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भूकंप को लेकर विशेषज्ञ चिंतित, कहा- आज की स्थिति दिखा सकती है भयावाह मंजर - उत्तरकाशी में भूकंप

उत्तरकाशी में साल 1991 में आए भूकंप के बाद हर साल भूकंप से निपटने के लिए कई प्रकार के मॉकड्रिल किए जाते हैं. साल 1991 की त्रासदी को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि आज की स्थिति ज्यादा भयानक मंजर दिखा सकती है.

दोबारा आ सकती है साल 1991 की त्रासदी.
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Published : Oct 19, 2019, 7:49 PM IST

उत्तरकाशी: जिले में साल 1991 के आए भूकंप को याद कर लोग आज भी सहम जाते हैं. हर साल भूकंप से निपटने के लिए कई प्रकार के मॉकड्रिल किए जाते हैं, लेकिन भूकंप के दौरान होने वाले नुकसान पर अभी भी शासन-प्रशासन गंभीर नजर नहीं आ रहा. वहीं, विशेषज्ञों की मानें तो साल 1991 में भूकंप रोधी भवनों के निर्माण शैली की अनदेखी ही स्थानीय लोगों पर भारी पड़ी थी और आज की स्थिति ज्यादा भयानक मंजर दिखा सकती है.

दोबारा आ सकती है साल 1991 की त्रासदी.

बता दें कि उत्तरकाशी जनपद भूकंप के दृष्टिकोण से जोन 5 में आता है. साल 1991 के बाद से कई ऐसे भूकंप के झटके महसूस किए गए, जोकि भविष्य में बड़ी त्रासदी की ओर इशारा करते हैं. हालांकि 1991 के बाद से भूकंप के कारण कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ. लेकिन आज के तकनीकी युग में बन रहे भवन और साइट सेलेक्शन कभी भी किसी बड़े हादसे को न्योता दे सकते हैं.

पढ़ें: हल्द्वानी में डेंगू से अबतक 19 लोगों की मौत, 2487 मरीज अस्पताल में भर्ती

पर्यावरणविद और वरिष्ठ पत्रकार सूरत सिंह रावत का कहना है कि साल 1991 तक पहाड़ों में जो भूकंप रोधी भवनों की निर्माण शैली थी, लोग उसकी अनदेखी कर रहे थे. यही कारण था कि उस त्रासदी में कई लोगों ने अपनी जान गवां दी थी. सूरत सिंह ने कहा कि आज के समय की स्थिति और भी भयावह हो गई है. जोकि त्रासदी आने पर और ज्यादा भयानक मंजर दिखा सकती है.

उत्तरकाशी: जिले में साल 1991 के आए भूकंप को याद कर लोग आज भी सहम जाते हैं. हर साल भूकंप से निपटने के लिए कई प्रकार के मॉकड्रिल किए जाते हैं, लेकिन भूकंप के दौरान होने वाले नुकसान पर अभी भी शासन-प्रशासन गंभीर नजर नहीं आ रहा. वहीं, विशेषज्ञों की मानें तो साल 1991 में भूकंप रोधी भवनों के निर्माण शैली की अनदेखी ही स्थानीय लोगों पर भारी पड़ी थी और आज की स्थिति ज्यादा भयानक मंजर दिखा सकती है.

दोबारा आ सकती है साल 1991 की त्रासदी.

बता दें कि उत्तरकाशी जनपद भूकंप के दृष्टिकोण से जोन 5 में आता है. साल 1991 के बाद से कई ऐसे भूकंप के झटके महसूस किए गए, जोकि भविष्य में बड़ी त्रासदी की ओर इशारा करते हैं. हालांकि 1991 के बाद से भूकंप के कारण कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ. लेकिन आज के तकनीकी युग में बन रहे भवन और साइट सेलेक्शन कभी भी किसी बड़े हादसे को न्योता दे सकते हैं.

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पर्यावरणविद और वरिष्ठ पत्रकार सूरत सिंह रावत का कहना है कि साल 1991 तक पहाड़ों में जो भूकंप रोधी भवनों की निर्माण शैली थी, लोग उसकी अनदेखी कर रहे थे. यही कारण था कि उस त्रासदी में कई लोगों ने अपनी जान गवां दी थी. सूरत सिंह ने कहा कि आज के समय की स्थिति और भी भयावह हो गई है. जोकि त्रासदी आने पर और ज्यादा भयानक मंजर दिखा सकती है.

Intro:उत्तरकाशी। 1991 के भूकम्प की त्रासदी को याद कर आज भी लोग कांप उठते हैं। वहीं हर वर्ष भूकम्प से निपटने के लिए कई प्रकार की मॉकड्रिल का आयोजन किया जाता है। लेकिन भूकम्प के दौरान होने वाले नुकसान के कारणों पर अभी भी शासन प्रशासन गंभीर नजर नहीं आ रहा। विशेषज्ञों को माने,तो 1991 में भूकम्प रोधी भवनों के निर्माण शैली की अनदेखी ही स्थानीय लोगों पर भारी पड़ी थी। वहीं आज की स्थिति और भी भयानक मंजर की तस्वीरें दिखा सकती हैं। Body:वीओ-1, उत्तरकाशी जनपद की बात करें,तो यह भूकम्प के दृष्टिकोण से जोन 5 में आता है। 1991 के बाद से कई ऐसे भूकम्प के झटके महसूस किए गए। जो कि भविष्य में बड़ी त्रासदी की और इशारा करते हैं। हालांकि 1991 के बाद से भूकम्प के कारण कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। लेकिन आज के तकनीकी युग मे बन रहे भवन और साइड सेलेक्शन कभी भी किसी बड़े हादसे को न्यौता दे सकते हैं। Conclusion:वीओ-2, पर्यावरणविद और वरिष्ठ पत्रकार सूरत सिंह रावत का कहना है कि 1991 में जो सबसे ज्यादा मौतें हुई थी। वह भवनों के टुटने के कारण हुई थी। क्योंकि 1991 तक पहाड़ों में जो भूकम्प रोधी भवनों के निर्माण की शैली थी। उसकी लोग अनदेखी कर रहे थे। वहीं आज के समय मे स्थिति और भी भयावह हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में भवन निर्माण को लेकर किसी भी प्रकार का साइड सेलेक्शन नहीं है। तो शहरों में भी बदस्तूर यही स्थिति है। बाईट- सूरत सिंह रावत,पर्यावरणविद।
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