्मीदवार बिगाड़ रहे हैं.

हालांकि, कांग्रेस के जहां कुल 23 बागी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं वहीं भाजपा ज्यादातर अपने दिग्गज नेताओं को मनाने में कामयाब हो गई है. बावजूद इसके लगभग 10 बागी अभी भी भाजपा के सियासी खेल को बिगड़ने पर अमादा है. पार्टी ने सभी 90 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे हैं. कुछ बगावती नेताओं ने तो आप और जेजेपी जैसी पार्टियों का भी दामन थाम लिया है.

जहां कांग्रेस के बागी नेताओं में रोहिता रेवड़ी, संपत सिंह, उपेन्द्र कौर अहलूवालिया, शारदा राठौर, ललित नागर, सतबीर रातेरा और चित्रा सरवारा जैसे नाम शामिल हैं. वहीं भाजपा काफी हद तक बागियों को मनाने में सफल भी हुई है. हालांकि, बागी नेताओं को कंट्रोल करने में बीजेपी ने थोड़ी सी सफलता पाई है.

पूर्व शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा, शिक्षा मंत्री सीमा त्रिखा, पूर्व विधायक नरेश कौशिक, पूर्व विधायक राव बहादुर सिंह और पूर्व पार्षद लोकेश नांगरू ने पार्टी के शीर्ष नेताओं के प्रयासों के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ने से मना कर दिया. बावजूद इसके लगभग 10 उम्मीदवार अभी भी अपनी पार्टी के खिलाफ मैदान में हैं.

सूत्रों की माने तो भाजपा केंद्रीय कार्यालय ने अपने उम्मीदवारों को ये निर्देश दिए हैं कि, अपनी पार्टी से अलग हुए या निर्दलियों के खिलाफ ज्यादा आक्रामक न हों. वो अपनी और सरकार की उपलब्धियां गिनवाएं, इंडिपेंडेंट कैंडिडेट को को ज्यादा तरजीह ना दें और ना ही इन पर विश्वासघात या पर्सनल ऑबजेक्शन लगाए. साथ ही जिन बड़े दिग्गजों ने पार्टी के मनाने के बाद अपने बागी तेवर खत्म किए हैं, उन्हें भी अंदरखाने सरकार बनने की स्थिति में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने के वायदे किए गए हैं.

यह साफ है कि, लड़ाई में कोई भी परमानेंट दोस्त या दुश्मन नहीं होता और इसी समीकरण पर पार्टी हरियाणा में आगे बढ़ रही है. जो नेता नहीं माने, उनमें मुख्य तौर पर हिसार में भाजपा से बागी होकर पूर्व मंत्री सावित्री जिंदल और निवर्तमान मेयर गौतम सरदाना निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं सिरसा के भाजपा नेता गोबिंद कांडा ने फतेहाबाद सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन भरा है. जबकि विधायक तेजवीर सिंह ने कुरुक्षेत्र में कांग्रेस का दामन थाम लिया है.

चरखी दादरी में 40 साल से भाजपा से जुड़े नगर परिषद के पूर्व चेयरमैन संजय छपारिया ने निर्दलीय पर्चा भरा है जबकि महम हलके से राधा अहलावत ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल किया है. वहीं देवेंद्र कादियान ने गन्नौर सीट से तो राजीव जैन ने सोनीपत से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन किया है. नरवाना से भाजपा से बागी संतोष दनौदा ने तो पूर्व में भाजपा की सहयोगी रही जजपा के प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल किया.

झज्जर से सतबीर सिंह एडवोकेट, बेरी से भाजपा किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष अमित अहलावत और नारनौल से भाजपा महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन किया है. वहीं भाजपा के ओबीसी मोर्चा के हरियाणा अध्यक्ष भी कांग्रेस का दामन थाम लिया.

वहीं, फरीदाबाद एनआईटी से टिकट के दावेदार पूर्व विधायक नगेंद्र भड़ाना ने इनेलो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. कूल मिलाकर बागियों के तेवर से सहमी भाजपा ने चुनावी राज्यों, जिसमें महाराष्ट्र और झारखंड सुमार हैं. यहां ऐसे पार्टी के खिलाफ नहीं जाने वाले उम्मीदवारों को अभी से मनाने में जुट गई है. हरियाणा में भी ऐसे बागी नेता, जो केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद मान गए हैं, उन्हें सरकार बनने की स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका में रखने के वायदे भी किए गए हैं.

इस मुद्दे पर पार्टी के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता का कहना है कि, जो पार्टी लोकप्रिय होती है उसके टिकट के दावेदार भी ज्यादा होते हैं. ऐसे में एक सीट पर हर किसी को संतुष्ट नहीं किया जा सकता है. बाकी बचे बागी नेता देर-सवेर मान ही जाएंगे. यानी कि संकेत साफ है कि, पार्टी प्लान 'A' के साथ-साथ प्लान 'B' पर भी काम कर रही है, और सत्ता वापसी के लिए हर चाल में आगे रहने की कोशिश में जुटी हुई है.

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