उत्तरकाशीः भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह रही और दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार गरतांग गली (Gartang Gali) की सीढ़ियां अब नए स्वरूप में तैयार हो रही हैं. लोक निर्माण विभाग गरतांग गली की सीढ़ियों का पुनर्निर्माण का कार्य कर रहा है. जिसका करीब 70 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है. यह गली करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. अगले 2 महीने के भीतर पर्यटकों के दीदार के लिए इसे खोल दिया जाएगा.
बता दें कि इंजीनियरिंग के नायाब नमूना गरतांग (गड़तांग) गली की सीढ़ियां बीते कई सालों से अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रही थी. लोक निर्माण विभाग ने बीते अप्रैल महीने में करीब 64 लाख की लागत से गरतांग गली का पुनर्निर्माण का कार्य शुरू किया. ये लगभग तैयार होने को है. ऐसे में गरतांग गली की करीब 150 मीटर लंबी सीढ़ियां अब नए रंग में नजर आने लगी हैं.
जिलाधिकारी मयूर दीक्षित का कहना है कि गरतांग गली के पुनर्निर्माण का कार्य 60 से 70 प्रतिशत पूरा हो चुका है. डेढ़ महीने में इसका निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा. उसके बाद कोविड की स्थिति को देखते हुए इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा. गरतांग गली के खुलने के बाद स्थानीय लोगों और साहसिक पर्यटन से जुड़े लोगों को फायदा मिलेगा.
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प्रशासनिक अधिकारियों की मानें तो गरतांग गली की सीढ़ियों का पुर्ननिर्माण कार्य बेहद कठिन परिस्थितियों में किया जा रहा है. क्योंकि, गरतांग गली के ठीक नीचे गहरी खाई है और जाड़ गंगा नदी भी बहती है. डेढ़ महीने के भीतर गरतांग गली पूरी तरह से पर्यटकों के जाने के लिए सुरक्षित होगी. वहीं, गरतांग गली का पुनर्निर्माण पूरा होने के बाद तो भारत-तिब्बत व्यापार में प्रयोग होने वाले पैदल मार्ग पर भी नेलांग तक ट्रैकिंग की संभावनाएं बन जाएंगी.
17वीं शताब्दी (लगभग 300 साल पहले) पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी चट्टानों को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था. कहा जाता है कि नेलांग-जाडुंग के जाड़ समुदाय के एक सेठ ने व्यापारियों की मांग पर पेशावर के पठानों की मदद से गरतांग गली से एक सुगम मार्ग बनवाया था.
करीब 150 मीटर लंबी लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा गरतांग गली भारत-तिब्बत व्यापार की साक्षी रही है. ये आज भी इंजीनियरिंग के लिए एक मिसाल है और आज के तकनीकी इंजीनियरिंग को भी चैलेंज करती है. गरतांग गली की सीढ़ियों को खड़ी चट्टान वाले हिस्से में लोहे की रॉड गाड़कर और उसके ऊपर लकड़ी बिछाकर रास्ता तैयार किया था.
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बेहद संकरा और जोखिम भरा यह रास्ता गरतांग गली के नाम से प्रसिद्ध हुआ. जो अपने आप में कारीगरी का एक नया नमूना था क्योंकि, गरतांग गली के ठीक नीचे 300 मीटर गहरी खाई है. जबकि, नीचे जाड़ गंगा नदी भी बहती है. इस सीढ़ियों से भारत-तिब्बत व्यापार किया जाता था, जो कि भारत-चीन युद्ध के बाद बंद हो गया.
साल 1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर एवं भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आते-जाते थे. गरतांग गली सबसे पुरानी व्यापारिक मार्ग हुआ करती थी. यहां से ऊन, गुड़ और मसाले वगैरह भेजे जाते थे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान गरतांग गली ने सेना को अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी.
नेलांग घाटी सामरिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है. गरतांग गली भैरव घाटी से नेलांग को जोड़ने वाले पैदल मार्ग पर जाड़ गंगा घाटी में मौजूद है. वन्यजीव और वनस्पति के लिहाज से ये जगह काफी समृद्ध है. उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी चीन सीमा से लगी है. सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जादूंग अंतिम चौकियां हैं.
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साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बने हालात के मद्देनजर भारत सरकार ने उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया था. तभी से नेलांग घाटी और जाडुंग गांव को खाली करवाकर वहां अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था.
यहां के गांवों में रहने वाले लोगों को एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद साल में एक ही बार अपने देवी-देवताओं को पूजने के लिए जाने की इजाजत दी जाती रही है. इसके बाद भारत के आम लोगों को भी नेलांग घाटी तक जाने की इजाजत गृह मंत्रालय भारत सरकार ने 2015 में दे दी थी. हालांकि, विदेशियों पर प्रतिबंध बरकरार है.