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बुग्यालों की ओर चले केदारघाटी के भेड़ पालक, 6 महीने हिमालय होगा ठिकाना - बुग्याल न्यूज

पिछले कुछ सालों की बात करें तो अप्रैल महीने के दूसरे सप्ताह से ही भेड़ पालक बुग्यालों की ओर रुख करते थे. इस साल मौसम की बेरुखी के कारण भेड़ पालक दो सप्ताह बाद बुग्यालों की ओर जा रहे हैं.

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Published : May 5, 2020, 8:02 AM IST

Updated : May 25, 2020, 2:17 PM IST

रुद्रप्रयाग: सीमांत गांवों में रहने वाले केदारघाटी के भेड़ पालकों ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों (बुग्यालों) का रुख करना शुरू कर दिया है. इस बार मौसम की बेरुखी के कारण भेड़ पालकों ने तीन सप्ताह बाद बुग्यालों का रुख किया है. अब ये भेड़ पालक दीपावली तक वहीं रहेंगे. यानी छह महीने तक वहीं पर प्रवास करेंगे.

बता दें कि केदारघाटी के त्रियुगीनारायण, तोषी, चैमासी, जाल तल्ला, जाल मल्ला, चीलौण्ड, रांसी, गौण्डार, उनियाणा, बुरुवा, गड़गू, गैड़, सारी, पाबजगपुड़ा, मक्कू व क्यूजा घाटी के अखोड़ी, मचकण्डी, किणझाणी सहित विभिन्न गावों के ग्रामीण आज भी भेड़ पालन व्यवसाय पर निर्भर हैं. इन भेड़ पालकों की ग्रीष्मकाल में छह महीने तक बुग्यालों में प्रवास करने की परम्परा प्राचीन है.

रांसी गांव से लगभग 32 किमी दूर सुरम्य मखमली बुग्यालों के मध्य विराजमान भगवती मनणा माई को भेड़ पालकों की आराध्य देवी माना जाता है. लोक मान्यताओं के अनुसार भगवती मनणा माई की पूजा अर्चना भेड़ पालकों द्वारा की जाती थी, मगर धीरे-धीरे भेड़ पालन की परम्परा कम होने पर अब रांसी के ग्रामीणों द्वारा भगवती मनणा माई की पूजा अर्चना की जाती है.

पढ़ें- विधानसभा अध्यक्ष ने शराब की दुकान खोलने का किया विरोध, जानिए क्यों

पिछले कुछ सालों की बात करें तो अप्रैल महीने के दूसरे सप्ताह से ही भेड़ पालक बुग्यालों की ओर रुख करते थे, लेकिन इस साल मौसम की बेरुखी के कारण भेड़ पालक दो सप्ताह बाद बुग्यालों की ओर जा रहे हैं. अब छह महीने तक ये भेड़ पालक बुग्यालों में ही रहेंगे. इस दौरान इन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि बुग्यालों में इन्हें किसी भी तरह की सुविधा नहीं मिलती है.

इन छह महीनों के प्रवास के दौरान जहां बुग्यालों में जंगली जानवरों का डर रहता है तो वहीं खाद्यान्न सामाग्री के लिए भी इन्हें कई किमी पैदल चलना पड़ता है.

पढ़ें- LOCKDOWN: बिना परमिशन शादी करना पड़ा महंगा, दूल्हे समेत 10 पर FIR

भाद्रपद की पांच गते को बुग्यालों में मनाये जाने वाले लाई मेला में भेड़ पालकों व ग्रामीणों के बीच भाईचारे का अनूठा संगम दिखाई देता है. उस दिन भेड़ पालकों के छोटे बच्चे भी अपनी भेड़ें को मिलने के लिए बडे़ उत्साह व उमंग से जाते हैं.

जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा बताते हैं कि भेड़ पालकों का जीवन बड़ा ही कष्टदायक होता है. मदमहेश्वर घाटी विकास मंच के अध्यक्ष मदन भटट् की मानें तो यदि प्रदेश सरकार भेड़ पालन व्यवसाय को बढ़ावा देती है तो अन्य लोग भी भेड़ पालन व्यवसाय को आजीविका के रूप में अपना सकते हैं.

रुद्रप्रयाग: सीमांत गांवों में रहने वाले केदारघाटी के भेड़ पालकों ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों (बुग्यालों) का रुख करना शुरू कर दिया है. इस बार मौसम की बेरुखी के कारण भेड़ पालकों ने तीन सप्ताह बाद बुग्यालों का रुख किया है. अब ये भेड़ पालक दीपावली तक वहीं रहेंगे. यानी छह महीने तक वहीं पर प्रवास करेंगे.

बता दें कि केदारघाटी के त्रियुगीनारायण, तोषी, चैमासी, जाल तल्ला, जाल मल्ला, चीलौण्ड, रांसी, गौण्डार, उनियाणा, बुरुवा, गड़गू, गैड़, सारी, पाबजगपुड़ा, मक्कू व क्यूजा घाटी के अखोड़ी, मचकण्डी, किणझाणी सहित विभिन्न गावों के ग्रामीण आज भी भेड़ पालन व्यवसाय पर निर्भर हैं. इन भेड़ पालकों की ग्रीष्मकाल में छह महीने तक बुग्यालों में प्रवास करने की परम्परा प्राचीन है.

रांसी गांव से लगभग 32 किमी दूर सुरम्य मखमली बुग्यालों के मध्य विराजमान भगवती मनणा माई को भेड़ पालकों की आराध्य देवी माना जाता है. लोक मान्यताओं के अनुसार भगवती मनणा माई की पूजा अर्चना भेड़ पालकों द्वारा की जाती थी, मगर धीरे-धीरे भेड़ पालन की परम्परा कम होने पर अब रांसी के ग्रामीणों द्वारा भगवती मनणा माई की पूजा अर्चना की जाती है.

पढ़ें- विधानसभा अध्यक्ष ने शराब की दुकान खोलने का किया विरोध, जानिए क्यों

पिछले कुछ सालों की बात करें तो अप्रैल महीने के दूसरे सप्ताह से ही भेड़ पालक बुग्यालों की ओर रुख करते थे, लेकिन इस साल मौसम की बेरुखी के कारण भेड़ पालक दो सप्ताह बाद बुग्यालों की ओर जा रहे हैं. अब छह महीने तक ये भेड़ पालक बुग्यालों में ही रहेंगे. इस दौरान इन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि बुग्यालों में इन्हें किसी भी तरह की सुविधा नहीं मिलती है.

इन छह महीनों के प्रवास के दौरान जहां बुग्यालों में जंगली जानवरों का डर रहता है तो वहीं खाद्यान्न सामाग्री के लिए भी इन्हें कई किमी पैदल चलना पड़ता है.

पढ़ें- LOCKDOWN: बिना परमिशन शादी करना पड़ा महंगा, दूल्हे समेत 10 पर FIR

भाद्रपद की पांच गते को बुग्यालों में मनाये जाने वाले लाई मेला में भेड़ पालकों व ग्रामीणों के बीच भाईचारे का अनूठा संगम दिखाई देता है. उस दिन भेड़ पालकों के छोटे बच्चे भी अपनी भेड़ें को मिलने के लिए बडे़ उत्साह व उमंग से जाते हैं.

जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा बताते हैं कि भेड़ पालकों का जीवन बड़ा ही कष्टदायक होता है. मदमहेश्वर घाटी विकास मंच के अध्यक्ष मदन भटट् की मानें तो यदि प्रदेश सरकार भेड़ पालन व्यवसाय को बढ़ावा देती है तो अन्य लोग भी भेड़ पालन व्यवसाय को आजीविका के रूप में अपना सकते हैं.

Last Updated : May 25, 2020, 2:17 PM IST
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