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चाय के दीवानों! क्या आप जानते हैं इसके जनक कौन हैं? - Charles Alexander Bruce

Charles Alexander Bruce : चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस को निस्संदेह असम चाय उद्योग के जनक के रूप में जाना जाता है. पढ़ें कैसे हुई असम चाय उद्योग की शुरुआत और कौन थे अलेक्जेंडर ब्रूस...

By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 24, 2024, 7:54 PM IST

Charles Alexander Bruce
चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस (ETV Bharat)

तेजपुर:असम का चाय उद्योग अपनी 200वीं वर्षगांठ मना रहा है. 1823 में रॉबर्ट ब्रूस ने ऊपरी ब्रह्मपुत्र घाटी में जंगली चाय के पौधों की खोज की थी, लेकिन रॉबर्ट ब्रूस की इस खोज के कुछ वक्त बाद ही मौत हो गई. इसके बाद, चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस की पहल से 1833 में तत्कालीन लखीमपुर जिले में सरकार द्वारा एक चाय बागान शुरू किया गया था. चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस ने असम की चाय को आज इतने बड़े मुकाम पर पहुंचाया. इस व्यक्ति को न केवल असम में बल्कि भारत में भी चाय उद्योग के जनक के रूप में जाना जाता है.

आज के समय में असम और भारत के चाय उद्योग की पूरी दुनिया प्रशंसा करती है, असम की चाय ने एक के बाद एक सफलता के मील के पत्थर छूए हैं. लेकिन, आज हम अपनी भाग-दौर भरी जिंदगी में इतने उलझ गए हैं कि महान चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस के लिए सम्मान दिखाना तो दूर, ऐसा लगता है मानो हम सभी चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस को भूल गए हैं जिन्होंने असम चाय को वैश्विक बनाया.

चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस कौन हैं?
चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस एक स्कॉटिश खोजकर्ता, व्यापारी और बंगाल आर्टिलरी के पूर्व मेजर रॉबर्ट ब्रूस के भाई थे. चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस का जन्म 11 जनवरी 1793 को स्कॉटलैंड में हुआ था. अलेक्जेंडर ब्रूस ने असम में 60 साल का लंबा समय बिताया और असमिया भाषा अच्छी तरह से सीखी. चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस की मृत्यु 1871 में तेजपुर में हुई थी. मृत्यु की तारीख की संख्या 23 दिखाई देने के अलावा, मृत्यु का सही वर्ष कब्र के पत्थर से स्पष्ट नहीं है. उनकी कब्र तेजपुर ब्रिटिश कब्रिस्तान में रखी गई है. दूसरी ओर इस महापुरुष की एक प्रतिमा पदुम पुखुरी के पास स्थापित की गई थी लेकिन वह भी अब उपेक्षित अवस्था में है और पार्क में सड़ने के कगार पर है.

चाय का आविष्कार किसने किया?
चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस को असम का चाय जनक माना जाता है. लेकिन, चार्ल्स अलेक्जेंडर वे शख्स नहीं हैं जिन्होंने इसकी खोज की थी. उनसे पहले 1823 में उनके बड़े भाई रॉबर्ट ब्रूस को सबसे पहले मनीराम दीवान से पता चला था कि भारत-चीन सीमा क्षेत्र का एक समुदाय सिंगफो लोग चाय की पत्तियों की खेती करते हैं. हालांकि, उस समय इसके बारे में हर किसी को जानकारी नहीं थी. 1823 में शिवसागर के गढ़गांव में व्यापार करते समय उनकी मुलाकात सिंगफो गांव के मुखिया से हुई, जो ब्रूस को चाय के पौधों के नमूने उपलब्ध कराने के इच्छुक थे. बता दें, सिंगफो कबीले का मुखिया बीसा गाम था. लेकिन उसके कुछ ही समय बाद 1824 में रॉबर्ट ब्रूस की मृत्यु हो गई.

असम चाय का उदय
बाद में इन चाय के पौधों के नमूने चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस को भेजे गए. इसके बाद इसे असम कमिश्नर डेविड स्कॉट के पास भेजा गया. इसीलिए असम में चाय की खेती की शुरुआत का श्रेय चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस को दिया जाता है. ब्रूस ने 1830 के दशक में असम में चाय उद्योग स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कहा जाता है कि उनके भाग्य में इस बदलाव के कारण स्कॉटिश लगभग अद्वितीय प्रसिद्धि के साथ असम की चाय के मार्गदर्शक के रूप में उभरे.

असम चाय विकास
1823 में मेजर रॉबर्ट ब्रूस ने एक विशेष उद्देश्य से असम के अहोम साम्राज्य की राजधानी रंगपुर की यात्रा की. उनका उद्देश्य क्षेत्र के प्रमुख जातीय समूहों में से एक, सिंगफोस के प्रमुख बीसा गम से मिलना था. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें इस तरह के उद्योग की संभावनाओं के बारे में अंदाजा था और वे क्षेत्र के स्वदेशी पौधों यानी आज के चाय के पौधों के बारे में अधिक जानकारी इकट्ठा करना चाहते थे.

इसके बाद मणिराम दत्ता बरुआ दीवान नामक एक स्वदेशी कुलीन व्यवसायी द्वारा प्रदान की गई महत्वपूर्ण जानकारी ने रॉबर्ट ब्रूस को इस यात्रा के लिए प्रेरित किया. जैसे ही वह असम पहुंचे, रॉबर्ट ने सिंगफौ लोगों को एक पेय के रूप में एक अज्ञात पत्ती का सेवन करते देखा. रॉबर्ट ब्रूस को तब एहसास हुआ कि अगर यह एक अलग तरह की चाय साबित हुई, तो ब्रिटेन की जरूरतें शुरू की कल्पना से कहीं अधिक आसानी से पूरी की जा सकती हैं. उन्होंने इसकी शुरुआत तो जरूर की लेकिन बाद में पूरा उनके भाई चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस किया. चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस ने पेय पदार्थ को एक नए स्तर पर ले जाने का जिम्मा उठाया.

तीन लोग के नाम शामिल
असम की स्थानीय चाय की खोज से आम तौर पर तीन लोग जुड़े हुए हैं -चार्ल्स अलेक्जेंडर ब्रूस, मनीराम दीवान और बीसा गम निंगरूला. आमतौर पर यह माना जाता है कि असम के सिंगफो आदिवासियों में चाय पीने की आदत पिछले 1,000 वर्षों से अधिक समय से है.

सिंगफू की चाय की किस्म और पहले की चाय
मूल रूप से सिंगफोस द्वारा लगाया गया चाय का पेड़ ऊंची संरचना वाला एक जंगली पौधा माना जाता है. क्योंकि उस पौधे की पत्तियां तोड़ने के लिए हाथी की पीठ पर चढ़ना पड़ता था. बाद में चार्ल्स ब्रूस के प्रयासों से इसे वैज्ञानिक तरीकों से लगाया गया. इस पौधे का उपयोग आज चाय के ताजा पेय के रूप में किया जा रहा है. वर्तमान समय में असम की चाय पूरे विश्व में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है. असम की चाय कई विदेशी देशों में निर्यात की जाती है और इससे भारी मात्रा में फायदा हुआ है. लेकिन दुख की बात है कि आज के दौर में इस बड़े चाय उद्योग के संस्थापक को अब भुला दिया गया है.

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