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रंगीलो उत्तराखंड: उत्तरकाशी में धान की रोपाई पर मनाया जाता है उत्सव, बौखनाग मेले का VIDEO

सेरा हिट गैलयाणी रोपणियों का दिन ऐगिन...ये गीत पहाड़ों में धान रोपाई के दौरान गाया जाता है. ये गीत हर किसी को भावविभोर कर देता है. यह अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है. ग्रामीणों के लिए धान की रोपाई किसी उत्सव से कम नहीं होती है. ऐसी ही परंपरा गंगा और यमुना घाटी में देखने को मिलती है. उपराड़ी गांव में भी धान की रोपाई से पहले बौखनाग मेले का आयोजन होता है.

Boukh Nag fair in Upradi village
उपराड़ी गांव में बौखनाग मेला
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Published : Jun 20, 2022, 10:49 AM IST

Updated : Jun 20, 2022, 11:19 AM IST

उत्तरकाशीः देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत अपने आप में अनूठी है. यहां हर पर्व का अपना खास महत्व होता है. गंगा और यमुना घाटी में धान की रोपाई शुरू होने से पहले ग्रामीण अपने आराध्य देवता की डोली की विशेष पूजा अर्चना करते हैं. साथ ही मेले का आयोजन भी करते हैं. ऐसा ही नजारा यमुना घाटी के उपराड़ी गांव में देखने को मिला. यहां देवता की डोली के साथ ग्रामीणों ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर रासो तांदी नृत्य किया.

दरअसल, नौगांव ब्लॉक के उपराड़ी गांव में बौखनाग मेले में मंदिर के पुजारी ने विधि विधान से बौखनाग देवता की डोली की पूजा अर्चना की. मेले में ग्रामीण पारंपरिक लोकगीतों पर जमकर झूमे. ग्रामीणों ने आराध्य देव के दर्शन कर उनसे मन्नतें भी मांगी. स्थानीय निवासी मनोज बधानी ने बताया कि रोपाई का समय आ गया है. अच्छी फसल और परिवार की सुख समृद्धि व खुशहाली की कामना के लिए ग्रामीण इस मेले का आयोजन करते हैं.

ये भी पढ़ेंः ग्रामीणों ने ढोल-दमाऊ के साथ की धान की अंतिम रोपाई, महिलाओं की छलकी आंखें

उन्होंने बताया कि यह मेला 12 गांव भाटिया, कफनोल कंसेरू, उपराड़ी, छाड़ा, नंदगांव, चक्कर गांव, चेसना, कुंड, हुडोली आदि गांव के आराध्य देव का मेला है. भाटिया, कफनोल, कंसेरू, नंदगांव में देवता के चार थान हैं. प्रत्येक थान में एक साल के लिए देवता प्रवास करते हैं. 12 गांव में देवता की डोली भ्रमण करती है. भ्रमण के दौरान हर गांव में देवडोली रात्रि विश्राम करती है. साथ ही उस गांव में मेले का भव्य आयोजन होता है.

गांव की ब्याही बेटियां भी मायके आकर रोपाई में बंटाती हैं हाथः वहीं, मेले में गांव की ध्याणियां (गांव से ब्याह कर ससुराल गई लड़कियां) भी मायके आकर बढ़चढ़ कर प्रतिभाग करती हैं. साथ ही धान की रोपाई में हाथ बंटाती हैं. आराध्य देव से प्रार्थना पूरी होने पर श्रद्धालु उन्हें छतर चढ़ाते हैं. साथ ही विशाल भंडारे का आयोजन होता है. मंदिर के पुजारी पर पश्वा अवतरित होते हैं, जो मेले में ग्रामीणों को अपना आशीर्वाद देते हैं.

उत्तरकाशीः देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत अपने आप में अनूठी है. यहां हर पर्व का अपना खास महत्व होता है. गंगा और यमुना घाटी में धान की रोपाई शुरू होने से पहले ग्रामीण अपने आराध्य देवता की डोली की विशेष पूजा अर्चना करते हैं. साथ ही मेले का आयोजन भी करते हैं. ऐसा ही नजारा यमुना घाटी के उपराड़ी गांव में देखने को मिला. यहां देवता की डोली के साथ ग्रामीणों ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर रासो तांदी नृत्य किया.

दरअसल, नौगांव ब्लॉक के उपराड़ी गांव में बौखनाग मेले में मंदिर के पुजारी ने विधि विधान से बौखनाग देवता की डोली की पूजा अर्चना की. मेले में ग्रामीण पारंपरिक लोकगीतों पर जमकर झूमे. ग्रामीणों ने आराध्य देव के दर्शन कर उनसे मन्नतें भी मांगी. स्थानीय निवासी मनोज बधानी ने बताया कि रोपाई का समय आ गया है. अच्छी फसल और परिवार की सुख समृद्धि व खुशहाली की कामना के लिए ग्रामीण इस मेले का आयोजन करते हैं.

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उन्होंने बताया कि यह मेला 12 गांव भाटिया, कफनोल कंसेरू, उपराड़ी, छाड़ा, नंदगांव, चक्कर गांव, चेसना, कुंड, हुडोली आदि गांव के आराध्य देव का मेला है. भाटिया, कफनोल, कंसेरू, नंदगांव में देवता के चार थान हैं. प्रत्येक थान में एक साल के लिए देवता प्रवास करते हैं. 12 गांव में देवता की डोली भ्रमण करती है. भ्रमण के दौरान हर गांव में देवडोली रात्रि विश्राम करती है. साथ ही उस गांव में मेले का भव्य आयोजन होता है.

गांव की ब्याही बेटियां भी मायके आकर रोपाई में बंटाती हैं हाथः वहीं, मेले में गांव की ध्याणियां (गांव से ब्याह कर ससुराल गई लड़कियां) भी मायके आकर बढ़चढ़ कर प्रतिभाग करती हैं. साथ ही धान की रोपाई में हाथ बंटाती हैं. आराध्य देव से प्रार्थना पूरी होने पर श्रद्धालु उन्हें छतर चढ़ाते हैं. साथ ही विशाल भंडारे का आयोजन होता है. मंदिर के पुजारी पर पश्वा अवतरित होते हैं, जो मेले में ग्रामीणों को अपना आशीर्वाद देते हैं.

Last Updated : Jun 20, 2022, 11:19 AM IST
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