रुद्रप्रयाग: केदारनाथ जाने वाले पौराणिक रास्तों को विकसित करने की योजना पर वन प्रभाग काम रहा है. वर्तमान में श्रद्धालु गौरीकुंड से केदारपुरी पहुंचते हैं. यह पैदल मार्ग दस फीट चौड़ा है. मगर अब वन प्रभाग केदारनाथ के लिए त्रियुगीनारायण व चैमासी से जाने वाले पौराणिक ट्रैकों को विकसित करने का कार्य करेगा.
विदित है कि जून 2013 की केदारनाथ आपदा के दौरान केदारनाथ धाम का मुख्य मार्ग गौरीकुंड पैदल मार्ग क्षतिग्रस्त होने से जर्जर पौराणिक मार्गों से ही हजारों भक्तों ने अपनी जान बचाई थी. हालांकि, ट्रैक काफी जटिल व खतरनाक होने से सैकड़ों यात्रियों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था. साल 2014 में प्रदेश सरकार ने केदारनाथ को जोड़ने वाले दोनों पैदल ट्रैकों के महत्व को देखते हुए दो करोड़ रुपये की धनराशि जीर्णोद्धार के लिए दी. ट्रैकों पर कार्य तो किया गया, मगर धनराशि कम होने से स्थिति ज्यादा नहीं सुधर सकी.
पौराणिक समय में गंगोत्री से आने वाले श्रद्धालु त्रियुगीनारायण से होते हुए केदारनाथ पहुंचते थे, जबकि कालीमठ के दर्शन के बाद भक्तों के लिए चैमासी से केदारनाथ का पैदल ट्रैक था. केदारनाथ आपदा के बाद से इन पैदल मार्गों के जर्जर होने से ये काफी खतरनाक हो गए हैं. ऐसे में कम संख्या में ही इस ट्रैक से लोग आवाजाही करते हैं. यह दोनों ट्रैक केदारनाथ के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. वन विभाग केदारनाथ के लिए त्रियुगीनारायण व चैमासी से जाने वाले पौराणिक ट्रैकों को विकसित करने की योजना पर काम कर रहा है.
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त्रियुगीनारायण से केदारनाथ तक पैदल ट्रैक 23 किमी लंबा है, जबकि चैमासी से केदारनाथ तक का ट्रैक भी 19 किमी लंबा है. इन मार्गों के बीच में बुग्याल (घास के मैदान) भी हैं. जो साहसिक पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं. वन विभाग इन ट्रैकों को बनाकर अपनी आमदनी भी करना चाहता है. ये पूरे क्षेत्र प्रतिबंधित वन क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं, जिससे इस पूरे क्षेत्र में वन विभाग ही निर्माण के लिए अधिकृत है.
केदारनाथ वन प्रभाग के उप वन संरक्षक अमित कंवर ने बताया कि केदारनाथ में आपदा प्रबंधन के दृष्टिगत पैदल ट्रैकों को दुरुस्त करवाया जायेगा. केदारनाथ आपदा के दौरान भी पौराणिक पैदल ट्रैकों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही थी. इसको देखते हुए इसका निर्माण किया जा रहा है. इसके बाद तुंगनाथ, मद्महेश्वर व रुद्रनाथ ट्रैकों को भी इन पैदल ट्रैकों से जोड़ा जाएगा.