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सेना को मिला आत्मघाती ड्रोन नागास्त्र 1, पलक झपकते ही दुश्मन को कर सकता है तबाह - Drone Nagastra 1 - DRONE NAGASTRA 1

Drone Nagastra 1 : नागपुर स्थित सोलार इंडस्ट्रीज ने स्वदेशी रूप से विकसित आत्मघाती ड्रोन का पहला बैच भारतीय सेना को सौंप दिया है. इसका नाम नागास्त्र 1 है. यह भारतीय सेना को और मजबूत बनाएगा. नागास्त्र-1 क्या करने में सक्षम है? पढ़िए खास रिपोर्ट.

Nagastra 1
आत्मघाती ड्रोन नागास्त्र 1 (IANS)

By Aroonim Bhuyan

Published : Jun 15, 2024, 9:42 PM IST

नई दिल्ली:द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान की विशेष आक्रमण इकाइयों में शामिल कामिकेज (Kamikaze) घातक हमले के लिए चर्चा में रही. सैन्य विमान वाली इस इकाई के पायलटों ने युद्ध अभियान के अंतिम चरण में आत्मघाती हमले किए. उनका इरादा पारंपरिक हवाई हमलों की तुलना में युद्धपोतों को अधिक प्रभावी ढंग से नष्ट करने का था. युद्ध के दौरान लगभग 3,800 कामिकेज पायलट मारे गए और कामिकेज हमलों में 7,000 से अधिक नौसैनिक मारे गए.

21वीं सदी में भारत ने अब अपना लगभग स्वदेशी रूप से विकसित कामिकेज हवाई हथियार बना लिया है. हालांकि जब नागास्त्र-1 स्पीड में हो और हमला कर रहा हो तो किसी भी पायलट को मरना नहीं पड़ता. दरअसल ये एक हवाई ड्रोन है.

नागपुर स्थित सोलर इंडस्ट्रीज द्वारा निर्मित, नागास्त्र-1 एक किलोग्राम का हथियार ले जा सकता है और दो मीटर के भीतर जीपीएस के माध्यम से सटीक हमला कर सकता है. लक्ष्य के ऊपर मंडराने और फिर उससे टकराने की क्षमता के कारण इसे घातक युद्ध हथियार कहा जाता है. ऐसे 120 ड्रोन का पहला बैच भारतीय सेना को सौंप दिया गया है. सोलार इंडस्ट्रीज 100 प्रतिशत इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (ईईएल) की सहायक कंपनी है, जिसे भारतीय सेना ने 420 ड्रोन का ऑर्डर दिया था.

लॉयटरिंग म्यूनिशन :लॉयटरिंग म्यूनिशन गोला बारूद, जिसे आत्मघाती ड्रोन, कामिकेज ड्रोन या विस्फोट करने वाले ड्रोन के रूप में भी जाना जाता है. ये एक प्रकार का हवाई हथियार है जिसमें एक अंतर्निर्मित वारहेड होता है जिसे आम तौर पर टारगेट के चारों ओर घूमने के लिए डिजाइन किया जाता है. जब टारगेट स्थिर हो जाता है तो ये उसे हिट करता है, टकराता है.

मूव करने वाले हथियार टारगेट को तेजी से हिट करने में सक्षम होते हैं. उन्हें टारगेट के हिसाब से आसानी से मूव किया जा सकता है. टारगेट चेंज किया जा सकता है. यहां तक कि हिट करने से रोका भी जा सकता है. ऐसे हथियार क्रूज मिसाइलों और मानव रहित लड़ाकू हवाई वाहनों (यूसीएवी या लड़ाकू ड्रोन) के बीच की जगह में फिट होते हैं. इनमें दोनों तरह की खासियत होती है. हालांकि क्रूज़ मिसाइलों से इस मायने में अलग हैं कि उन्हें टारगेट के चारों ओर अपेक्षाकृत लंबे समय तक मूव कराने के लिए डिजाइन किया गया है.

जमीनी वाहनों, विमानों, जहाजों, या यहां तक ​​​​कि छोटे संस्करण हाथ से भी लॉन्च किए जा सकते हैं. इसे छोड़े जाने के बाद ये काफी समय तक पूर्वनिर्धारित क्षेत्र में मूव कर सकते हैं. ऑनबोर्ड सेंसर, ऑपरेटरों या एल्गोरिदम का उपयोग करके संभावित लक्ष्यों की पहचान और ट्रैक किया जाता है. एक बार लक्ष्य निर्धारित हो जाने के बाद, युद्ध सामग्री अपने ऑनबोर्ड वारहेड के साथ टारगेट को तेजी से नष्ट करती है. ये छोटी दूरी, मध्यम दूरी और लंबी दूरी के होते हैं.

कम दूरी के हथियारों की रेंज आमतौर पर 10-20 किमी तक होती है और इन्हें सामरिक संचालन के लिए डिज़ाइन किया गया है. एक मध्यम दूरी की लॉयटरिंग म्यूनिशन गोला-बारूद 100 किमी तक की दूरी पर काम कर सकती है, जो सीमा और घूमने के समय के बीच बैलेंस बनाती है. लंबी दूरी तक घूमने वाला गोला-बारूद सैकड़ों किलोमीटर दूर लक्ष्य पर हमला करने और कई घंटों तक मंडराने में सक्षम है.

क्या भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने ऐसे हथियार बनाए हैं : नहीं. सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों (एसएएम) के खिलाफ शत्रु वायु रक्षा (एसईएडी) भूमिका में उपयोग के लिए पहली बार 1980 के दशक में लॉयटरिंग वैपंस सामने आए और 1990 के दशक में कई सैन्य बलों के साथ उस भूमिका में तैनात किए गए थे.

2000 के दशक की शुरुआत में अपेक्षाकृत लंबी दूरी के हमलों और अग्नि समर्थन से लेकर सामरिक, बहुत कम दूरी के युद्धक्षेत्र प्रणालियों तक अतिरिक्त भूमिकाओं के लिए घूमने वाले हथियार विकसित किए गए थे जो एक बैकपैक में फिट होते हैं.

शुरुआत में ऐसे हथियारों को आत्मघाती मानवरहित हवाई वाहन (यूएवी) या लॉयटरिंग मिसाइल कहा जाता था. अमेरिकी एजीएम-136 टैसिट रेनबो कार्यक्रम या 1980 के दशक के इज़राइली डेलिलाह वेरिएंट में इसे देखा जा सकता है. 1980 के दशक में ईरानी अबाबिल-1 बनाया गया था लेकिन इसकी सटीक तारीख बता पाना मुश्किल है. इज़राइली IAI हार्पी 1980 के दशक के अंत में बनाया गया था.

IAI हार्पी के अलावा, इजराइल को एक और आत्मघाती ड्रोन मिला है जिसका नाम IAI हारोप है. IAI हार्पी इजराइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज द्वारा निर्मित एक घूमती हुई मिसाइल है. हार्पी को रडार सिस्टम पर हमला करने के लिए डिज़ाइन किया गया है और इसे SEAD भूमिका के लिए बनाया गया है. यह विस्फोटक हथियार ले जाता है. हार्पी को दक्षिण कोरिया, भारत और चीन सहित कई विदेशी देशों को बेचा गया है.

IAI हारोप छह घंटे तक हवा में रह सकता है और इसकी 200 किमी की रेंज है. यह IAI हार्पी का एक बड़ा संस्करण है और इसे जमीन या समुद्र-आधारित लॉन्चपैड से लॉन्च किया जाता है, लेकिन इसे खास तौर से एयर लॉन्च के लिए किया जा सकता है. हारोप एक मैन-इन-द-लूप मोड का उपयोग करता है, जिसे रिमोट ऑपरेटर द्वारा नियंत्रित किया जाता है. हारोप ऑपरेटर विमान के इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर द्वारा पता लगाए गए स्थिर या मूवेवल टारगेट को हिट कर सकता है.

नागास्त्र-1 की क्षमता क्या है? :नागास्त्र-1 रक्षा मंत्रालय के मेड इन इंडिया कार्यक्रम का प्रतीक है. यह दो इलेक्ट्रिक मोटरों द्वारा संचालित एक फिक्स्ड-विंग लोटरिंग हथियार है. इसे 15 किलोमीटर के दायरे में एक ऑपरेटर द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है और इसकी अधिकतम उड़ान दूरी 30 किलोमीटर है. ड्रोन जीपीएस द्वारा निर्देशित प्रीलोडेड ग्रिड निर्देशांक के आधार पर एक निश्चित लक्ष्य पर हमला कर सकता है, जिससे लक्ष्य के दो किमी के भीतर सटीकता सुनिश्चित होती है. यदि यह किसी लक्ष्य का पता लगाने में विफल रहता है, तो सॉफ्ट लैंडिंग के लिए इसमें पैराशूट का उपयोग करके इसे सुरक्षित रूप से वापस लाया जा सकता है.

हालांकि, यहां यह जिक्र करना आवश्यक है कि नागास्त्र-1 पहला ऐसा आत्मघाती ड्रोन नहीं है जो भारतीय रक्षा बलों के पास है. पिछले साल मई में एसपी के एविएशन में लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) पीसी कटोच द्वारा लिखे गए एक लेख के अनुसार, भारतीय वायु सेना के हाथ में टाटा द्वारा निर्मित एएलएस-50 वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग (वीटीओएल) एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (टीएएसएल) युद्ध सामग्री है. इजराइल ने भारतीय रक्षा बलों को IAI हार्पी और IAI हार्पो की भी आपूर्ति की है.

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