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दीपावली पर कई घरों को जगमगाने वाले इन कारीगरों पर तंगहाली का 'अंधेरा'

दीपावली का पर्व नजदीक है. इस पर्व पर मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों की बिक्री कम हो रही है. जिसकी वजह से इनके आगे रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है.

clay lamps
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Published : Nov 10, 2020, 7:34 PM IST

काशीपुरः दीपावली का त्योहार नजदीक है. बाजारों में रौनक है. लेकिन इस बीच एक तबका ऐसा भी है, जिसे इस पर्व पर उम्मीद थी कि उनकी बिक्री खूब होगी. लेकिन अभी तक उन्हें मायूसी ही मिल रही है. हम बात कर रहे हैं मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों की. इनका कारोबार न के बराबर चल रहा है. जिसने इनकी परेशानियां बढ़ा दी है. इनका कारोबार पूरी तरह चौपट होने के कगार पर है.

दीपावली को लेकर हर वर्ग खासा उत्साहित रहता है. इसमें बच्चों से लेकर बुजुर्ग भी शामिल हैं और व्यापारी से लेकर कारीगर वर्ग भी. इस त्योहार की सबसे बड़ी खासियत है सजावट. इसमें दीये से लेकर रंग-बिरंगी लाइटिंग हैं. हमारे देश में दीपावली पर मिट्टी के दीये बनाने का पुराना प्रचलन है. इसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों वर्गों के कारीगर शामिल हैं. इनके हाथ से बनाए दीये लोगों के घरों को जगमगाते हैं. लेकिन लोगों को घरों को रोशन करने वाले इन कारीगरों पर तंगी का अंधेरा छा रहा है.

कारीगरों पर तंगहाली का 'अंधेरा'

कोरोनाकाल में पहले ही आर्थिक तंगी झेल रहे इन कारीगरों को उम्मीद थी कि दीपावली पर इनकी अच्छी खरीददारी होगी तो घर का चूल्हा जलेगा. लेकिन, अभी तक की बिक्री से ये उम्मीद भी ओझल नजर आ रही है. इसकी बानगी काशीपुर में दीये बनाने वाले सत्तर साल के बुजुर्ग एवज हुसैन और उनकी पत्नी सगीरन से ज्यादा और कौन जानेगा?

पढ़ेंः गाय के गोबर से बने दीये बनाएंगे आपकी दीपावली खास, रोजगार का बना जरिया

इनका कहना है कि ये काम हमें अपने पुरखों से विरासत के रूप में मिला. हर साल हम अपने हाथों से मिट्टी के दीये और बर्तन बनाते हैं. देश ही नहीं विदेशों में भी इसकी खासी डिमांड है, लेकिन कोरोना काल के बाद से इस कारोबार को किसी की नजर लग सी गई है. आज ये हालात है कि दो वक्त की रोटी कमाना भी मुश्किल हो गया है.

एक युवा कारीगर आदेश प्रजापति का कहना है कि जितनी मेहनत से मिट्टी के सामान को तैयार किया जाता है. उतनी आज इस काम पर मजदूरी भी नहीं निकल पा रही है. आदेश आगे बताते हैं कि कहीं आने वाली पीढ़ी इसको भुला न दे, इसलिए वे सरकार से मांग करते हैं कि इस काम को जिंदा रखने के लिए कोई स्कीम चलाई जाए. ताकि कारीगर अपने परिवार को मजबूती से चला सकें.

काशीपुरः दीपावली का त्योहार नजदीक है. बाजारों में रौनक है. लेकिन इस बीच एक तबका ऐसा भी है, जिसे इस पर्व पर उम्मीद थी कि उनकी बिक्री खूब होगी. लेकिन अभी तक उन्हें मायूसी ही मिल रही है. हम बात कर रहे हैं मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों की. इनका कारोबार न के बराबर चल रहा है. जिसने इनकी परेशानियां बढ़ा दी है. इनका कारोबार पूरी तरह चौपट होने के कगार पर है.

दीपावली को लेकर हर वर्ग खासा उत्साहित रहता है. इसमें बच्चों से लेकर बुजुर्ग भी शामिल हैं और व्यापारी से लेकर कारीगर वर्ग भी. इस त्योहार की सबसे बड़ी खासियत है सजावट. इसमें दीये से लेकर रंग-बिरंगी लाइटिंग हैं. हमारे देश में दीपावली पर मिट्टी के दीये बनाने का पुराना प्रचलन है. इसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों वर्गों के कारीगर शामिल हैं. इनके हाथ से बनाए दीये लोगों के घरों को जगमगाते हैं. लेकिन लोगों को घरों को रोशन करने वाले इन कारीगरों पर तंगी का अंधेरा छा रहा है.

कारीगरों पर तंगहाली का 'अंधेरा'

कोरोनाकाल में पहले ही आर्थिक तंगी झेल रहे इन कारीगरों को उम्मीद थी कि दीपावली पर इनकी अच्छी खरीददारी होगी तो घर का चूल्हा जलेगा. लेकिन, अभी तक की बिक्री से ये उम्मीद भी ओझल नजर आ रही है. इसकी बानगी काशीपुर में दीये बनाने वाले सत्तर साल के बुजुर्ग एवज हुसैन और उनकी पत्नी सगीरन से ज्यादा और कौन जानेगा?

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इनका कहना है कि ये काम हमें अपने पुरखों से विरासत के रूप में मिला. हर साल हम अपने हाथों से मिट्टी के दीये और बर्तन बनाते हैं. देश ही नहीं विदेशों में भी इसकी खासी डिमांड है, लेकिन कोरोना काल के बाद से इस कारोबार को किसी की नजर लग सी गई है. आज ये हालात है कि दो वक्त की रोटी कमाना भी मुश्किल हो गया है.

एक युवा कारीगर आदेश प्रजापति का कहना है कि जितनी मेहनत से मिट्टी के सामान को तैयार किया जाता है. उतनी आज इस काम पर मजदूरी भी नहीं निकल पा रही है. आदेश आगे बताते हैं कि कहीं आने वाली पीढ़ी इसको भुला न दे, इसलिए वे सरकार से मांग करते हैं कि इस काम को जिंदा रखने के लिए कोई स्कीम चलाई जाए. ताकि कारीगर अपने परिवार को मजबूती से चला सकें.

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