उत्तरकाशी: जनपद के रवांई क्षेत्र के 65 गांव के डांडा देवराणा मेले (Uttarkashi Devrana Fair) में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. पिछले दो सालों से कोरोना महामारी के कारण लोग मेले में शिरकत नहीं कर पाए. लेकिन इस साल रुद्रेश्वर महाराज अपने गर्भगृह से निकलकर डांडा देवराणा मेले में पहुंचे. जहां भक्तों ने रुद्रेश्वर देवता का आशीर्वाद लिया.
बता दें कि देवराणा स्थान बहुत ही खूबसूरत छायादार देवदार के वृक्षों के बीच में स्थित है. यहां पर रुद्रेश्वर देवता का एक पवित्र मन्दिर है, जहां प्रत्येक वर्ष मेला लगता है. हालांकि दो साल के कोरोनाकाल में यह मेला नहीं हो पाया था. देवराणा मेला ऐतिहासिक और पौराणिक है. सदियों की परंपरा आज भी जीवंत है. मेले में स्त्री पुरुष युवा अपनी पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होते हैं. 65 गांव के हजारों की संख्या में ग्रामीण मेले आते हैं. मेले में प्रत्येक गांव के लोग ढोल दमाऊ लेकर रवांई की संस्कृति (Culture of Uttarkashi Rawai) का प्रदर्शन करते हैं. मेले में सुरक्षा के लिहाज से पुलिस बल तैनात की गई थी.
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आषाढ़ मास में मनाया जाने वाले पौराणिक देवराना मेला जयकार के साथ देवता की डोली प्राकृतिक छटा के मध्य देवदार के घने जंगल से घिरे देवराना स्थित रुद्रेश्वर महाराज मंदिर में पहुंची. जहां विधिवत पूजा अर्चना के साथ पारंपरिक रूप से पश्वा नृत्य, डोली नृत्य एवं तांदी नृत्य किया गया. इन ऐतिहासिक क्षणों का गवाह बनने के लिए दूरदराज से हजारों की संख्या में लोग मेले में शामिल हुए. मेले के दौरान यमुनोत्री तथा गंगोत्री के तीर्थ पुरोहितों ने देवता का जलाभिषेक किया. इसके बाद देवता की डोली ने सभी को आशीर्वाद दिया.
मंदिर की पौराणिक कथा: एक प्राचीन कथा के अनुसार कालांतर में रुद्रेश्वर महादेव रवांई के चकराता से लौटने वाले ढाकरी अर्थात गांव के लोगों के समूह जो चकराता से सामान अपनी पीठ पर ढोकर लाते थे, उनके साथ आए थे. बताया जाता है कि घर में पहुंचते ही वह शक्ति कहीं गायब हो गई. बाद में एक किसान को खेत जोतते समय बजलाड़ी गांव में एक मूर्ति प्राप्त हुई जो रुद्रेश्वर महादेव की थी. दूसरी कथा के अनुसार रुद्रेश्वर कभी राजा हुआ करते थे. कहा जाता है कि रुद्रेश्वर महाराज रवांई में कश्मीर से आकर स्थापित हुए. इसलिए यहां उनकी पूजा अर्चना के प्रारंभ में उन्हें जय कुलकाश महाराज नाम से संबोधित किया जाता है.