काशीपुर/बागेश्वर/मसूरी: शारदीय नवरात्रि की अष्टमी के दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है. कई लोग नवरात्रि के आठवें दिन को दुर्गाष्टमी या महाअष्टमी के नाम से भी जानते हैं. कहा जाता है कि नवरात्रि में कन्या पूजन से मां दुर्गा प्रसन्न होती है. ऐसे में कई लोग अष्टमी पर कन्या पूजन करते हैं. रविवार को अष्टमी के मौके पर देश और प्रदेश भर के स्थानों में मां दुर्गा की आठवीं शक्ति के रूप में मां महागौरी की पूजा अर्चना के साथ-साथ कन्या पूजन भी किया गया.
कन्या पूजन के साथ किया व्रत का उद्यापन: उधमसिंह नगर के काशीपुर में अष्टमी पर मां मनसा देवी मंदिर, मां चामुंडा देवी मंदिर, चौराहे वाली माता मंदिर और गायत्री देवी मंदिर समेत कई मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ी. इसके बाद मां महागौरी की पूजा के विधान के तहत भक्तों ने नवरात्रि के व्रत का उद्यापन घरों में कन्या पूजन के साथ पूरा किया. भक्तों ने देवियों के रूप में छोटी-छोटी कन्याओं को प्रसाद स्वरूप भोजन कराया तथा उन्हें उपहार भी दिए. मां के स्वरूप में बैठी छोटी-छोटी कन्याओं ने मां के व्रत रखने वाले भक्तों को आशीर्वाद भी दिया.
मां सुरकंडा देवी मंदिर में विशाल भंडारा: प्रदेश के कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी और भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नेहा जोशी ने सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी मंदिर में जाकर 101 कन्याओं के साथ मां दुर्गा के आठवें स्वरूप मां गौरी की पूजा-अर्चना की. इसके बाद विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जहां सैकड़ों की संख्या में भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ स्थानीय लोगों ने भी प्रसाद ग्रहण किया. कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने मां सुरकंडा के दरबार में पूजा-अर्चना के बाद देवी से प्रदेश की सुख-समृद्धि की कामना की.
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बागेश्वर की चंडिका मंदिर में भक्तों का तांता: कुमाऊं के बागेश्वर में भी नवरात्रि की अष्टमी पर चंडिका मंदिर में हर साल की तरह इस बार भी माता के दर्शन के लिए हजारों की तादात में भक्तों भी भीड़ उमड़ी. कहा जाता है कि माता चंडिका को चंद शासकों के समय में उनके कुल पुरोहितों के वंशजों ने चंपावत से यहां लाकर स्थापित किया था.
चंडिका माता को मूल रूप से चंपावत का माना जाता है. वर्ष 1698 से 1701 में चंद वंश के राजाओं के शासनकाल में उनके कुल पुरोहित रहे चंपावत के सिमल्टा गांव के पांडे परिवार चंडिका देवी और गोल्ज्यू देवता को लेकर बागेश्वर आ गए थे. ताम्र पत्र और शिलालेख में अंकित जानकारी के अनुसार, भीलेश्वर पर्वत पर माता चंडिका का छोटा मंदिर बनाया गया. जिसके कुछ दूरी पर गोल्ज्यू देवता के मंदिर की स्थापना भी की गई. इसे अब चौरासी गोल्ज्यू के नाम से जाना जाता है.
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पांडे परिवार के वंशजों ने मंदिर के समीप चौरासी गांव को अपना निवास स्थल बनाया और यहीं बस गए. बागेश्वर जिले के विकास के साथ-साथ और बदलते परिवेश के बीच मंदिर का स्वरूप भी काफी बदल गया है. आज पूरे बागेश्वर नगर और जिले के अन्य लोगों की आस्था भी चंडिका मंदिर में काफी ज्यादा है. मां चंडिका मंदिर में माता के अलावा मां चामुंडा, माता कालिका, संतोषी माता, हनुमान, लांगुड़ावीर, क्षेत्रपाल और भेलू देवता के मंदिर स्थापित हैं.