देश के अधिकांश हिस्सों में आजकल सर्दियां अपने चरम पर हैं. विशेषकर उत्तर भारत में इस समय शीतलहर तथा कोहरा लोगों की परेशानियों को काफी बढ़ा रहा है. वैसे तो हर मौसम की अपनी अलग परेशानियां होती हैं लेकिन सर्दी के मौसम में लोगों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं निसन्देह काफी बढ़ जाती है. विशेषतौर पर ऐसे लोग जो अस्थमा, ब्रोंकाईटिस या अन्य श्वास संबंधी समस्याओं से पीड़ित हों या उन्हे लेकर संवेदनशील हों , उनकी परेशानियां इस मौसम में काफी ज्यादा बढ़ जाती है. Necessary diet to avoid asthma . Ayurvedic precautions for asthma .
विशेषतौर पर अस्थमा की बात करें तो सर्दियां कई बार पीड़ितों के लिए गंभीर परेशानियों या अवस्था का कारण भी बन सकती है. दरअसल इस रोग में पहले से ही मरीजों के श्वसन मार्ग में कम या ज्यादा सूजन रहती ही है, लेकिन ठंड के मौसम में आमतौर पर यह सूजन बढ़ जाती है और श्वास नली संकुचित होने या सिकुड़ने लगती है. जिससे उन्हे सांस लेने में परेशानी या थोड़े से काम या चलने में ही सांस भारी होने या फूलने जैसी समस्या होने लगती हैं. जिससे फेफड़े भी प्रभावित होने लगते हैं. वहीं कफ की समस्या भी बढ़ने लगती हैं. जिससे सीने में जकड़न, खांसी तथा अन्य समस्याएं होने की आशंका भी बढ़ जाती है.
आयुर्वेद में अस्थमा : Asthma in Ayurveda
Dr Anil Joshi Ayurvedic Hospital , Haridwar ( हरिद्वार उत्तराखंड के आयुर्वेदिक चिकित्सालय के चिकित्सक डॉ अनिल जोशी बीएएमएस ) बताते हैं कि अस्थमा या अन्य श्वास संबंधी समस्याएं मुख्यतः कफ तथा वात दोष के कारण होती है. आयुर्वेद में गंभीर अस्थमा को महा श्वास, एलर्जिक अस्थमा को तमक श्वास, तथा मध्यम या हल्के अस्थमा को शूद्र श्वास नाम से संबोधित किया जाता हैं. आमतौर पर लोगों को लगता है कि अस्थमा से पूरी तरह से छुटकारा पाना संभव नहीं है लेकिन आयुर्वेद में माना जाता है कि कुछ प्रकार के अस्थमा का सही समय पर सही इलाज करने से इससे राहत पाई जा सकती है. वहीं गंभीर अस्थमा या एलर्जिक कारणों से होने वाले अस्थमा को दवाइयों तथा सावधानियों से काफी हद तक नियंत्रित किया तथा रखा जा सकता है.
आमतौर पर इस रोग के इलाज में पिप्पली , हरीतकी, शुंठी, मधु, वसाका, कंटकारी, पुष्करमूल, वासावलेह, सितोपलादि चूर्ण तथा मुलेठी आदि युक्त शुद्ध व मिश्रित रसायन, कनकासव व श्वासकुठार रस जैसे आसव तथा च्यवनप्राश जैसी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली औषधियां दी जाती हैं. इसके अलावा अस्थमा के इलाज में रसोनम यानी लहसुन तथा हींग को भी औषधि सरीखा ही माना जाता है. आयुर्वेद में अस्थमा के इलाज के लिए औषधि के अलावा कुछ अन्य उपचार पद्दतीयों का उपयोग भी किया जाता है.
कैसे करे अस्थमा से बचाव : How to prevent Asthma
डॉ जोशी बताते है कि सिर्फ अस्थमा में ही नहीं बल्कि इस मौसम में होने वाली एलर्जी या अन्य श्वास संबंधी समस्याओं के कारण तथा उन्हे ट्रिगर करने वाले कारक भी अलग-अलग हो सकते हैं. आयुर्वेद में समस्या के इलाज का निर्धारण उसके कारण और प्रकार के आधार पर ही किया जाता है. चूंकि आयुर्वेद में इलाज के लिए सिर्फ औषधि या उपचार पद्दती पर निर्भर नहीं रहा जाता है बल्कि इलाज में जीवनशैली व आहार संबंधी सावधानियों को भी शामिल किया जाता है, इसीलिए इस तरह के रोगों व समस्याओं के निस्तारण के लिए भी कुछ विशेष प्रकार के आहार को अपनाने तथा आहार संबंधी व जीवनशैली संबंधी कुछ सावधानियों का ध्यान रखने के निर्देश दिए जाते हैं.
Dr Anil Joshi बताते हैं सर्दी के मौसम में अस्थमा पीड़ितों को अपने आहार में ऐसे खाद्य पदार्थों को शामिल करना चाहिए जिनकी तासीर गरम हो तथा जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करते हों. इसके अलावा रोजमर्रा की आहार दिनचर्या में किसी ना किसी माध्यम में नियंत्रित मात्रा में अदरक, तुलसी, लहसुन, आंवला, अंजीर तथा काली मिर्च, लौंग, बड़ी इलायची व जायफ़ल जैसे सूखे मसाले शामिल करना भी लाभकारी होता है. इसके अलावा इस मौसम में ठंडे पानी की बजाय हल्के गर्म या कुनकुने पानी का सेवन करना, प्रतिदिन हल्दी वाला दूध पीना तथा हल्के गरम पानी में अदरक का रस व शहद मिलाकर उसका सेवन करना भी फायदेमंद होता है.
इसके अलावा ऐसे लोगों को चिकित्सक से परामर्श लेकर अपने आहार में विटामिन सी युक्त आहार की मात्रा बढ़ानी चाहिए, क्योंकि इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बढ़ती ही है तथा ही यह काफी हद तक मौसमी संक्रमण के प्रभाव में आने से भी बचाता है. दरअसल अस्थमा पीड़ित लोगों के मौसमी संक्रमण के प्रभाव में आने से उनकी परेशानियां दोगुनी बढ़ सकती हैं. इसके साथ ही अस्थमा के रोगियों को ठंड में ठंडी तासीर वाले आहार, मांसाहार, तेज मसालेदार , तले भुने या गरिष्ठ भोजन, दही, ठंडे पानी , कोल्ड ड्रिंक या आइसक्रीम आदि ठंडी चीजों , अधिक मीठे आहार तथा दही के सेवन से परहेज करना चाहिए.
अन्य सावधानियां
- आहार के अलावा अस्थमा को नियंत्रित रखने में जीवनशैली विशेषकर स्वच्छता संबंधी व वातावरण से जुड़ी कुछ अन्य सावधानियों को ध्यान में रखना भी फायदेमंद होता है. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- नमी और धूल भरी जगह से बचना चाहिए.
- ठंड के मौसम में सुबह बहुत जल्दी तथा धुंध या कोहरे में सैर करने या घर से निकलने से बचना चाहिए.
- विशेषरूप से एलर्जिक अस्थमा से पीड़ित लोगों को ताजे पेंट, किसी भी प्रकार के खुशबू वाले स्प्रे फिर चाहे वो कीटनाशक वाले हो या परफ्यूम से बचना चाहिए.
- अस्थमा से पीड़ित लोगों को धूंए वाले स्थान (भले ही धूंआ अगरबत्ती, धूपबत्ती, हवन तथा गाड़ियों या फैक्ट्रियों आदि का ही क्यों ना हो), तथा ज्यादा प्रदूषण वाले स्थान पर जाने से बचना चाहिए. यदि जाना जरूरी हो तो हमेशा मास्क पहनकर या नाक पर कपड़ा ढक ही ऐसे स्थानों पर जाना चाहिए.
- धूम्रपान करने से बचना चाहिए तथा धूम्रपान करने वाले विशेषकर सिगरेट पीने वालों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए.
- ऐसे लोगों को बहुत ज्यादा व जटिल शारीरिक व्यायाम से बचना चाहिए तथा हमेशा प्रशिक्षक द्वारा बताए गए हल्के फुल्के तथा सेहत के लिए उपयुक्त व्यायाम ही करने चाहिए.
- योग तथा श्वास संबंधी व्यायाम का नियमित अभ्यास इस समस्या में काफी फायदेमंद होता है.
चिकित्सीय जांच जरूरी
वह बताते हैं कि आयुर्वेद में अस्थमा से बचाव या उसके नियंत्रण के लिए औषधियों के अलावा कुछ अन्य उपचार पद्धतियों को भी अपनाया जाता है जैसे नस्य कर्म व वमन कर्म आदि. वह बताते हैं कि इन उपचारों तथा पंचकर्म के तहत कुछ अन्य शुद्धिकरण पद्धतियों से भी अस्थमा में काफी राहत मिलती है. आहार संबंधी व अन्य सावधानियों के अलावा बहुत जरूरी है कि अस्थमा या किसी भी श्वास सम्बधी समस्या का इलाज हमेशा चिकित्सक से परामर्श लेने के बाद तथा उनके द्वारा बताई गई दवाइयों से ही करना चाहिए. दरअसल सिर्फ श्वास संबंधी ही नहीं बल्कि कई समस्याएं कई बार एक जैसे लक्षण व प्रभाव दिखा सकती हैं लेकिन उनके होने के कारण, उन्हें प्रभावित करने वाले कारक तथा उनकी प्रकृति व गंभीरता हर व्यक्ति में अलग अलग हो सकती है. ऐसे में सही इलाज ही रोग से राहत दिला सकता है. वह बताते हैं कि सही इलाज तथा सही समय पर इलाज ना होने से कई बार स्थिति गंभीर तथा जानलेवा भी हो सकती है.