रुद्रप्रयाग: केदारघाटी का प्रसिद्ध जाख मेला नर पश्वा के धधकते अंगारों पर नृत्य करने के साथ ही संपन्न हुआ. इस दौरान हजारों भक्तों ने भगवान यक्ष के प्रत्यक्ष दर्शन करके सुख समृद्धि की कामना की. इस बार नए नर पश्वा ने अग्निकुंड में नृत्य किया. 11वीं सदी से चली आ रही यह परंपरा आज भी उत्साह के साथ मनाई जाती है.
दहकते अंगारों पर जाख देवता के नृत्य की परंपरा सदियों पुरानी है. हर साल आयोजित होने वाले इस मेले में हजारों की संख्या में भक्तजन जाख राजा के दर्शन करने आते हैं. मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व कोठेड़ा और नारायणकोटी के भक्तजन नंगे पांव जंगल में जाकर लकड़ियां एकत्रित कर, जाख मंदिर में लाते हैं. रात्रि के समय पूजा के बाद इन लकड़ियों को अग्निकुंड में जलाया जाता है. रातभर जागरण के बाद जाख देवता इन्हीं धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं.
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11वीं सदी से चली आ रही यह परंपरा आज भी उत्साह के साथ मनाई जाती है. मंत्रोच्चार से अग्निकुंड में लकड़ियां प्रज्ज्वलित की जाती हैं. यह देवयात्रा भेत से कोठेड़ा गांव होते हुए देवशाल पहुंची. जहां पर विंध्यवासिनी मंदिर में देवशाल के ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के साथ भगवान शिव की स्तुति की. जिसके बाद देवशाल से भगवान जाख के पश्वा और ग्रामीण जलते दिए, जाख की कंडी लेकर श्रद्धालुओं के साथ देवस्थल पहुंचे. फिर जाख देवता ने दहकते हुए अंगारों के अग्निकुंड में प्रवेश कर भक्तों को साक्षात यक्ष रूप में दर्शन दिये.
बीते दिनों पुराने नर पश्वा की मौत के बाद संदेह जताया जा रहा था कि अब किस पर जाख देवता अवतरित होंगे, लेकिन जैसे ही देवशाल मंदिर में मंत्रोच्चार हुआ. नए पश्वा सच्चिदानंद पर देव अवतरित हुए. नए अवतरण के साथ ही श्रद्धालुओं ने पूरे जोश के साथ भगवान यक्ष के जयकारे लगाए.