टिहरी: 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में टिहरी की बेटी सृष्टि लखेड़ा की निर्देशित फिल्म 'एक था गांव' (Ek Tha Gaon) को सर्वश्रेष्ठ गैर-फीचर फिल्म के पुरस्कार के लिए चुना गया है. सृष्टि लखेड़ा की यह फिल्म गढ़वाली व हिंदी दोनों भाषाओं में बनी है. टिहरी-ऋषिकेश की बेटी सृष्टि लखेड़ा की इस उपलब्धि के बाद पूरे प्रदेश में उत्साह का माहौल है. सृष्टि लखेड़ा मूल रूप से टिहरी गढ़वाल के सेमला गांव कीर्तिनगर की रहने वाली हैं.
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सृष्टि लखेड़ा के पिता डा. केएन लखेड़ा की ऋषिकेश के जानेमाने बाल रोग विशेषज्ञ हैं. 35 वर्षीय सृष्टि लखेड़ा की प्राथमिक शिक्षा ऋषिकेश के ओंकारानंद स्कूल से हुई है. सृष्टि लखेड़ा ने मिरांडा हाउस नई दिल्ली से स्नातक तथा एवरग्रीन यूनिवर्सिटी ओलंपिया वॉशिंगटन स्टेट से मास्टर की डिग्री हासिल की है. एक साल पहले उनका विवाह अमिथ सुरेंद्रन से हुआ है. अमिथ सुरेंद्रन प्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफर हैं, जो कई चर्चित वेब सीरीज के लिए कम कर चुके हैं. सृष्टि लखेड़ा की मां कुमुद लखेड़ा गृहणी हैं. सृष्टि के बड़े भाई सिद्धार्थ लखेड़ा दिल्ली में अपना व्यवसाय करते हैं.
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69वें नेशनल अवॉर्ड की जूरी ने गुरुवार सायं पुरस्कारों का ऐलान किया. इस वर्ष सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार 'रॉकेट्री: द नांबी इफेक्ट' को दिया गया है. सर्वश्रेष्ठ गैर-फीचर फिल्म का पुरस्कार सृष्टि लखेड़ा की निर्देशित 'एक था गांव' को दिया गया है. 'द कश्मीर फाइल्स' को राष्ट्रीय एकता पर सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए नरगिस दत्त पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 'आरआरआर' को संपूर्ण मनोरंजन प्रदान करने वाली सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म का पुरस्कार मिला है. बेस्ट एक्ट्रेस के लिए एक नहीं बल्कि दो-दो अदाकारा आलिया भट्ट और कृति सेनन को अवॉर्ड दिया गया. वहीं 'पुष्पा' स्टार अल्लू अर्जुन बेस्ट एक्टर बने हैं. 69वें नेशनल अवॉर्ड में आर माधवन की 'रॉकेट्री', संजय लीला भंसाली की 'गंगूबाई काठियावाड़ी', विक्की कौशल की 'सरदार उधम' और एसएस राजामौली की 'आरआरआर' ने ढेर सारे अवॉर्ड झटके.
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कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी: एक था गांव एक बुजुर्ग और एक किशोर पर आधारित है. इसमें पहाड़ की कठिनाइियों से साथ ही मौजूदा हालातों को बयां किया गया है. इसमें 80 वर्षीय लीला देवी और 19 वर्षीय गोलू मुख्य भूमिका में हैं. बुजुर्ग लीला गांव में अकेली रहती है. इसकी बेटी की शादी हो चुकी है, जो देहरादून जाने की जिद करती है. लीला इसके लिए तैयार नहीं होती. उसे अपने गांव से प्यार है. जिसके कारण वह यहां रहना चाहती है. वहीं, इस फिल्म का दूसरा किरदार गोलू पहाड़ों से निकलकर अपना जीवन जीना चाहती है. उसे पहाड़ों में कोई भविष्य नजर नहीं आता. जिसके कारण वह मैदानों की ओर जाना चाहती है. फिल्म में आखिर में लीला मजबूरी में देहरादून चली आती है. गोलू भी पढ़ाई के लिए मैदानों की ओर पहुंच जाती है, जिसके कारण गांव सूना और खाली हो जाता है. इस फिल्म के माध्यम से दिखाया गया कैसे कोई या तो मजबूरी में या फिर जरूरत के लिए पहाड़ से निकलता है. जिसके कारण पहाड़ दिनों दिन खाली हो रहे हैं.