देवभूमि में यहां लखिया भूत को देखने उमड़ते हैं लोग, मुखौटों के पीछे छुपी है 500 वर्ष पुरानी शौर्य गाथा
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पिथौरागढ़: सीमांत जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ में भादो माह में मनाया जाने वाला हिलजात्रा उत्तराखंड का प्रमुख मुखौटा नृत्य है. जो सीमांत की संस्कृति और विरासत को अपने आप में समेटे हुए है. वहीं ये लोगों को एकता के सूत्र में भी बांधता है. समय के साथ इस पर्व का स्वरूप बदल चुका है. आज इस अतीत की विरासत को देखने लोग दूर-दूर से आते हैं. वहीं इस पर्व में इस्तेमाल होने वाले मुखोटे सोर घाटी की वीरता के इतिहास को दर्शाते हैं.
पहाड़ों में लोकपर्व धार्मिक आस्था और संस्कृति का पर्याय माने जाते है. इनमें से कुछ ऐसे पर्व भी हैं जो खुद में खास महत्व लिए हुए है. ऐसी ही खास बात है सोरघाटी पिथौरागढ़ के ऐतिहासिक हिलजात्रा पर्व में, जो शायद ही कहीं और देखने को मिले. दिखने में साधारण से लगने वाले ये मुखौटे किसी नाटक में अभिनय करने वाले कलाकारों के नहीं बल्कि इन मुखौटों के पीछे छुपा है, 500 साल पुराना गौरवशाली इतिहास. जिसकी इबारत पिथौरागढ़ के कुमौड़ गांव के रहने वाले चार महर भाइयों ने लिखी थी.