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धनौल्टी: सुविधाओं को अभाव में अधर में लटका बच्चों का भविष्य, पलायन करने को मजबूर ग्रामीण

ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में स्थानीय लोग पलायन करने को मजबूर हैं. वहीं, ये मुद्दा राजनीतिक पार्टियों का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है.

अधर में लटका बच्चों का भविष्य
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Published : Nov 12, 2019, 6:21 PM IST

Updated : Nov 12, 2019, 6:34 PM IST

धनौल्टी: राज्य में पलायन आज प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है. ऐसे में नेता इसे चुनावी मुद्दा बना कर राजनीति की रोटी सेंकने से नहीं चूक रहे हैं. वहीं, स्थानीय लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पलायन करने को मजबूर हैं. राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे का सहारा लेकर जनता को बहकाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रही हैं.

बता दें कि नेता पलायन के मुद्दे को लेकर लोगों को बहकाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. आखिर हो भी क्यों न क्योंकि, लोग अपनी बुनियादी सुविधाओं को पूरा करने, बच्चों को उचित शिक्षा दिलाने और रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ रुख कर रहें हैं. यही कारण है कि सरकार के लिए पलायन रोकना एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है. ग्रामीण इलाकों में बच्चों की शिक्षा के लिए न तो विद्यालय है और न ही शिक्षक साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव है.

ये भी पढ़ें: देश की एकता में जामिया का महत्वपूर्ण योगदान: PM मोदी

अविभावकों की मानें तो बच्चों को बरामदे में बिठाकर या खुले मैदानों में शिक्षा दी जा रही है. वहीं, बारिश के दौरान ये स्थिति और भी दयनीय हो जाती है, जिसके कारण बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो जाती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि मामले को कई बार प्रशासन स्तर पर उठाया जा चुका है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं.

धनौल्टी: राज्य में पलायन आज प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है. ऐसे में नेता इसे चुनावी मुद्दा बना कर राजनीति की रोटी सेंकने से नहीं चूक रहे हैं. वहीं, स्थानीय लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पलायन करने को मजबूर हैं. राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे का सहारा लेकर जनता को बहकाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रही हैं.

बता दें कि नेता पलायन के मुद्दे को लेकर लोगों को बहकाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. आखिर हो भी क्यों न क्योंकि, लोग अपनी बुनियादी सुविधाओं को पूरा करने, बच्चों को उचित शिक्षा दिलाने और रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ रुख कर रहें हैं. यही कारण है कि सरकार के लिए पलायन रोकना एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है. ग्रामीण इलाकों में बच्चों की शिक्षा के लिए न तो विद्यालय है और न ही शिक्षक साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव है.

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अविभावकों की मानें तो बच्चों को बरामदे में बिठाकर या खुले मैदानों में शिक्षा दी जा रही है. वहीं, बारिश के दौरान ये स्थिति और भी दयनीय हो जाती है, जिसके कारण बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो जाती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि मामले को कई बार प्रशासन स्तर पर उठाया जा चुका है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं.

Intro:क्या ऐसे में हो पाएगा देश के भबिष्य का निर्माणBody: मैण्डखाल

धनोल्टी ( टिहरी)

स्लग-क्या ऐसे में हो पाएगा देश के भबिष्य का निर्माण

एंकर- पलायन आज प्रदेश का सबसे बड़े मुद्दो में से एक बन चुका है जिसे भुनाकर चुनावी सीजन मे प्रत्येक दल अपनी चुनावी बैतरणी को पार करने की कोशिश कर पलायन को मुद्दा बनाकर जनता के मन जीतने की भरसक कोशिश करता है आखिर हो भी क्यो न क्योकि लोग अपनी बुनियादी सुविधाओं को पूरा करने के साथ साथ लोग अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा , रोजगार के लिए ही शहरों की ओर पलायन कर रहें है यही कारण है कि आज सरकार के लिए पलायन रोकना महज चिन्तन रह गया है जिसका सबसे बड़ा कारण बच्चों को ग्रामीण क्षेत्रो में जरूरी शिक्षा न मिलना देखा गया है कही स्कूल भवन नही, कही एक शिक्षक के भरोसे पूरा विद्यालय , यही कुछ देखने को मिलता है राजकीय प्रथमिक विद्यालय मैण्डखाल मे जहां पर वर्तमान में छात्र संख्या लगभग 35 से 40 के बीच है जिसके भवन का निर्माण लगभग 80 के दशक में हुआ था जिसमे दो कमरे एक बरामदे व एक छोटे से कार्यालय का निर्माण किया गया था जिसकी वर्तमान स्थिति अब जीर्ण शीर्ण हो चुकी है जिससे अब अविभावक स्कूल मे बच्चों को भेजने मे डर लग रहा है अविभावकों की माने तो मिड डे मिल भोजनालय की छत पूर्ण रूप से टूट जाने के बाद अब एक कमरे में मिड डे मिल का भोजनालय एक में कार्यालय संचालित हो रहा है वहीं बच्चों को बहार बरामदे में बिठाकर पठन पाठन कार्य संचालित हो रहा है जरा बारीष होने पर बच्चों को पास के सी आर सी कक्ष में बिठाना पड़ता है जिससे बच्चों का पठन पाठन सही ढंग से नही हो पाता है इस बारे में कई बार अधिकारियों को भी अवगत करवाया गया लेकिन इस पर अभी तक कोई कार्रवाई होती नही दिखती क्या ऐसे में हो पाएगा देश के भबिष्य का निर्माण?

बाईट -सुनील जुयाल




Conclusion:80 के दशक में हुआ था स्कूल भवन का निर्माण कई बार अधिकारियों को बताने के बाबजूद जर्जर हो चुके भवन की नही ली गई सुध भवन के बरामदे मे संचालित हो रहा पठन पाठन कार्य
Last Updated : Nov 12, 2019, 6:34 PM IST
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