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EVM के खिलाफ कांग्रेस एकजुट, CWC की बैठक में राष्ट्रव्यापी आंदोलन पर लग सकती है मुहर - CWC MEETING

सीडब्ल्यूसी की बैठक से पहले कांग्रेस पदाधिकारियों ने ईवीएम के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए 2018 के प्रस्ताव का हवाला दिया.

consensus within Congress against EVM Ahead of CWC meeting
EVM के खिलाफ कांग्रेस एकजुट, CWC की बैठक में राष्ट्रव्यापी आंदोलन पर लग सकती है मुहर (ETV Bharat)

By Amit Agnihotri

Published : Nov 28, 2024, 5:31 PM IST

नई दिल्ली: कांग्रेस कार्य समिति (CWC) की अहम बैठक से एक दिन पहले कांग्रेस के रणनीतिकारों ने बैलेट पेपर के पक्ष में 2018 के प्रस्ताव को पुनर्जीवित किया. इस बैठक में ईवीएम हटाने को लेकर राष्ट्रीय स्तर के आंदोलन की रूपरेखा पर चर्चा होने की संभावना है.

पार्टी के सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को सीडब्ल्यूसी की बैठक बुलाई है, जिसमें हाल में संपन्न हुए हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार की समीक्षा की जाएगी. दोनों राज्यों के चुनावी परिणाम कांग्रेस की उम्मीद के बिल्कुल उलट आए हैं. जिसके लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भाजपा द्वारा ईवीएम से कथित छेड़छाड़ को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन पर भी सीडब्ल्यूसी द्वारा चर्चा किए जाने की संभावना है.

सीडब्ल्यूसी के सदस्य जगदीश ठाकोर ने ईटीवी भारत को बताया, "न केवल हाल के हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान, बल्कि 2022 के गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान भी हमने पाया कि ईवीएम की भूमिका संदिग्ध थी. तीनों राज्यों में भाजपा सत्ता में थी. उन्होंने चुनाव जीतने के लिए मशीनों से छेड़छाड़ की."

उन्होंने कहा, "हरियाणा और महाराष्ट्र के नतीजे हमारे फीडबैक के विपरीत थे, क्योंकि हम अपने दम पर और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रहे थे. गुजरात में हमें करीब 65 सीटों की उम्मीद थी, लेकिन हमें सिर्फ 17 सीटें मिलीं और भाजपा ने तगड़ी सत्ता विरोधी लहर के बावजूद रिकॉर्ड बहुमत से जीत दर्ज की. चुनाव दर चुनाव यह कैसे संभव हो सकता है."

पार्टी के सूत्रों के अनुसार, सीडब्ल्यूसी से आंदोलन की रूपरेखा को मंजूरी मिलने के बाद इंडिया गठबंधन के सहयोगियों को भी इसमें शामिल किया जाएगा, क्योंकि वे भी लंबे समय से इस मुद्दे पर चिंता जता रहे हैं. सूत्रों ने कहा कि ईवीएम की भूमिका को लेकर कांग्रेस के भीतर संदेह दूर हो गया है और यहां तक कि शशि थरूर और कार्ति चिदंबरम जैसे वरिष्ठ सांसद, जो ईवीएम के पक्ष में बोल रहे थे, उन्हें भी आधिकारिक पार्टी लाइन के साथ आने के लिए सचेत किया गया है.

गुजरात कांग्रेस के पूर्व प्रमुख ठाकोर ने कहा कि भाजपा द्वारा ईवीएम से कथित छेड़छाड़ के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन का समय आ गया है क्योंकि इस मुद्दे पर देश की सबसे पुरानी पार्टी के भीतर व्यापक सहमति है.

'राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने की जरूरत'
ठाकोर ने कहा, "राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद 2018 के पूर्ण अधिवेशन में हमने ईवीएम के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था. बाद में, इस मुद्दे का जिक्र 2022 के उदयपुर नव संकल्प घोषणापत्र में भी किया गया था, लेकिन पार्टी के भीतर इस मुद्दे को उठाने या न उठाने को लेकर कुछ संशय थे. अब, ईवीएम की भूमिका को लेकर पूरी पार्टी एकमत है. ईवीएम के आने से पहले, भारत में चुनाव बैलेट पेपर से कराए जाते थे, जिसका इस्तेमाल दुनिया भर के कई विकसित देशों में किया जाता है. ऐसा यहां क्यों नहीं किया जा सकता? हमें ईवीएम के खिलाफ एक बड़ा राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने की जरूरत है."

हरियाणा में कांग्रेस को विधानसभा की कुल 90 सीटों में से 60 से ज्यादा सीटें जीतकर 2024 के चुनावों में जीत का भरोसा था, लेकिन उसे सिर्फ 37 सीटें मिलीं, जो कि बहुमत के आंकड़े 46 से 9 कम थीं. पार्टी पदाधिकारियों ने बाद में ईवीएम की भूमिका सहित कथित अनियमितताओं को लेकर चुनाव आयोग से शिकायत की, जो कई स्थानों पर पूरे दिन मतदान के बाद भी 99 प्रतिशत चार्ज पाई गईं, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, शिवसेना-यूबीटी और एनसीपी (एसपी) के एमवीए गठबंधन को 288 में से लगभग 160 सीटें मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उसे सिर्फ 56 सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी के सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन ने सत्ता विरोधी लहर के बावजूद चुनावों में भारी बहुमत से जीत हासिल की. चुनाव में हार के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रमुख नाना पटोले ने बूथ कार्यकर्ताओं से मिले फीडबैक के आधार पर पार्टी नेतृत्व से ईवीएम की भूमिका को उजागर करने का आग्रह किया.

गुजरात में हाल ही में वाव सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस की हार के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में कुल 182 में से 17 सीटें जीतने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी अब सिर्फ 11 सीटों पर सिमट गई. इसके विपरीत, भाजपा की सीटें 156 से बढ़कर 162 हो गईं, क्योंकि कांग्रेस के पांच विधायक पहले ही में भाजपा में शामिल हो गए थे और बाद में चार ने उपचुनाव भी जीता था.

2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा 99 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस के 77 विधायक चुने गए थे.

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