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लंबे समय तक कोरोना से बीमार लोगों पर दो साल तक गंभीर बीमारियों का रहता है खतरा

हाल ही में Lancet पत्रिका द्वारा किए गए एक अध्यन में सामने आया था कि effect of long covid19 का सामना करने वाले लोगों में संक्रमण होने के दो साल बाद तक भी न्यूरोलॉजिकल समस्याओं Dementia seizures neurological problems के होने का जोखिम हो सकता है. सिर्फ इस शोध में ही नही बल्कि इससे पहले हुए कई शोधों में भी लॉन्ग कोविड के प्रभावों तथा उसके कारण हल्की व गंभीर स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं का जोखिम बढ़ने की बात कही जाती रही है. Effect of long covid19 dementia . Dementia seizures neurological problems .

effect of long covid19 is dementia seizures neurological problems
लैंसेट पत्रिका
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Published : Aug 29, 2022, 6:31 PM IST

Updated : Sep 14, 2022, 12:41 PM IST

कोविड-19 से ठीक होने के बाद भी कई लोग लंबे समय तक लॉन्ग कोविड के लक्षणों का अनुभव करते हैं. इन लक्षणों में कुछ सामान्य होते है तो कई बार यह लक्षण स्वास्थ्य के लिए काफी चिंतनीय भी होते है. लॉन्ग कोविड के प्रभावों तथा उसके कारण होने वाली शारीरिक व मानसिक समस्याओं को लेकर पिछले 2-3 सालों में दुनिया भर में हुए कई शोध हुए हैं. इसी श्रंखला में हाल ही में स्वास्थ्य पत्रिका लैंसेट ने भी एक अध्ययन किया था जिसमें कहा गया है कि कोविड-19 से ठीक होने के दो साल बाद तक भी मरीजों में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (Neurological disorder problems) जैसे मनोभ्रंश या डिमेशिया और दौरे जैसी न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का जोखिम हो सकता है.

शोध के नतीजे : द लैंसेट साइकियाट्री जर्नल (The Lancet Psychiatry Journal) में प्रकाशित हुए इस अध्ययन में सामने आया कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद पहले छह महीनों में पीड़ितों में कुछ न्यूरोलॉजिकल या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के होने का खतरा ज्यादा होता है. विशेषतौर पर ऐसे लोग जो संक्रमण होने से पहले से किसी प्रकार की श्वास संबंधी समस्याओं का शिकार रहें हों उनमें अवसाद और एंग्जाइटी जैसी समस्याओं के लक्षण देर से जाते हैं. इस अध्ययन में 1.25 मिलियन से अधिक कोरोना मरीजों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड की जांच की गई थी.

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इस अध्ययन में 18 से 64 आयु वर्ग के ऐसे वयस्कों को विषय बनाया गया था जिन्हें दो साल पहले कोविड -19 हुआ था. अध्ययन में पाया गया कि 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों में कोविड 19 से ठीक होने के बाद 'ब्रेन फॉग (Brain fog)' डिमेंशिया या मनोभ्रंश और मानसिक विकारों के मामले ज्यादा सामने आए थे. वहीं वयस्कों की तुलना में बच्चों में कोरोना से ठीक होने बाद न्यूरोलॉजिकल और कुछ मनोरोगों व विकारों के होने के मामले कम सामने आए थे. इसके अलावा कोविड-19 के डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित लोगों में चिंता, संज्ञानात्मक नुकसान, मिर्गी या दौरे और इस्केमिक स्ट्रोक (Ischemic stroke) का उच्च जोखिम ओमिक्रॉन व अन्य वेरिएंट के पीड़ितों के मुकाबले ज्यादा थे.

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क्या कहते हैं अन्य शोध : लैंसेट पत्रिका के इस अध्धयन से पहले भी दुनिया भर में सिर्फ कोविड ही नही बल्कि लॉन्ग कोविड से जुड़ी परिस्थितियों व उसके पार्श्वप्रभावों को लेकर शोध किए जाते रहे हैं. अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (University of California, USA) के लॉस एंजिल्स स्वास्थ्य विज्ञान संस्थान (Los Angeles Institute of Health Sciences)द्वारा किए गए एक शोध में सामने आया था कोरोना से ठीक होने के बाद भी लगभग 30 फीसदी लोगों में 90 दिनों से ज्यादा समय तक में पोस्ट एक्यूट सीक्वल यानी लॉन्ग कोविड (Post Acute Sequel) की समस्या बनी रह सकती है. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया था कि कोविड-19 के चलते मधुमेह और मोटापे से ग्रस्त लोगों के अस्पताल में भर्ती होने की आशंका ज्यादा रहती है. जर्नल ऑफ जनरल इंटरनल मेडिसिन (Journal of General Internal Medicine) में प्रकाशित हुए शोध में यह भी बताया गया था कि ऑर्गन ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीजों में लॉन्ग कोविड के विकसित होने की आशंका कम होती हैं. इन अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1,038 लोगों को शामिल किया था, जिनमें से 309 मरीजों में लॉन्ग कोविड के विकसित होने का पता चला था.

वहीं 2021 में हुए ह्यूस्टन मेथोडिस्ट (Houston Methodist) के एक अध्ययन में भी लॉन्ग कोविड के प्रभावों को लेकर जानकारी दी गई थी. जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स (journal Scientific Reports) में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अमेरिका, यूरोप, यूके, ऑस्ट्रेलिया, चीन, मिस्र और मैक्सिको में किए गए 15 पीयर-रिव्यू अध्ययनों में से 47,910 रोगियों के स्वास्थ्य रिकार्ड का विश्लेषण किया था. जिसके दौरान रोगियों के छाती एक्स-रे और सीटी स्कैन, ब्लड क्लॉट से जुड़े जोखिम, सूजन के होने तथा उसकी मात्रा, खून की कमी, संभावित ह्रदय रोग , जीवाणु संक्रमण और फेफड़ों की क्षति के लक्षणों सहित कई बायोमाकर्स को मापा गया था. अध्ययन में पाया गया था कि हल्के, मध्यम और गंभीर कोविड संक्रमण से ठीक हो चुके लगभग 80% लोगों में हफ्तों से महीनों तक लॉन्ग कोविड का कम से कम एक दीर्घकालिक लक्षण देखा जा सकता है. शोध के नतीजों में बताया गया था कि शोध प्रतिभगियों के स्वास्थ्य रिकार्ड के अनुसार लॉन्ग कोविड के जो लक्षण पीड़ितों में सबसे आम नजर आए थे उनमें थकान 58%, सिरदर्द 44%, एकाग्रता में कमी या ध्यान विकार 27%, बालों का झड़ना 25%, श्वास संबंधी समस्या 24% , स्वाद की हानि 23% और गंध ना आना 21% शामिल हैं.

टला नही है खतरा : पिछले दो-तीन सालों में कोविड-19 के अलग-अलग वेरिएंट (Covid19 variants) ने दुनिया भर में लोगों को काफी परेशान किया है और यह सिलसिला अभी भी जारी है. हालांकि वैक्सीन तथा दवाओं के माध्यम के इसके प्रभावों को काफी हद तक कम करने में चिकित्सकों ने सफलता पाई है लेकिन इससे पूरी से छुटकारा अभी तक लोगों को नही मिला है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि सिर्फ कोविड होने की स्थिति में ही नही बल्कि उससे ठीक होने के बाद भी स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जाय. वहीं यदि किसी व्यक्ति में लॉन्ग कोविड के लक्षण व प्रभाव नजर आ रहे हो तो एक बार चिकित्सक से संपर्क अवश्य किया जाय तथा उसके द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन किया जाय.

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कोविड-19 से ठीक होने के बाद भी कई लोग लंबे समय तक लॉन्ग कोविड के लक्षणों का अनुभव करते हैं. इन लक्षणों में कुछ सामान्य होते है तो कई बार यह लक्षण स्वास्थ्य के लिए काफी चिंतनीय भी होते है. लॉन्ग कोविड के प्रभावों तथा उसके कारण होने वाली शारीरिक व मानसिक समस्याओं को लेकर पिछले 2-3 सालों में दुनिया भर में हुए कई शोध हुए हैं. इसी श्रंखला में हाल ही में स्वास्थ्य पत्रिका लैंसेट ने भी एक अध्ययन किया था जिसमें कहा गया है कि कोविड-19 से ठीक होने के दो साल बाद तक भी मरीजों में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (Neurological disorder problems) जैसे मनोभ्रंश या डिमेशिया और दौरे जैसी न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का जोखिम हो सकता है.

शोध के नतीजे : द लैंसेट साइकियाट्री जर्नल (The Lancet Psychiatry Journal) में प्रकाशित हुए इस अध्ययन में सामने आया कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद पहले छह महीनों में पीड़ितों में कुछ न्यूरोलॉजिकल या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के होने का खतरा ज्यादा होता है. विशेषतौर पर ऐसे लोग जो संक्रमण होने से पहले से किसी प्रकार की श्वास संबंधी समस्याओं का शिकार रहें हों उनमें अवसाद और एंग्जाइटी जैसी समस्याओं के लक्षण देर से जाते हैं. इस अध्ययन में 1.25 मिलियन से अधिक कोरोना मरीजों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड की जांच की गई थी.

Booster Dose : अगर है ये बीमारी तो बूस्टर डोज के बाद भी बरतें एक्स्ट्रा सावधानी

इस अध्ययन में 18 से 64 आयु वर्ग के ऐसे वयस्कों को विषय बनाया गया था जिन्हें दो साल पहले कोविड -19 हुआ था. अध्ययन में पाया गया कि 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों में कोविड 19 से ठीक होने के बाद 'ब्रेन फॉग (Brain fog)' डिमेंशिया या मनोभ्रंश और मानसिक विकारों के मामले ज्यादा सामने आए थे. वहीं वयस्कों की तुलना में बच्चों में कोरोना से ठीक होने बाद न्यूरोलॉजिकल और कुछ मनोरोगों व विकारों के होने के मामले कम सामने आए थे. इसके अलावा कोविड-19 के डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित लोगों में चिंता, संज्ञानात्मक नुकसान, मिर्गी या दौरे और इस्केमिक स्ट्रोक (Ischemic stroke) का उच्च जोखिम ओमिक्रॉन व अन्य वेरिएंट के पीड़ितों के मुकाबले ज्यादा थे.

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क्या कहते हैं अन्य शोध : लैंसेट पत्रिका के इस अध्धयन से पहले भी दुनिया भर में सिर्फ कोविड ही नही बल्कि लॉन्ग कोविड से जुड़ी परिस्थितियों व उसके पार्श्वप्रभावों को लेकर शोध किए जाते रहे हैं. अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (University of California, USA) के लॉस एंजिल्स स्वास्थ्य विज्ञान संस्थान (Los Angeles Institute of Health Sciences)द्वारा किए गए एक शोध में सामने आया था कोरोना से ठीक होने के बाद भी लगभग 30 फीसदी लोगों में 90 दिनों से ज्यादा समय तक में पोस्ट एक्यूट सीक्वल यानी लॉन्ग कोविड (Post Acute Sequel) की समस्या बनी रह सकती है. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया था कि कोविड-19 के चलते मधुमेह और मोटापे से ग्रस्त लोगों के अस्पताल में भर्ती होने की आशंका ज्यादा रहती है. जर्नल ऑफ जनरल इंटरनल मेडिसिन (Journal of General Internal Medicine) में प्रकाशित हुए शोध में यह भी बताया गया था कि ऑर्गन ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीजों में लॉन्ग कोविड के विकसित होने की आशंका कम होती हैं. इन अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1,038 लोगों को शामिल किया था, जिनमें से 309 मरीजों में लॉन्ग कोविड के विकसित होने का पता चला था.

वहीं 2021 में हुए ह्यूस्टन मेथोडिस्ट (Houston Methodist) के एक अध्ययन में भी लॉन्ग कोविड के प्रभावों को लेकर जानकारी दी गई थी. जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स (journal Scientific Reports) में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अमेरिका, यूरोप, यूके, ऑस्ट्रेलिया, चीन, मिस्र और मैक्सिको में किए गए 15 पीयर-रिव्यू अध्ययनों में से 47,910 रोगियों के स्वास्थ्य रिकार्ड का विश्लेषण किया था. जिसके दौरान रोगियों के छाती एक्स-रे और सीटी स्कैन, ब्लड क्लॉट से जुड़े जोखिम, सूजन के होने तथा उसकी मात्रा, खून की कमी, संभावित ह्रदय रोग , जीवाणु संक्रमण और फेफड़ों की क्षति के लक्षणों सहित कई बायोमाकर्स को मापा गया था. अध्ययन में पाया गया था कि हल्के, मध्यम और गंभीर कोविड संक्रमण से ठीक हो चुके लगभग 80% लोगों में हफ्तों से महीनों तक लॉन्ग कोविड का कम से कम एक दीर्घकालिक लक्षण देखा जा सकता है. शोध के नतीजों में बताया गया था कि शोध प्रतिभगियों के स्वास्थ्य रिकार्ड के अनुसार लॉन्ग कोविड के जो लक्षण पीड़ितों में सबसे आम नजर आए थे उनमें थकान 58%, सिरदर्द 44%, एकाग्रता में कमी या ध्यान विकार 27%, बालों का झड़ना 25%, श्वास संबंधी समस्या 24% , स्वाद की हानि 23% और गंध ना आना 21% शामिल हैं.

टला नही है खतरा : पिछले दो-तीन सालों में कोविड-19 के अलग-अलग वेरिएंट (Covid19 variants) ने दुनिया भर में लोगों को काफी परेशान किया है और यह सिलसिला अभी भी जारी है. हालांकि वैक्सीन तथा दवाओं के माध्यम के इसके प्रभावों को काफी हद तक कम करने में चिकित्सकों ने सफलता पाई है लेकिन इससे पूरी से छुटकारा अभी तक लोगों को नही मिला है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि सिर्फ कोविड होने की स्थिति में ही नही बल्कि उससे ठीक होने के बाद भी स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जाय. वहीं यदि किसी व्यक्ति में लॉन्ग कोविड के लक्षण व प्रभाव नजर आ रहे हो तो एक बार चिकित्सक से संपर्क अवश्य किया जाय तथा उसके द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन किया जाय.

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Last Updated : Sep 14, 2022, 12:41 PM IST
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