टिहरीः उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों की बदहाली से सभी वाकिफ हैं. आलम ये है कि कहीं स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं तो कहीं स्कूलों में पढ़ाने के लिए छात्र ही नहीं मिल रहे हैं. इसकी एक बानगी टिहरी में देखने को मिल रही है. जहां स्कूल की एकमात्र छात्रा को तीन शिक्षक पढ़ा रहे हैं. इतना ही नहीं इस छात्रा के लिए एक भोजनमाता भी तैनात है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों का क्या हाल हैं.
दरअसल, पलायन की मार झेल रहे टिहरी जिले के थौलधार ब्लॉक का राजकीय जूनियर हाईस्कूल मरगांव बंद होने की कगार पर है. क्योंकि, यहां पर मात्र एक छात्रा अध्यनरत है. जबकि, विद्यालय में तीन अध्यापक उसे पढ़ाने के लिए तैनात हैं, जिनमें दो अध्यापक और एक अध्यापिका शामिल हैं. इसके अलावा एक भोजनमाता भी है, जो मिड डे मील (Midday Meal Scheme) तैयार करती हैं.
बता दें कि थौलधार का राजकीय जूनियर हाईस्कूल मरगांव (Government Junior High School Margaon Tehri) साल 2006 में स्वीकृत हुआ था. साल 2006 से लेकर 2014 तक पठन-पाठन का कार्य पंचायत भवन में चलता रहा. 2014 में भवन तैयार होने के बाद पठन-पाठन का कार्य विद्यालय के अपने भवन में शुरू हुआ. उस समय यहां पर छात्र-छात्राओं की संख्या लगभग 23 थी, लेकिन इसके बाद छात्रों की संख्या लगातार घटती गई.
स्थिति ये हो गई कि पिछले साल तक विद्यालय में सिर्फ दो ही छात्र रह गए. इस साल यानी 2022 की अगर बात की जाए तो यहां पर मात्र एक छात्रा अध्ययनरत है. जिसे पढ़ाने के लिए 3 अध्यापक तैनात हैं और एक भोजन माता भी इस विद्यालय में हैं. यह विद्यालय मात्र एक छात्रा के सहारे चल रहा है. जो कभी भी छात्र विहीन हो सकता है.
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यह विद्यालय मरगांव, ग्वाल गांव और खर्क भैंडी के केंद्र बिंदु पर बनाया गया है. ताकि तीनों जगह के बच्चों के लिए आने-जाने में सुविधा हो सके, लेकिन गांव में लगभग 100 से ज्यादा परिवार रहते हैं. जिनमें से आधे से ज्यादा परिवार रोजगार के लिए गांव से पलायन कर चुके हैं. कुछ बच्चे अपने माता-पिता के साथ शिफ्ट हो चुके हैं. जिसके कारण विद्यालय में मात्र एक छात्रा काजल ही अध्ययनरत है. काजल के पिता गांव में ही रहते हैं, जिसके कारण काजल का विद्यालय में अकेला पढ़ना एक मजबूरी हो गया है.
प्रधानाध्यापक राकेश चंद डोभाल का कहना है कि भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो यह स्कूल जंगल के बीच में बनाया गया है. जिसके कारण गांव के बच्चों को यहां पर आने-जाने में कई तरह की दिक्कतें होती है. क्योंकि, स्कूल के चारों तरफ जंगल ही जंगल है. जंगल होने के कारण यहां पर जंगली जानवरों का भय रहता है. जिसके कारण गांव के अधिकांश बच्चे अपने माता-पिता के साथ शहरों में शिफ्ट हो चुके हैं.
मजे से कट रही है अध्यापकों की जिंदगीः विद्यालय में मात्र एक छात्रा होने के कारण अध्यापक बारी-बारी से उसे अपने-अपने विषय पढ़ाते हैं. उसके बाद अध्यापकों के पास काफी समय खाली होता है तो आजकल धूप का आनंद भी लेते हैं. सरकारी दाल चावल खाने के लिए एक भोजन माता भी उनके लिए विद्यालय में कार्यरत है. गौर हो कि एक छात्रा पर लगभग शिक्षा विभाग महीने में तीन लाख और अगर पूरे वर्ष की बात की जाए तो लगभग 36 लाख रुपए खर्च करता है.
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