काशीपुर: सुल्तानपुर पट्टी में साल 1930 से शुरू हुई रामलीला को देखने के लिए दूर दूर से लोग पहुंचते हैं. दशहरा मेले का आयोजन सभी जगह होने के कारण यहां एक दिन बाद महिलाओं के लिए मीना बाजार मेला लगाया जाता है. साथ ही रावण का दहन भी दशहरे के एक दिन बाद होता है. इसका कारण है कि दशहरे वाले दिन सभी जगह मेले का आयोजन किया जाता है, जिससे विशाल मेला नहीं लग पाता है.
श्री रामलीला के पूर्व अध्यक्ष सन्तोष सागर ने बताया कि स्वामी ईश्वर दास जी निवासी ग्राम गंज, महुआखेड़ा गंज काशीपुर के रहने वाले थे. जो एक साधु संत थे. साल 1930 में महुआ खेड़ा गंज से सुल्तानपुर पट्टी आए लोगो को श्री रामलीला मंचन के लिए जागरूक किया. साथ ही रामलीला मंचन होने की अपील की. स्वामी ईश्वर दास ने 7 साल रामायण जी का पाठ किया और बाद में श्री रामलीला का मंचन शुभारम्भ किया. लेकिन, स्वामी जी के ग्राम महुआ खेड़ा गंज में आज भी रामलीला नहीं होती है.
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श्री रामलीला कमेटी संरक्षक सुरेश सैनी ने बताया कि साल 1930 ने काशीपुर में ही रामलीला होती थी. पायते वाला दशहरा मेले में दुकानदार अपनी दुकानें लगाते थे. दुकानदारों के अभाव में सुल्तानपुर पट्टी का दशहरा मेला एक दिन बाद लगाया जाता है. रावण व मेघनाथ पुतलों का दहन भी एक दिन बाद होता है, जिससे दुकानदार अधिक- से अधिक पहुंच सके. सुल्तानपुर पट्टी के अलावा कहीं पर भी मीना बाजार मेला नहीं लगाया जाता है. इस मेले में सिर्फ महिलाओं के खरीददारी होती है. इस मेले में पुरुषों का आना वर्जित रहता है.