उत्तरकाशी: पद्मश्री बछेंद्री पाल के जीवन की कहानी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है. फिल्मों में हीरो एक छोटे से परिवार से उठकर, समाज से लड़कर एक मुकाम को हासिल करते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है एवरेस्ट चोटी को फतह करने वाली विश्व की पहली महिला बछेंद्री पाल की. बछेंद्री पाल ने गुरुवार को आपदा प्रभावित अस्सी गंगा के भंकोली गांव में राजकीय इंटर कॉलेज के छात्रों से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों की तीन घटनाओं को साझा किया, जिसने उनका पूरा जीवन बदल दिया.
राजकीय इंटर कॉलेज भंकोली में एवरेस्ट फतह करने वाली बछेंद्री पाल ने कहा कि बीए करने के बाद उन्हें देहरादून से ही एमए करना था. लेकिन उनके परिवार के पास पैसे नहीं थे, जिस बात से वो काफी निराश थीं. फिर एक दिन उनके पिता ने कहा, जाओ देहरादून से एमए करो. लेकिन, पिता ने यह नहीं बताया कि पैसे कहां से आयेगा. बछेंद्री पाल ने बताया कि उन्हें बाद में पता चला कि उनकी मां ने 'तेमन्या' (पहाड़ी महिलाओं का मंगलसूत्र) को बेच दिया था. बिछेंद्री पाल ने बताया कि उनकी मां के इस त्याग ने ही उनका पूरा जीवन बदल दिया था.
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बछेंद्री पाल ने बताया कि जब उन्हें पर्वतारोहण का शौक चढ़ा तब वो नाकुरी से रेणुका मन्दिर तक रोज चढ़ती थीं. वो चढ़ाई के दौरान एक पत्थर मंदिर के पास रखकर आती थीं और वापसी में वहां से घास लाती थीं. जिससे मां को न लगे कि उनकी बेटी अपना समय बर्बाद कर रही है. पाल ने बताया कि जब वो पर्वतरोहण करने लगीं तो मां ने कहा, बेटी लोग क्या कहेंगे? एमए करवाने के बाद भी बेटी ऐसा काम कर रही है. बछेंद्री पाल ने बताया कि उस दौरान उसने मां से कहा था लोगों को क्या है, एक दिन वो खुद आएंगे और बधाई देंगे. आज वही वक्त चल रहा है.
बता दें कि भकोली गांव के इंटर कॉलेज ने एवरेस्ट विजेता पूनम राणा, 2013 की आपदा की जांबाज ममता रावत, पर्वतारोही राधा रावत और संतोषी को भी राजकीय इंटर कॉलेज भकोली गौरव सम्मान से सम्मानित किया.