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Uttarkashi Magh Mela: नरु और बिजोरा की प्रेमगाथा है खास, युवती को लेकर भिड़े थे दो घाटी के लोग

बाड़ाहाट (अब उत्तरकाशी) के तिलोथ गांव में रहने वाले दो भाई नरु और बिजु की वीरता की गाथा काफी प्रचलित है. इन दोनों भाइयों ने गोरखाओं को नाकों चने चबा दिया था. इसके अलावा नरु और बिजोरा की प्रेम गाथा ऐसी थी कि दो घाटी यानी गंगा और यमुना के लोग आपस में भिड़ गए थे. इसे लेकर बाड़ाहाट कु थौलू में संवेदना समूह ने नाटक का मंचन किया. जिसे देख लोग अभिभूत हो गए.

Naru Bijula Story
नरु बिजुला की गाथा
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Published : Jan 20, 2023, 10:16 PM IST

Updated : Jan 20, 2023, 10:30 PM IST

नरु और बिजु पर आधारित नाटक का मंचन.

उत्तरकाशीः ऐतिहासिक माघ मेला यानी बाड़ाहाट कु थौलू में नरु-बिजोरा पर आधारित नाटक का मंचन देख दर्शक अभिभूत हो गए. संवेदना समूह के कलाकारों ने उत्तरकाशी जिले के वीर भड़ दो भाई नरु-बिजु समेत नरु-बिजोरा की प्रेमगाथा पर आधारित नाटक का मंचन किया. इसके अलावा गंगा अवतरण की नृत्य नाटिका की प्रस्तुति भी देखने को मिली. नरु-बिजु दो भाइयों की वीरता और प्रेम गाथा है. जिसे लेकर उत्तरकाशी में भयानक युद्ध हुआ था.

उत्तरकाशी माघ मेला की छठवीं सांस्कृतिक संध्या नाटक और नृत्य के रंगमंच के लिए प्रसिद्ध संस्था संवेदना समूह के कलाकारों के नाम रही. जिसमें उत्तरकाशी के दो वीर भड़ भाई नरु-बिजु की वीरता पर आधाारित नाटक का जबरदस्त मंचन किया गया. नाटक में नरु और बुजुला के प्रेमकथा की शुरुआत बाड़ाहाट के थौलू से होती है. जहां पर नरु उस समय की प्रथाओं के विपरीत जाकर बिजोरा से शादी करते हैं और उसके बाद बिजोरा के गांव और क्षेत्र के लोगों की ओर से इसका विरोध किया जाता है.

जिसके बाद गीठ पट्टी और तिलोथ समेत आसपास के क्षेत्र के लोगों का युद्ध होता है, लेकिन उसके बाद बिजोरा और अन्य लोगों के बीच बचाव के साथ युद्ध समाप्त होता है. साथ ही नाटक में गिठियों की पंचायत और नरु-बिजोरा के संवाद, बाड़ाहाट का थौलू का दृश्य समेत इंद्रावती की गाड़ से नहर बनाने के दृश्य ने दर्शकों का जमकर मन मोहा.
ये भी पढ़ेंः बाड़ाहाट कु थौलू में दिखी अनूठी संस्कृति, हाथी के स्वांग पर कंडार देवता हुए सवार

ये है कथाः 'नरु-बिजोरा द्वी होला भाई नरु-बिजुला...' गीत अकसर पहाड़ों में हर शादी-विवाह और अन्य समारोह में सुनने को मिलता है. यह गीत असल में दो भाइयों से जुड़ा है. नरु और बिजु नाटक के लेखक अजय नौटियाल ने बताते हैं यह गाथा करीब तीन सौ साल पुरानी है. उस समय उत्तराखंड में गोरखाओं का राज था. उस दौर में गोरखा भी नरु और बिजु को पराजित नहीं कर पाए थे.

बाड़ागड्डी क्षेत्र में तिलोथ सेरा तक सिंचाई नहर पहुंचाने के साथ ही अन्य विकास कार्यों और वीरता के चलते इन वीर भड़ भाइयों को क्षेत्र के राजा की उपाधि मिली थी. टिहरी रियासत बनने के बाद राजा सुदर्शन शाह ने उनके प्रभाव को देखते हुए उन्हें बाड़ागड्डी क्षेत्र का सयाणा नियुक्त किया था.

बाड़ाहाट कु थौलू में नरु को गीठ क्षेत्र की एक युवती से प्रेम हो जाता है. यह दोनों भाई उस युवती को अपने साथ ले आते हैं. जिस पर दोनों क्षेत्र के लोगों में भीषण युद्ध होता है. नौटियाल बताते हैं कि उन्होंने किवदंतियों एवं पुराने गीतों के साथ ही क्षेत्र के बुजुर्गों से बातचीत कर इस नाटक का कथानक तैयार किया है.

नरु और बिजु पर आधारित नाटक का मंचन.

उत्तरकाशीः ऐतिहासिक माघ मेला यानी बाड़ाहाट कु थौलू में नरु-बिजोरा पर आधारित नाटक का मंचन देख दर्शक अभिभूत हो गए. संवेदना समूह के कलाकारों ने उत्तरकाशी जिले के वीर भड़ दो भाई नरु-बिजु समेत नरु-बिजोरा की प्रेमगाथा पर आधारित नाटक का मंचन किया. इसके अलावा गंगा अवतरण की नृत्य नाटिका की प्रस्तुति भी देखने को मिली. नरु-बिजु दो भाइयों की वीरता और प्रेम गाथा है. जिसे लेकर उत्तरकाशी में भयानक युद्ध हुआ था.

उत्तरकाशी माघ मेला की छठवीं सांस्कृतिक संध्या नाटक और नृत्य के रंगमंच के लिए प्रसिद्ध संस्था संवेदना समूह के कलाकारों के नाम रही. जिसमें उत्तरकाशी के दो वीर भड़ भाई नरु-बिजु की वीरता पर आधाारित नाटक का जबरदस्त मंचन किया गया. नाटक में नरु और बुजुला के प्रेमकथा की शुरुआत बाड़ाहाट के थौलू से होती है. जहां पर नरु उस समय की प्रथाओं के विपरीत जाकर बिजोरा से शादी करते हैं और उसके बाद बिजोरा के गांव और क्षेत्र के लोगों की ओर से इसका विरोध किया जाता है.

जिसके बाद गीठ पट्टी और तिलोथ समेत आसपास के क्षेत्र के लोगों का युद्ध होता है, लेकिन उसके बाद बिजोरा और अन्य लोगों के बीच बचाव के साथ युद्ध समाप्त होता है. साथ ही नाटक में गिठियों की पंचायत और नरु-बिजोरा के संवाद, बाड़ाहाट का थौलू का दृश्य समेत इंद्रावती की गाड़ से नहर बनाने के दृश्य ने दर्शकों का जमकर मन मोहा.
ये भी पढ़ेंः बाड़ाहाट कु थौलू में दिखी अनूठी संस्कृति, हाथी के स्वांग पर कंडार देवता हुए सवार

ये है कथाः 'नरु-बिजोरा द्वी होला भाई नरु-बिजुला...' गीत अकसर पहाड़ों में हर शादी-विवाह और अन्य समारोह में सुनने को मिलता है. यह गीत असल में दो भाइयों से जुड़ा है. नरु और बिजु नाटक के लेखक अजय नौटियाल ने बताते हैं यह गाथा करीब तीन सौ साल पुरानी है. उस समय उत्तराखंड में गोरखाओं का राज था. उस दौर में गोरखा भी नरु और बिजु को पराजित नहीं कर पाए थे.

बाड़ागड्डी क्षेत्र में तिलोथ सेरा तक सिंचाई नहर पहुंचाने के साथ ही अन्य विकास कार्यों और वीरता के चलते इन वीर भड़ भाइयों को क्षेत्र के राजा की उपाधि मिली थी. टिहरी रियासत बनने के बाद राजा सुदर्शन शाह ने उनके प्रभाव को देखते हुए उन्हें बाड़ागड्डी क्षेत्र का सयाणा नियुक्त किया था.

बाड़ाहाट कु थौलू में नरु को गीठ क्षेत्र की एक युवती से प्रेम हो जाता है. यह दोनों भाई उस युवती को अपने साथ ले आते हैं. जिस पर दोनों क्षेत्र के लोगों में भीषण युद्ध होता है. नौटियाल बताते हैं कि उन्होंने किवदंतियों एवं पुराने गीतों के साथ ही क्षेत्र के बुजुर्गों से बातचीत कर इस नाटक का कथानक तैयार किया है.

Last Updated : Jan 20, 2023, 10:30 PM IST
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