नई दिल्ली : पिछले 17 दिनों में मोदी सरकार ने पांच बड़ी शख्सियतों को भारत रत्न देने की घोषणा की है. ये हैं- कर्पूरी ठाकुर, लाल कृष्ण आडवाणी, चौ. चरण सिंह, पीवी नरसिम्हा राव और एमएस स्वामीनाथन. कर्पूरी ठाकुर बिहार से, चौ. चरण सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश से और पीवी नरसिम्हा राव तेलंगाना से और एमएस स्वामीनाथन तमिलनाडु से संबंध रखते हैं. चुनावी साल में पांच-पांच व्यक्तियों को भारत रत्न देने के ऐलान के क्या मायने हैं ? क्या इसके जरिए राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की जा रही है ? आइए इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश करते हैं.
गैर गांधी परिवार के नेताओं को मोदी का सम्मान
मोदी सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल में कांग्रेस के उन नेताओं को सम्मानित किया है, जो गांधी परिवार से नहीं हैं. जैसे- सरदार वल्लभ भाई पटेल, प्रणब मुखर्जी और अब पीवी नरसिम्हा राव. मोदी सरकार ने दुनिया भर में सबसे ऊंची मूर्ति (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) गुजरात में स्थापित करवाई है और वह मूर्ति सरदार पटेल की है. पटेल कांग्रेस के बड़े नेता थे. वह नेहरू मंत्रिमंडल के सदस्य थे. ऐसा कहा जाता है कि आजादी के बाद कांग्रेस के अधिकांश नेता पटेल को पीएम के तौर पर देखना चाहते थे, लेकिन गांधी, नेहरू के पक्ष में खड़े थे, लिहाजा वह पहले प्रधानमंत्री बने. पीएम मोदी ने सार्वजनिक मंच से कई बार कांग्रेस पार्टी पर पटेल की उपेक्षा करने के आरोप लगाए हैं.
इसी तरह से 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देने की घोषणा की थी. प्रणब मुखर्जी पश्चिम बंगाल से थे. राजनीतिक हलकों में यह सर्वविदित है कि प्रणब मुखर्जी का गांधी परिवार से बहुत अच्छा संबंध नहीं था. वरिष्ठ पत्रकार संजय बारू ने अपनी एक किताब में जिक्र किया है कि जिस समय सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को पीएम पद के लिए चुना था, उस समय प्रणब मुखर्जी बहुत सहज नहीं थे. बारू के अनुसार मुखर्जी यह मानकर चल रहे थे कि उन्हें ही पीएम के रूप में चुना जाएगा.
इसी तरह से अब पीवी नरसिम्हा राव को लेकर भी बात कही जा सकती है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव का जब निधन हुआ था, उनकी अंत्येष्टि आंध्र प्रदेश में हुई थी. मीडिया रिपोर्ट में अक्सर इसका उल्लेख किया जाता है कि उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी, फिर भी दिल्ली में उनकी अंत्येष्टि के लिए कोई जगह नहीं दी गई थी.
अब बिहार की बात करते हैं. बिहार में कुछ दिन पहले ही सत्ता परिवर्तन हो गया. आरजेडी और जेडीयू का गठबंधन टूट गया. जेडीयू और भाजपा ने फिर से गठबंधन कर अपनी सरकार बना ली है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नए गठबंधन को लोकसभा चुनाव में फायदा मिल सकता है, बशर्ते अति पिछड़ा वर्ग नीतीश कुमार के साथ खड़ा रहे. नीतीश कुमार कुर्मी जाति आते हैं. भाजपा ने सम्राट चौधरी को उप मुख्यमंत्री बनाया है. वह कोइरी जाति से हैं. साथ ही विजय सिन्हा भी उप मुख्यमंत्री बने हैं और वह अगड़ी जाति भूमिहार वर्ग से आते हैं.
मीडिया रिपोर्ट के हिसाब से इन तीनों जातियों को एनडीए का समर्थक माना जाता है. दलितों के प्रमुख नेता- चिराग पासवान और जीतन राम मांझी भी एनडीए के साथ हैं. दूसरी ओर यादव और मुस्लिमों को राजद का समर्थक माना जाता है. ऐसे में विश्लेषक मानते हैं कि ईबीसी यानी अति पिछड़ा वर्ग जिस किसी भी गठबंधन के साथ खड़ा हो जाए, तो उनकी सरकार बन सकती है. कर्पूरी ठाकुर इसी समुदाय से आते थे. वह बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वह एक निहायत ही ईमानदार नेता थे. उन्होंने पिछड़े वर्गों को आगे लाने के लिए कई काम किए थे. पीएम मोदी ने उनकी सौंवीं जयंती से ठीक एक दिन पहले उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की थी. इस फैसले के बाद ही नीतीश कुमार औपचारिक रूप से एनडीए में शामिल हो गए थे. ओबीसी समुदाय कर्पूरी ठाकुर को अपना आदर्श मानता है.
अब पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की बात करते हैं. वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते हैं. उन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता है. जाट और किसानों के बीच वह बहुत ही लोकप्रिय थे. जैसे ही सरकार ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा की, उनके पोते जयंत चौधरी ने ट्वीट किया, दिल जीत लिया. इसके बाद उनकी पार्टी ने एनडीए के साथ जाने पर भी रजामंदी दे दी.