काशीपुरः इनदिनों काशीपुर में ऐतिहासिक मां बाल सुंदरी का मेला चल रहा है. यह चैती मेला 2 अप्रैल को शुरू हुआ था. इस मेले का धार्मिक और व्यापारिक महत्व है. इसी कड़ी में मां बाल सुंदरी का डोला आज सप्तमी और अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि में चैती मंदिर के लिए रवाना होगा. जो कल सुबह तड़के मंदिर परिसर पहुंचेगा. जहां मां बाल सुंदरी देवी एक हफ्ते तक सार्वजनिक दर्शन के लिए विराजमान रहेंगी. जहां श्रद्धालु मां के दरबार में मत्था टेकेंगे.
बता दें कि बीते 2 साल तक कोरोना महामारी की वजह से मां बाल सुंदरी देवी प्रांगण में लगने वाला मेला स्थगित रहा. हालांकि, कोविड गाइडलाइन के बीच मां का डोला केवल परंपराओं के निर्वहन करते हुए मंदिर में पहुंचाया गया, लेकिन इस बार कोरोना को लेकर सभी प्रतिबंध हटाए गए हैं. ऐसे में एक बार फिर से मां के डोले में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है.
आज दोपहर भगवती बाल सुंदरी को पंडा विकास अग्निहोत्री के आवास पर सार्वजनिक दर्शनों के लिए फूलों एवं पारंपरिक वस्त्रों में सजा कर रखा गया. जहां भक्तों ने मां बाल सुंदरी की देवी के दर्शन किए. मां अब चैती मंदिर में विराजमान होगी. इसके लिए आज रात 12 बजे से पंडा विकास अग्निहोत्री की देखरेख में विधि विधान से हवन पूजन की प्रक्रिया शुरू होगी. ढोल नगाड़ों और पुलिस की कड़ी सुरक्षा के बीच मां बाल सुंदरी देवी पंडा आवास से चैती मंदिर के लिए रवाना होगी.
ये भी पढ़ेंः 9 अप्रैल को मनाई जाएगी दुर्गाष्टमी, दिन में कभी भी कर सकते हैं पूजा
चैती मंदिर पहुंचने पर तड़के 4 बजे मां बाल सुंदरी की आरती होगी. जिसके बाद श्रद्धालु अपनी आराध्य व कुलदेवी के दर्शन कर मन्नत मांगेंगे. इस बार मां की प्रतिमा डोले के रूप में आज सप्तमी और अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि रवाना होगी. जो त्रयोदशी और चतुर्दशी यानी 14 और 15 अप्रैल की मध्यरात्रि में वापस नगर मंदिर पहुंचेगा. मुख्य पंडा विकास अग्निहोत्री ने बताया कि कोरोनाकाल में भक्त मां बाल सुंदरी देवी के दर्शन नहीं कर पाए थे, लेकिन इस बार मां के दर्शन कर सकते हैं.
मां बाल सुंदरी देवी मंदिर में दी जाती थी पशु बलिः मां बाल सुंदरी देवी मंदिर के मुख्य पुजारी विकास अग्निहोत्री ने बताया कि पहले श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर बकरे की बलि दिया करते थे. करीब 10 साल पहले न्यायालय के आदेश पर पशु बलि प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया. जिसके बाद श्रद्धालु अब मां भगवती को प्रतीकात्मक बलि देते हैं. श्रद्धालु अब मन्नत पूरी होने पर बकरे को मां के दरबार में मत्था टिकाकर और पूजा अर्चना कर जिंदा छोड़ देते हैं. अब जायफल और नारियल को पशु बलि के रूप में मां को भेंट करते हैं.