उत्तरकाशीः पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने ऐतिहासिक गरतांग गली की सीढ़ियों को बदरंग करने के मामले का संज्ञान लिया है. महाराज ने जिलाधिकारी मयूर दीक्षित से बात कर गरतांग गली को बदरंग करने वाले लोगों को चिन्हित करने के निर्देश दिए हैं. साथ ही आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा है. इसके अलावा गरतांग गली में सुरक्षा के मद्देनजर कर्मचारी तैनात करने के भी निर्देश दिए हैं.
बता दें कि बीती मंगलवार को गरतांग गली की सीढ़ियों की रेलिंगों पर कुछ लोगों ने नुकीली वस्तुओं से कुरेद कर अपने नाम उकेर दिए थे. साथ ही कोयले आदि से नाम आदि लिखकर बंदरंग कर दिया था. जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. जिस पर उत्तरकाशी के पर्यटन व्यवसायियों ने भी कड़ी आपत्ति जताते हुए इसकी निंदा की थी और इस ऐतिहासिक धरोहर के साथ छेड़छाड़ व खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी.
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सतपाल महाराज ने दिए ये निर्देशः पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने मामले को गंभीरता से लेते हुए डीएम मयूर दीक्षित को फोन घुमाया. उन्होंने फोन पर डीएम मयूर दीक्षित से गरतांग गली को बदरंग करने वाले लोगों को चिन्हित कर गंगोत्री नेशनल पार्क प्रशासन को एफआईआर (FIR) दर्ज करने के निर्देश दिए. साथ ही गरतांग गली की निगरानी के लिए दो फॉरेस्ट गार्ड तैनात करने के निर्देश भी विभाग को दिए हैं.
गरतांग गली देखने पहुंच रहे पर्यटक: गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारियों की मानें तो गरतांग गली खुलने के बाद दो हफ्ते में करीब 350 से ज्यादा पर्यटक गरतांग गली का दीदार कर चुके हैं और पर्यटकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, लेकिन कुछ बिगड़ैल पर्यटक ऐतिहासिक सीढ़ियों को बदरंग करने में तुले हैं. जिससे गरतांग गली की खूबसूरती खराब हो रही है.
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इंजीनियरिंग का नायाब नमूना कही जाने वाली गरतांग (गड़तांग) गली की करीब 150 मीटर लंबी सीढ़ियां बीते कई सालों से अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रही थी. लोक निर्माण विभाग ने बीते अप्रैल महीने में करीब 64 लाख की लागत से गरतांग गली का पुनर्निर्माण का कार्य शुरू किया. जो तैयार होने के बाद पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है.
क्या है गरतांग गलीः 17वीं शताब्दी (लगभग 300 साल पहले) पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी चट्टानों को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था. कहा जाता है कि नेलांग-जाडुंग के जाड़ समुदाय के एक सेठ ने व्यापारियों की मांग पर पेशावर के पठानों की मदद से गरतांग गली से एक सुगम मार्ग बनवाया था.
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करीब 150 मीटर लंबी लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा गरतांग गली भारत-तिब्बत व्यापार की साक्षी रही है. ये आज भी इंजीनियरिंग के लिए एक मिसाल है और आज के तकनीकी इंजीनियरिंग को भी चैलेंज करती है. गरतांग गली की सीढ़ियों को खड़ी चट्टान वाले हिस्से में लोहे की रॉड गाड़कर और उसके ऊपर लकड़ी बिछाकर रास्ता तैयार किया था.
बेहद संकरा और जोखिम भरा यह रास्ता गरतांग गली के नाम से प्रसिद्ध हुआ. जो अपने आप में कारीगरी का एक नया नमूना था क्योंकि, गरतांग गली के ठीक नीचे 300 मीटर गहरी खाई है. जबकि, नीचे जाड़ गंगा नदी भी बहती है. इस सीढ़ियों से भारत-तिब्बत व्यापार किया जाता था, जो कि भारत-चीन युद्ध के बाद बंद हो गया.
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साल 1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर एवं भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आते-जाते थे. गरतांग गली सबसे पुरानी व्यापारिक मार्ग हुआ करती थी. यहां से ऊन, गुड़ और मसाले वगैरह भेजे जाते थे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान गरतांग गली ने सेना को अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी.