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उत्तरकाशी में अब नहीं महकेंगे फूल, रवांई घाटी में बंद होने की कगार पर फूलों की खेती

Farmers reduced flower cultivation in Uttarkashi एक समय था, जब काश्तकार फूलों की खेती को अपनाकर अपनी आर्थिकी सुधारते थे और उत्तरकाशी फूलों से महका करती थी. अब काश्तकारों ने फूलों की खेती करना कम कर दिया है. जिससे फूलों की खेती बंद होने की कगार पर है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 19, 2023, 1:50 PM IST

उत्तरकाशी: रवांई घाटी में डेढ़ दशक पहले शुरू हुई फूलों की खेती अब धीरे-धीरे बंद होने की कगार पर है. डेढ़ दशक पहले रवांई घाटी के कुछ काश्तकारों ने प्रयोग के तौर पर फूलों की खेती शुरू की थी. अच्छे परिणाम आने पर काश्तकारों ने इसे व्यापार का रूप दे दिया, लेकिन बाजार नहीं मिलने के चलते अब घाटी के काश्तकार फूलों की खेती करना बंद कर रहे हैं.

हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर हार्क संस्था के सहयोग से 2009 में नैणी, पिसाउं, किममी, मटियाली, कृष्णा, उपराड़ी, धारी, देवलसारी, मुराड़ी तुनालका, सौली, बिगराड़ी और राजगढ़ी क्षेत्र के 297 काश्तकारों ने गुलदाउदी, 64 काश्तकारों ने लिलियम और 63 काश्तकारों ने गेंदे के फूलों की खेती करनी शुरू की थी लेकिन अब ये खेती गायब होने की स्थिति में है.

काश्तकारों ने बताया कि अन्य नकदी फसलों की अपेक्षा फूलों की खेती में मेहनत कम लगती है. फूलों की खेती पर ना तो बीमारी लगती है और ना ही खाद और दवा की जरूरत पड़ती है. उन्होंने टमाटर, फ्रेंचबीन, मटर आदि नकदी फसलों के साथ-साथ फूलों की खेती को अतिरिक्त आय के लिए विकल्प के तौर पर चुना था, लेकिन बाजार की उपलब्धता न होने से अब उन्होंने फूलों की खेती करने से हाथ खड़े कर दिए हैं.

घाटी के नैणी गांव में सबसे ज्यादा फूलों की खेती होती है. 2019 तक गांव के 30 से 35 काश्तकार फूलों की खेती करते थे. जिनकी संख्या अब घटकर 4 रह गई है. वर्तमान में जगमोहन सिंह चंद, रविंद्र सिंह, भगवान सिंह और सुनील चंद फूलों की खेती कर रहे हैं. नवंबर में चार काश्तकारों ने करीब छह क्विंटल गुलदाउदी फूल देहरादून मंडी भेजे हैं, जिसका 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से दाम मिला है.

ये भी पढ़े: पहाड़ों पर लिलियम के फूलों की खेती कर युवा हो रहे मालामाल, सरकार दे रही है 80% तक की छूट

रवांई घाटी फल एवं सब्जी उत्पादक एसोसिएशन नौगांव के अध्यक्ष जगमोहन चंद ने बताया कि बाजार की उपलब्धता न होने से फूलों की खेती को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसानों का फूलों की खेती के प्रति रुझान घटा है. फूलों की खेती के लिए यदि अच्छा बाजार मिल जाए तो काश्तकार अन्य नकदी फसलों के साथ बड़े स्तर पर फूलों की व्यावसायिक खेती करेंगे, जो किसानों के लिए अतिरिक्त आय का साधन हो सकता है.

ये भी पढ़े: ठंडे इलाकों में उगने वाला फूल 'गुलदाउदी' उगा रहे हैं जयपुर में, जानिए कैसै और कितनी हो रही है आमदनी

उत्तरकाशी: रवांई घाटी में डेढ़ दशक पहले शुरू हुई फूलों की खेती अब धीरे-धीरे बंद होने की कगार पर है. डेढ़ दशक पहले रवांई घाटी के कुछ काश्तकारों ने प्रयोग के तौर पर फूलों की खेती शुरू की थी. अच्छे परिणाम आने पर काश्तकारों ने इसे व्यापार का रूप दे दिया, लेकिन बाजार नहीं मिलने के चलते अब घाटी के काश्तकार फूलों की खेती करना बंद कर रहे हैं.

हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर हार्क संस्था के सहयोग से 2009 में नैणी, पिसाउं, किममी, मटियाली, कृष्णा, उपराड़ी, धारी, देवलसारी, मुराड़ी तुनालका, सौली, बिगराड़ी और राजगढ़ी क्षेत्र के 297 काश्तकारों ने गुलदाउदी, 64 काश्तकारों ने लिलियम और 63 काश्तकारों ने गेंदे के फूलों की खेती करनी शुरू की थी लेकिन अब ये खेती गायब होने की स्थिति में है.

काश्तकारों ने बताया कि अन्य नकदी फसलों की अपेक्षा फूलों की खेती में मेहनत कम लगती है. फूलों की खेती पर ना तो बीमारी लगती है और ना ही खाद और दवा की जरूरत पड़ती है. उन्होंने टमाटर, फ्रेंचबीन, मटर आदि नकदी फसलों के साथ-साथ फूलों की खेती को अतिरिक्त आय के लिए विकल्प के तौर पर चुना था, लेकिन बाजार की उपलब्धता न होने से अब उन्होंने फूलों की खेती करने से हाथ खड़े कर दिए हैं.

घाटी के नैणी गांव में सबसे ज्यादा फूलों की खेती होती है. 2019 तक गांव के 30 से 35 काश्तकार फूलों की खेती करते थे. जिनकी संख्या अब घटकर 4 रह गई है. वर्तमान में जगमोहन सिंह चंद, रविंद्र सिंह, भगवान सिंह और सुनील चंद फूलों की खेती कर रहे हैं. नवंबर में चार काश्तकारों ने करीब छह क्विंटल गुलदाउदी फूल देहरादून मंडी भेजे हैं, जिसका 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से दाम मिला है.

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रवांई घाटी फल एवं सब्जी उत्पादक एसोसिएशन नौगांव के अध्यक्ष जगमोहन चंद ने बताया कि बाजार की उपलब्धता न होने से फूलों की खेती को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसानों का फूलों की खेती के प्रति रुझान घटा है. फूलों की खेती के लिए यदि अच्छा बाजार मिल जाए तो काश्तकार अन्य नकदी फसलों के साथ बड़े स्तर पर फूलों की व्यावसायिक खेती करेंगे, जो किसानों के लिए अतिरिक्त आय का साधन हो सकता है.

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