नई दिल्ली: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार छह राज्यों में पराली जलाने के मामलों में 2021 और 2024 के बीच 71.58 फीसदी की भारी कमी आई है.
इस अवधि के दौरान पराली जलाने की घटनाओं की कुल संख्या में 58,025 की कमी आई. ये उत्तर भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक से निपटने में प्रगति का संकेत है. हालांकि, इस महत्वपूर्ण सुधार के बावजूद दिल्ली और उसके आसपास के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु गुणवत्ता खतरनाक रूप से खराब बनी हुई है. इससे गंभीर स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं पैदा हो रही हैं.
आईसीएआर ने 15 सितंबर से 15 नवंबर, 2024 के बीच छह राज्यों में पराली जलाने की 23,035 घटनाएं दर्ज की जबकि 2023 में इसी अवधि के दौरान 45,425 घटनाएं सामने आई. वहीं, 2022 में 58,551 और 2021 में 81,060 घटनाएं दर्ज की गई. पंजाब में 2024 में 7864 घटनाओं के साथ सबसे बड़ी हिस्सेदारी बनी हुई है जो पिछले वर्ष के 30,661 मामलों से काफी कम है.
हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी इस वर्ष कम मामले दर्ज हुए हैं, जबकि दिल्ली में मात्र 12 घटनाएं दर्ज की गई. ये सभी राज्यों में सबसे कम है. इन उत्साहजनक आंकड़ों के बावजूद पराली जलाने में कमी से दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण संकट को कम करने में कोई खास मदद नहीं मिली है. क्षेत्र में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) लगातार 'गंभीर' श्रेणी में बना हुआ है और क्षेत्र में घना धुआं छाया हुआ है.
पर्यावरणविद् मनु सिंह स्थिति को गंभीर बताते हुए कहा, 'हालांकि छह राज्य सरकारों की सख्त निगरानी के कारण पराली जलाने में काफी कमी आई है, लेकिन दिल्ली एनसीआर और पूरे उत्तर भारत, यहां तक कि पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में भी वायु की गुणवत्ता खराब बनी हुई है.'
वायु प्रदूषण क्यों बना रहता है? सिंह ने दिल्ली की खतरनाक वायु गुणवत्ता के लिए विशेष रूप से सर्दियों के दौरान योगदान देने वाले कई कारकों पर प्रकाश डाला. यह सिर्फ पराली जलाने की बात नहीं है. यह एक प्राकृतिक घटना है. ये 'वायु मंदता' है जो सर्दियों से पहले और सर्दियों के दौरान होती है. यह प्रदूषकों, विशेष रूप से पीएम 2.5 और पीएम 10 को फैलने से रोकता है.
ये सूक्ष्म कण श्वसन और हृदय-संवहनी प्रणालियों पर गंभीर प्रभाव डालते हैं, तथा अस्थमा या हृदय रोग जैसी पहले से ही बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए खतरा बढ़ा देते हैं. मनु सिंह आगे बताते हैं कि प्रदूषण के मुख्य कारणों में मानवीय गतिविधियाँ भी शामिल हैं.
मनु सिंह ने आगे कहा कि पटाखों पर पूरी तरह प्रतिबंध होने के बावजूद त्यौहारों के दौरान नियमों का उल्लंघन बड़े पैमाने पर होता है. नदियां प्रतिदिन प्रदूषित होती हैं और इस क्षेत्र का जनसंख्या घनत्व दुनिया में सबसे अधिक है. मानवीय गतिविधियों से प्रदूषण और बढ़ाता है. जीवाश्म ईंधन (कोयला , तेल और प्राकृतिक गैस ) जलाना, गर्म रहने के लिए खुली आग का उपयोग करना और पटाखे फोड़ना और पराली जलाना जैसी प्रथाएं इस संकट में योगदान करती हैं.