लेह: लद्दाख लंबे समय से सीमा विवाद के कारण चर्चा में रहा है. पूर्वी लद्दाख में जमीनी हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत ने चुशुल निर्वाचन क्षेत्र से एलएएचडीसी (लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद) लेह के पार्षद कोंचोक स्टैनजिन (Konchok Stanzin) से खास बातचीत की.
पूर्वी लद्दाख की वास्तविक स्थिति पर उन्होंने कहा, "हमने देखा है कि हाल ही में विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री ने बयान दिया, जिसमें कहा गया है कि भारत और चीन के बीच दो टकराव बिंदुओं पर विघटन प्रक्रिया पूरी हो गई है, एक देपसांग और दूसरा डेमचोक, जहां लंबे समय से गतिरोध था. उन्होंने कहा कि इन दो टकराव बिंदुओं को सुलझा लिया गया है. लेकिन जमीनी हालात क्या हैं, उस पर हमें गौर करना होगा. हालांकि, देपसांग और डेमचोक के इलाके मेरे निर्वाचन क्षेत्र में नहीं आते हैं. यहां तक कि मेरे निर्वाचन क्षेत्र चुशुल में भी पिछले कुछ सालों में नॉर्थ बैंक पैंगोंग और गोगरा हॉट स्प्रिंग इलाके में विघटन हुआ है."
स्टैनजिन ने कहा, "हाल ही में दिए गए बयान में उन्होंने कहा कि 2020 की यथास्थिति बरकरार रखी गई है, लेकिन अगर हम उस दृष्टिकोण से सर्दियों में देखेंगे, तो हमें स्थिति के बारे में पता चलेगा क्योंकि हमारे चरवाहे पहाड़ों की चोटी पर जाते हैं. चुशुल में, हमारे खानाबदोश रेजांग ला, रिनचेन ला, मुकपा री, ब्लैक टॉप, हेलमेट टॉप, गुरुंग हिल, गौसौमी हिल और नॉर्थ बैंक पैंगोंग और गोगरा हॉट स्प्रिंग क्षेत्र जैसे क्षेत्रों में जाते हैं क्योंकि यह हमारा शीतकालीन चरागाह क्षेत्र है और हमारे चरवाहे अपने जानवरों को चराने जाते हैं."
सीएनएन जंक्शन तक गश्त
कोंचोक स्टैनजिन कहते हैं, "स्थिति का आकलन करने में समय लगेगा. डेमचोक में, हमारे चरवाहे 2014 तक मवेशी चराने जाते थे और सीएनएन जंक्शन तक गश्त करते थे, और इस विघटन समझौते (Disengagement Agreement) में यह कहा गया है कि यह इस बिंदु तक गश्त की इजाजत देगा. डेमचोक की जगह नेय लुंग लुंगपा (Ney Lung Lungpa) मुख्य ग्रीष्मकालीन चरागाह बना हुआ है, और हम अगली गर्मियों में पता लगाएंगे कि चरवाहों को फिर से जाने की अनुमति है या नहीं."
उन्होंने कहा कि देपसांग में हमारे खानाबदोश नहीं जाते हैं और 1959 तक चीनी सेना (पीएलए) ने इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया था. लेकिन हाल के समझौते ने इस बिंदु पर भी पहुंच की अनुमति दी है. हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्थिति इस तरह से विकसित हुई है, हमारे गश्ती बिंदु 10, 11, 12 और 13 भारतीय क्षेत्र में हैं, इसलिए वहां तक पहुंच कोई बड़ी रियायत नहीं है. उन्होंने कहा कि इन मामलों को हल करने में समय लगेगा, और इस सर्दी में हमारे पास इस बारे में स्पष्ट तस्वीर होगी कि 2020 से पहले की यथास्थिति बरकरार रखी गई है या नहीं.'
कोंचोक आगे कहते हैं, "चीन पांच राज्यों के साथ भारत-चीन सीमा साझा करता है: अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, लद्दाख और उत्तराखंड. हाल के वर्षों में, चीनियों ने 700 से अधिक डमी गांव बसाए हैं और दोहरे बुनियादी ढांचे वाले गांव स्थापित किए हैं. लद्दाख में हमने नए विकास भी देखे हैं. 2024 में, नांग चुंग और नांग चेन जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है. इसके अतिरिक्त, स्पैंग्युर और दोरजे कुंगुंग के पीछे और दोरजे कुंगुंग के आगे नए गांव बसाए गए हैं. उन्होंने नक्चू, नगारी और रुडोक में भी गांव बसाए हैं."
सीमा क्षेत्र में विकास
उन्होंने कहा कि जवाब में, भारत की तरफ से इससे निपटने के लिए जवाबी विकास प्रयास शुरू किए गए हैं. चांगथांग विकास पैकेज (Changthang Development Package) की शुरुआत में 600 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान था, लेकिन अभी तक केवल 245 करोड़ रुपये ही विकास में लगाए गए हैं. उन्होंने कहा कि चीन के जवाब में, हमने सरकार से सभी सीमावर्ती गांवों को रहने लायक बनाने और जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने का आग्रह किया है.
कोंचोक ने कहा, "मेरे निर्वाचन क्षेत्र में, चार में से तीन पंचायत हलके पहले सीमावर्ती गांव में स्थित हैं, और मैंने सरकार से अनुरोध किया है कि वह इन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को बढ़ाए. इसका समर्थन करने के लिए, सरकार ने चार राज्यों के लिए 800 करोड़ रुपये के बजट आवंटन के साथ वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम शुरू किया है."
उन्होंने कहा, "वर्तमान में भी हमारे सामने संचार, स्वास्थ्य, शिक्षा, भेड़ और पशुपालन जैसे मुद्दे हैं आज भी हमारे इलाके में 4G ठीक से नहीं पहुंच पाया है, हमारे पास चीन के बराबर सुविधाएं नहीं हैं और हमने सरकार से काउंटर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने का अनुरोध किया है. इस संबंध में काम चल रहा है. लेकिन फिर भी हमें बहुत कुछ करने की जरूरत है क्योंकि वे (चीन वाले) एक-दो साल में पूरा गांव बना देते हैं और हमें बुनियादी ढांचा बनाने में बहुत समय लग रहा है."