नई दिल्ली:द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान की विशेष आक्रमण इकाइयों में शामिल कामिकेज (Kamikaze) घातक हमले के लिए चर्चा में रही. सैन्य विमान वाली इस इकाई के पायलटों ने युद्ध अभियान के अंतिम चरण में आत्मघाती हमले किए. उनका इरादा पारंपरिक हवाई हमलों की तुलना में युद्धपोतों को अधिक प्रभावी ढंग से नष्ट करने का था. युद्ध के दौरान लगभग 3,800 कामिकेज पायलट मारे गए और कामिकेज हमलों में 7,000 से अधिक नौसैनिक मारे गए.
21वीं सदी में भारत ने अब अपना लगभग स्वदेशी रूप से विकसित कामिकेज हवाई हथियार बना लिया है. हालांकि जब नागास्त्र-1 स्पीड में हो और हमला कर रहा हो तो किसी भी पायलट को मरना नहीं पड़ता. दरअसल ये एक हवाई ड्रोन है.
नागपुर स्थित सोलर इंडस्ट्रीज द्वारा निर्मित, नागास्त्र-1 एक किलोग्राम का हथियार ले जा सकता है और दो मीटर के भीतर जीपीएस के माध्यम से सटीक हमला कर सकता है. लक्ष्य के ऊपर मंडराने और फिर उससे टकराने की क्षमता के कारण इसे घातक युद्ध हथियार कहा जाता है. ऐसे 120 ड्रोन का पहला बैच भारतीय सेना को सौंप दिया गया है. सोलार इंडस्ट्रीज 100 प्रतिशत इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (ईईएल) की सहायक कंपनी है, जिसे भारतीय सेना ने 420 ड्रोन का ऑर्डर दिया था.
लॉयटरिंग म्यूनिशन :लॉयटरिंग म्यूनिशन गोला बारूद, जिसे आत्मघाती ड्रोन, कामिकेज ड्रोन या विस्फोट करने वाले ड्रोन के रूप में भी जाना जाता है. ये एक प्रकार का हवाई हथियार है जिसमें एक अंतर्निर्मित वारहेड होता है जिसे आम तौर पर टारगेट के चारों ओर घूमने के लिए डिजाइन किया जाता है. जब टारगेट स्थिर हो जाता है तो ये उसे हिट करता है, टकराता है.
मूव करने वाले हथियार टारगेट को तेजी से हिट करने में सक्षम होते हैं. उन्हें टारगेट के हिसाब से आसानी से मूव किया जा सकता है. टारगेट चेंज किया जा सकता है. यहां तक कि हिट करने से रोका भी जा सकता है. ऐसे हथियार क्रूज मिसाइलों और मानव रहित लड़ाकू हवाई वाहनों (यूसीएवी या लड़ाकू ड्रोन) के बीच की जगह में फिट होते हैं. इनमें दोनों तरह की खासियत होती है. हालांकि क्रूज़ मिसाइलों से इस मायने में अलग हैं कि उन्हें टारगेट के चारों ओर अपेक्षाकृत लंबे समय तक मूव कराने के लिए डिजाइन किया गया है.
जमीनी वाहनों, विमानों, जहाजों, या यहां तक कि छोटे संस्करण हाथ से भी लॉन्च किए जा सकते हैं. इसे छोड़े जाने के बाद ये काफी समय तक पूर्वनिर्धारित क्षेत्र में मूव कर सकते हैं. ऑनबोर्ड सेंसर, ऑपरेटरों या एल्गोरिदम का उपयोग करके संभावित लक्ष्यों की पहचान और ट्रैक किया जाता है. एक बार लक्ष्य निर्धारित हो जाने के बाद, युद्ध सामग्री अपने ऑनबोर्ड वारहेड के साथ टारगेट को तेजी से नष्ट करती है. ये छोटी दूरी, मध्यम दूरी और लंबी दूरी के होते हैं.
कम दूरी के हथियारों की रेंज आमतौर पर 10-20 किमी तक होती है और इन्हें सामरिक संचालन के लिए डिज़ाइन किया गया है. एक मध्यम दूरी की लॉयटरिंग म्यूनिशन गोला-बारूद 100 किमी तक की दूरी पर काम कर सकती है, जो सीमा और घूमने के समय के बीच बैलेंस बनाती है. लंबी दूरी तक घूमने वाला गोला-बारूद सैकड़ों किलोमीटर दूर लक्ष्य पर हमला करने और कई घंटों तक मंडराने में सक्षम है.
क्या भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने ऐसे हथियार बनाए हैं : नहीं. सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों (एसएएम) के खिलाफ शत्रु वायु रक्षा (एसईएडी) भूमिका में उपयोग के लिए पहली बार 1980 के दशक में लॉयटरिंग वैपंस सामने आए और 1990 के दशक में कई सैन्य बलों के साथ उस भूमिका में तैनात किए गए थे.