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केदारघाटी में बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या, भविष्य के लिए अशुभ संकेत

केदारघाटी में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरंतर बढ़ रही है, जिससे मार्च महीने में ही जमीन तपने का अहसास हो रहा है. वहीं मार्च महीने के आखिरी सप्ताह तक बर्फबारी से लकदक रहने वाली तुंगनाथ घाटी सहित हिमालय बर्फ विहीन होता जा रहा है. यह सब ग्लोबल वार्मिंग का असर है, जो भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं.

effect of global warming in uttarakhand
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Published : Mar 5, 2021, 8:36 PM IST

रुद्रप्रयागः केदारघाटी में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है. परिणाम स्वरूप वर्ष भर बर्फबारी से लकदक रहने वाला हिमालय धीरे-धीरे बर्फविहीन होता जा रहा है. मौसम की बात करें तो मार्च महीने के प्रथम सप्ताह में ही जमीन तपने का अहसास होने लगा है. वहीं, आने वाले दिनों में यदि बारिश नहीं होती है तो मई-जून माह में भारी पेयजल संकट गहरा सकता है. हिमालय के धीरे-धीरे बर्फ विहीन होने से पर्यावरणविद् खासे चिंतित हैं, जबकि काश्तकारों के अरमानों पर पानी फिर गया है.

effect of global warming in uttarakhand
केदारघाटी में बर्फ विहीन हिमालय.

बता दें कि केदारघाटी में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है. मार्च महीने के आखिरी सप्ताह तक बर्फबारी से लकदक रहने वाली तुंगनाथ घाटी सहित हिमालय बर्फ विहीन होता जा रहा है. इस वर्ष तुंगनाथ घाटी में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से शीतकालीन पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हुआ है, जबकि प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर निरंतर गिरावट देखी जा रही है. वहीं, ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरंतर बढ़ने से इस वर्ष बसंत ऋतु अपने निर्धारित समय से पहले ही अपने यौवन पर आ गयी है.

Snowless Himalayas in Kedarghati
केदारघाटी में बर्फ विहीन हिमालय.

केदारघाटी में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से अप्रैल माह के तीसरे सप्ताह में तैयार होनी वाली सरसों की फसल फरवरी माह के अंतिम सप्ताह में तैयार हो चुकी है. मार्च महीने में ही धरती के तपने से पर्यावरणविद् खासे चिंतित हैं. पर्यावरणविदों का मामना है कि यदि प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप बंद नहीं हुआ तो भविष्य में गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.

ये भी पढ़ेंः इस बार सबसे अधिक गर्म रहा जनवरी का महीना, रवि की फसलों पर पड़ सकता है प्रभाव

वहीं, व्यापार संघ चोपता अध्यक्ष भूपेन्द्र मैठाणी बताते हैं कि तीन दशक पूर्व अप्रैल महीने तक तुंगनाथ घाटी बर्फबारी से लकदक रहती थी, मगर इस वर्ष फरवरी माह में भी मौसम के अनुकूल बर्फबारी नहीं हुई. वहीं पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली ने कहा कि इस वर्ष बारिश और बर्फवारी काफी कम मात्रा में हुई है, जिसका सीधा असर प्रकृति पर पड़ रहा है. जहां काश्तकारों की फसलों को भारी नुकसान हुआ है, तो वहीं लोगों को अभी से ही गर्मी का अहसास हो रहा है. ऊंचाई वाले इलाके बर्फ विहीन हो चुके हैं. यह सब ग्लोबल वार्मिंग का असर है, जो भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं.

रुद्रप्रयागः केदारघाटी में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है. परिणाम स्वरूप वर्ष भर बर्फबारी से लकदक रहने वाला हिमालय धीरे-धीरे बर्फविहीन होता जा रहा है. मौसम की बात करें तो मार्च महीने के प्रथम सप्ताह में ही जमीन तपने का अहसास होने लगा है. वहीं, आने वाले दिनों में यदि बारिश नहीं होती है तो मई-जून माह में भारी पेयजल संकट गहरा सकता है. हिमालय के धीरे-धीरे बर्फ विहीन होने से पर्यावरणविद् खासे चिंतित हैं, जबकि काश्तकारों के अरमानों पर पानी फिर गया है.

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केदारघाटी में बर्फ विहीन हिमालय.

बता दें कि केदारघाटी में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है. मार्च महीने के आखिरी सप्ताह तक बर्फबारी से लकदक रहने वाली तुंगनाथ घाटी सहित हिमालय बर्फ विहीन होता जा रहा है. इस वर्ष तुंगनाथ घाटी में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से शीतकालीन पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हुआ है, जबकि प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर निरंतर गिरावट देखी जा रही है. वहीं, ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरंतर बढ़ने से इस वर्ष बसंत ऋतु अपने निर्धारित समय से पहले ही अपने यौवन पर आ गयी है.

Snowless Himalayas in Kedarghati
केदारघाटी में बर्फ विहीन हिमालय.

केदारघाटी में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से अप्रैल माह के तीसरे सप्ताह में तैयार होनी वाली सरसों की फसल फरवरी माह के अंतिम सप्ताह में तैयार हो चुकी है. मार्च महीने में ही धरती के तपने से पर्यावरणविद् खासे चिंतित हैं. पर्यावरणविदों का मामना है कि यदि प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप बंद नहीं हुआ तो भविष्य में गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.

ये भी पढ़ेंः इस बार सबसे अधिक गर्म रहा जनवरी का महीना, रवि की फसलों पर पड़ सकता है प्रभाव

वहीं, व्यापार संघ चोपता अध्यक्ष भूपेन्द्र मैठाणी बताते हैं कि तीन दशक पूर्व अप्रैल महीने तक तुंगनाथ घाटी बर्फबारी से लकदक रहती थी, मगर इस वर्ष फरवरी माह में भी मौसम के अनुकूल बर्फबारी नहीं हुई. वहीं पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली ने कहा कि इस वर्ष बारिश और बर्फवारी काफी कम मात्रा में हुई है, जिसका सीधा असर प्रकृति पर पड़ रहा है. जहां काश्तकारों की फसलों को भारी नुकसान हुआ है, तो वहीं लोगों को अभी से ही गर्मी का अहसास हो रहा है. ऊंचाई वाले इलाके बर्फ विहीन हो चुके हैं. यह सब ग्लोबल वार्मिंग का असर है, जो भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं.

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