उत्तरकाशी: जिंदगी हमारी सितम हो गई, खुशियां न जानें कहा दफन हो गईं... 85 साल की सुमनी देवी भी कुछ ऐसा ही सोचती हैं. इसे समय का फेर कहें या अपनों का सितम, जिनके लिए बुजुर्ग महिला ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया वो अपने आज इन्हें बेगाना बनाकर अकेले छोड़ गए हैं. उत्तरकाशी के नौगांव ब्लॉक की रहने वाली इस बुजुर्ग महिला के 3 बेटे हैं, जो इन्हें अपने घर में रखने को तैयार नहीं हैं. इस वजह से बुजुर्ग और बीमार महिला को नौगांव के मुख्य बाजार की सड़कों पर आसरे के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है.
मजबूर मां आशियाने की मांग राहगीरों से करने के साथ ही एक चौखट से दूसरे चौखट छत की खोज में भटकने को मजबूर हो गई है. बेसहारा मजबूर महिला को इस तरह सड़कों पर भटकते देख एक भले आदमी ने इसकी जानकारी पुलिस को दी. लोगों ने घर का पता मिलने पर बुजुर्ग महिला के बेटों को इत्तिला किया लेकिन किसी ने भी आने से मना कर दिया. जब भी गैरों की इनायत देखी, हमको अपनों के सितम याद आये...
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किसी तरह से राहगीरों और पुलिस ने बुजुर्ग सुमनी देवी की इस हालत की जानकारी उनकी बेटी तक पहुंचाई, जो उन्हें अपने साथ ले गई. इस तरह की घटना से याद आता है कि किस तरह ये समाज बेटियों को दुत्कारते हुए बेटों को ही बढ़ावा देने में लगा है. बेटों की चाहत में बेटियों को जन्म से पहले ही मारकर लड़कों को तरजीह देना हमारी देश की समाजिक कुरीतियों में से एक है. बेटियों को तो कोख में ही मारते हो, क्या खुद किसी बेटे की कोख से आते हो...
नौगांव चौकी प्रभारी प्रदीप तोमर ने फोन पर ईटीवी भारत को बताया कि चार-पांच दिन पहले इस बुजुर्ग महिला को घर से बाहर निकालने का मामला सामने आया था. उसके बाद बुजुर्ग महिला के परिजन से संपर्क किया गया तो बड़कोट से महिला की बेटी और दामाद नौगांव आये और उन्हें अपने साथ ले गए.
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इस वाकये के बाद मां का मन जरूर चीख-चीखकर कह रहा होगा - अगले जनम मोहे बिटिया ही दी जो. भगवान ने भी क्या खूब रिश्ता बनाया है, जिन जिम्मेदारियों को बेटे न निभा सके उन्हें बेटियों ने निभाया है...