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यहां दशहरे के एक दिन बाद होता है रावण का दहन, जानिए वजह ?

काशीपुर में साल 1930 से ही रामलीला मंचन किया जा रहा है. इस इलाके में रावण दहन भी दशहरा के एक दिन बाद किया जाता है, जिससे स्थानीय दुकानदारों को इसका भरपूर लाभ मिल सके.

यहां दशहरे के एक दिन बाद होता है रावण का दहन.
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Published : Oct 8, 2019, 5:49 PM IST

काशीपुर: सुल्तानपुर पट्टी में साल 1930 से शुरू हुई रामलीला को देखने के लिए दूर दूर से लोग पहुंचते हैं. दशहरा मेले का आयोजन सभी जगह होने के कारण यहां एक दिन बाद महिलाओं के लिए मीना बाजार मेला लगाया जाता है. साथ ही रावण का दहन भी दशहरे के एक दिन बाद होता है. इसका कारण है कि दशहरे वाले दिन सभी जगह मेले का आयोजन किया जाता है, जिससे विशाल मेला नहीं लग पाता है.

यहां दशहरे के एक दिन बाद होता है रावण का दहन.

श्री रामलीला के पूर्व अध्यक्ष सन्तोष सागर ने बताया कि स्वामी ईश्वर दास जी निवासी ग्राम गंज, महुआखेड़ा गंज काशीपुर के रहने वाले थे. जो एक साधु संत थे. साल 1930 में महुआ खेड़ा गंज से सुल्तानपुर पट्टी आए लोगो को श्री रामलीला मंचन के लिए जागरूक किया. साथ ही रामलीला मंचन होने की अपील की. स्वामी ईश्वर दास ने 7 साल रामायण जी का पाठ किया और बाद में श्री रामलीला का मंचन शुभारम्भ किया. लेकिन, स्वामी जी के ग्राम महुआ खेड़ा गंज में आज भी रामलीला नहीं होती है.

ये भी पढ़ें: REALITY CHECK: लोगों को नहीं पता क्यों मनाया जाता है दशहरा, कौन थे दशरथ और भगवान राम

श्री रामलीला कमेटी संरक्षक सुरेश सैनी ने बताया कि साल 1930 ने काशीपुर में ही रामलीला होती थी. पायते वाला दशहरा मेले में दुकानदार अपनी दुकानें लगाते थे. दुकानदारों के अभाव में सुल्तानपुर पट्टी का दशहरा मेला एक दिन बाद लगाया जाता है. रावण व मेघनाथ पुतलों का दहन भी एक दिन बाद होता है, जिससे दुकानदार अधिक- से अधिक पहुंच सके. सुल्तानपुर पट्टी के अलावा कहीं पर भी मीना बाजार मेला नहीं लगाया जाता है. इस मेले में सिर्फ महिलाओं के खरीददारी होती है. इस मेले में पुरुषों का आना वर्जित रहता है.

काशीपुर: सुल्तानपुर पट्टी में साल 1930 से शुरू हुई रामलीला को देखने के लिए दूर दूर से लोग पहुंचते हैं. दशहरा मेले का आयोजन सभी जगह होने के कारण यहां एक दिन बाद महिलाओं के लिए मीना बाजार मेला लगाया जाता है. साथ ही रावण का दहन भी दशहरे के एक दिन बाद होता है. इसका कारण है कि दशहरे वाले दिन सभी जगह मेले का आयोजन किया जाता है, जिससे विशाल मेला नहीं लग पाता है.

यहां दशहरे के एक दिन बाद होता है रावण का दहन.

श्री रामलीला के पूर्व अध्यक्ष सन्तोष सागर ने बताया कि स्वामी ईश्वर दास जी निवासी ग्राम गंज, महुआखेड़ा गंज काशीपुर के रहने वाले थे. जो एक साधु संत थे. साल 1930 में महुआ खेड़ा गंज से सुल्तानपुर पट्टी आए लोगो को श्री रामलीला मंचन के लिए जागरूक किया. साथ ही रामलीला मंचन होने की अपील की. स्वामी ईश्वर दास ने 7 साल रामायण जी का पाठ किया और बाद में श्री रामलीला का मंचन शुभारम्भ किया. लेकिन, स्वामी जी के ग्राम महुआ खेड़ा गंज में आज भी रामलीला नहीं होती है.

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श्री रामलीला कमेटी संरक्षक सुरेश सैनी ने बताया कि साल 1930 ने काशीपुर में ही रामलीला होती थी. पायते वाला दशहरा मेले में दुकानदार अपनी दुकानें लगाते थे. दुकानदारों के अभाव में सुल्तानपुर पट्टी का दशहरा मेला एक दिन बाद लगाया जाता है. रावण व मेघनाथ पुतलों का दहन भी एक दिन बाद होता है, जिससे दुकानदार अधिक- से अधिक पहुंच सके. सुल्तानपुर पट्टी के अलावा कहीं पर भी मीना बाजार मेला नहीं लगाया जाता है. इस मेले में सिर्फ महिलाओं के खरीददारी होती है. इस मेले में पुरुषों का आना वर्जित रहता है.

Intro:एंकर - जिले में आज़ादी से पूर्व से हो रहा रामलीला मंचन श्री राम लीला के मंचन को देखने के लिए दूर-दूर के लोग बड़ी संख्या में आते हैं । जो कि आज रामलीला दर्शकों का इन्तेजार कर रही है । श्री रामलीला का मंचन और मैदान सब जगह से विशाल माना जाता है। इतना ही नही बल्कि यहां पर रावण दहन भी दशहरा के एक दिन बाद किया जाता है क्यों कि स्थानीय दुकानदारो को इसका भरपूर लाभ मिल सके।

Body:वीओ- आपकी बात दें कि सुल्तानपुर पट्टी में वर्ष 1930 से पायते वाली श्री रामलीला प्रारम्भ हुई थी । उस बक्त आसपास ओर दूर दराज से श्रीराम लीला नही होती थी । रामलीला देखने बाले लोग सुल्तानपुर पट्टी श्री रामलीला देखने आते है । इस रामलीला का क्षेत्र में एक अच्छा क्रेज़ हुआ करता था। जिसे देखने की होड़ लगी रहती थी। लोग रामलीला मंचन देखने के लिए समय से पहले ही आ जाते थे त की उन्हें जगह मिल सके।

वीओ - श्री रामलीला के पूर्व अध्यक्ष सन्तोष सागर ने बताया कि स्वामी ईश्वर दास जी निवासी ग्राम गंज , महुआखेड़ा गंज काशीपुर के रहने वाले थे । जो एक साधु संत थे । सन 1930 में महुआ खेड़ा गंज से सुल्तानपुर पट्टी आये और लोगो को श्री रामलीला मंचन के लिए जागरूक किया कहा कि यहाँ श्री रामलीला का मंचन होना चाहिए । जिससे लोग श्री राम के विचारों पर चले सके । स्वामी ईश्वर दास ने सात साल रामायण जी का पाठ किया और बाद में श्री रामलीला का मंचन शुभारम्भ किया । लेकिन मजे की बात यह है कि स्वामी जी के ग्राम महुआ खेड़ा गंज में आज भी श्री रामलीला नही होती है ।

बाइट- सुरेश सैनी, कमेटी संरक्षक

वीओ- श्री रामलीला कमेटी संरक्षक सुरेश सैनी ने बताया कि सन 1930 ने काशीपुर में ही रामलीला होती थी । पायते वाला दशहरा मेले में दुकानदार अपनी दुकानें लगाते थे । दुकानदारों की अभाव कम होने से के कारण सुल्तानपुर पट्टी का दशहरा मेला एक दिन बाद लगाया जाता है । ओर रावण व मेघनाथ पुतलो का दहन भी एक दिन बाद होता है । जिससे दुकानदार अधिक- से अधिक पहुँच सके और भारी मेला लगे ।

वीओ- दशहरा मेले के एक दिन बाद महिलाओं के लिए मीना बाजार मेला लगाया जाता है । सुल्तानपुर पट्टी के अलावा कहीं पर भी मीना बाजार मेला नही लगाया जाता है । इस मेले में सिर्फ महिलाओं के खरीददारी होती है । इस मेले में पुरुषों आना वर्जित रहता है ।

बाइट -संतोष सागर, कमेटी पूर्व अध्यक्षConclusion:
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