पटना: महिलाओं के बारे में एक धारणा है कि लड़कियां शादी के बाद अपने पति के सरनेम से जानी जाती हैं. शादी के बाद पति के सरनेम से उनकी पहचान बनने की परंपरा चली आ रही है, लेकिन यह परंपरा अब धीरे-धीरे बदलने लगी है. एक सर्वे में यह खुलासा हुआ है कि बिहार की 78% महिलाएं अपने पिता के सरनेम को नहीं बदलती हैं. आखिर क्यों लड़कियां शादी के बाद भी अपने पिता के सरनेम से जुड़ी रहना चाहती हैं? जानें इस रिपोर्ट में.
पति सरनेम के साथ जोड़ने की परंपरा: आपके घर पर यदि किसी ने शादी या कोई भी फंक्शन का कार्ड भेजा होगा तो आप उसे कार्ड पर देखे होंगे कि निवेदक में लिखा रहता है मिस्टर एंड मिसेज झा परिवार या कार्ड भेजने वाले के टाइटल में मिस्टर एंड मिसेज लगा होता होगा. यह परंपरा बहुत दिनों से चल रही है. प्राचीन काल से ही भारत की सभ्यता में पत्नी की पहचान पति के साथ जोड़कर देखी जाती है. लेकिन यह धारणा अब धीरे-धीरे बदलने लगी है.
पुरातन काल से आ रही है परंपरा: भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के अधिकांश देश पुरुष प्रधान रहे हैं. अधिकांश देशों में शादी के बाद महिलाओं को अपने पति के टाइटल से जोड़ा जाता है. उदाहरण स्वरूप, अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा या क्लिंटन की पत्नियों के सरनेम में उनके पति का टाइटल देखा जा सकता है. भारत में भी कई उदाहरण हैं, जैसे राजीव गांधी से शादी के बाद सोनिया गांधी ने गांधी टाइटल अपनाया. ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जिनमें महिलाओं की पहचान उनके पति के टाइटल से जुड़ी रही है.
बिहार में महिलाओं को लेकर चौंकाने वाला रिपोर्ट: बिहार में महिला बाल विकास मंत्रालय ने राज्य महिला एवं बाल विकास निगम के माध्यम से एक सर्वे करवाया है. इस सर्वे में महिलाओं से जुड़े सवालों और समस्याओं के बारे में पूछा गया. लगभग 10 लाख महिलाओं से सवाल पूछे गए और चार समूहों में महिलाओं से प्रतिक्रिया ली गई:-
- जिनकी शादी को 1 साल हो चुका है.
- जिनकी शादी को 6 महीने हुए हैं.
- जिनकी शादी नहीं हुई है.
- जिनकी शादी नहीं हुई है, लेकिन उनके रिश्ते बन चुके हैं.
इन सर्वे में एक सवाल पूछा गया था कि क्या शादी के बाद महिलाएं अपने पिता के टाइटल को रखती हैं या अपने पति के सरनेम को अपनाती हैं. 78% महिलाओं ने बताया कि वह शादी के बाद भी अपने पिता के द्वारा दिए गए टाइटल को ही रखती हैं.
पिता के सरनेम बदलने की क्या जरूरत?: ईटीवी भारत ने पटना की बोरिंग रोड की रहने वाली ज्योति मिश्रा से बातचीत की. ज्योति मिश्रा ने बताया कि उन्होंने जितेंद्र वर्मा से शादी की, लेकिन शादी के बाद भी उन्होंने अपने पुराने (पिता के) सरनेम को नहीं बदला. उनका और उनके पति का मानना है कि अब जमाना बदल चुका है, और अब यह सही नहीं लगता कि पत्नी का नाम जबरदस्ती पति के सरनेम से जोड़ा जाए.
पुरुष प्रधान समाज का धारणा बदला: ज्योति मिश्रा का कहना है कि पहले पारिवारिक और सामाजिक दबाव होता था, और यह कहा जाता था कि शादी के बाद पत्नी को अपने पति के सरनेम से जुड़ना चाहिए. लेकिन अब स्थिति बदल गई है. महिलाएं अब जागरूक हो गई हैं और पढ़ाई-लिखाई के साथ आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ रही हैं. ज्योति मिश्रा ने यह भी बताया कि आजकल पतियों को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता.
नाम चेंज करवाना जटिल प्रक्रिया: ज्योति मिश्रा ने बताया कि सरनेम बदलने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कोई भी लड़की अपना सरनेम चेंज नहीं करना चाहती. उन्हें लगता है कि यह कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना बहुत मुश्किल है. इसके अलावा, समाज और परिवार भी अब इस पर ज्यादा दबाव नहीं डालते कि महिलाएं अपना सरनेम बदलें.
''लड़कियां अब अपने करियर को लेकर अधिक जागरूक हो रही हैं, और शादी से पहले वे अक्सर स्नातक या स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी होती हैं. अगर वे अपना सरनेम बदलती हैं, तो उन्हें सभी सर्टिफिकेट और दस्तावेजों में बदलाव करना पड़ता है, जो एक कठिन प्रक्रिया है.''- ज्योति मिश्रा
अपनी पहचान बना रही हैं लड़कियां: जितेंद्र वर्मा ने कहा कि सरनेम को लेकर कोई फर्क नहीं पड़ता. उनकी पत्नी का नाम पहले से ही मिश्रा था और वह उसी नाम से जानी जाती हैं. उनके अनुसार, यह कोई जरूरी नहीं कि पत्नी को पति के टाइटल से पहचाना जाए. उनकी पत्नी ने अपना सरनेम नहीं बदला क्योंकि वह पहले से अपने करियर में सेटल्ड थीं और पहचान भी बना चुकी थीं.