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उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कम बर्फबारी से पर्यावरणविद् चिंतित, समय से चेतने की बताई जरूरत

Uttarakhand Snowfall उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इस सीजन बर्फबारी कम होने से पर्यावरणविद् खासे चिंतित नजर आ रहे हैं. उनका कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग का असर मौसम पर दिखने लगा है. साथ ही उन्होंने लोगों को समय पर चेतने की जरूरत बताया.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 3, 2024, 10:01 AM IST

Updated : Jan 3, 2024, 11:06 AM IST

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कम बर्फबारी से पर्यावरणविद् चिंतित

रुद्रप्रयाग: इस सीजन उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जैसी बर्फबारी होनी चाहिये थी, वैसी नहीं हो पाई है. जिस कारण बर्फ से लकदक रहने वाली पहाड़ियों में कम बर्फबारी देखने को मिल रही है. जिससे पर्यावरणविद् खासे चिंतित नजर आ रहे हैं. प्रसिद्ध पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली का कहना है कि आज मौसम में भारी परिवर्तन दिख रहा है. जो चोटियां आजकल बर्फ से ढकी रहती थी, वह चोटियां बिना बर्फ की हैं.

केदारनाथ धाम तकरीबन साढ़े ग्यारह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. धाम के पूरब और पीछे की पहाड़ियां हमेशा बर्फ से ढकी रहती हैं. केदारनाथ के मौसम में कब परिवर्तन हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. वैसे तो धाम में नवंबर से लेकर मार्च तक बर्फबारी होती रहती है. सबसे अधिक बर्फबारी यहां दिसंबर और जनवरी के महीने में होती है, लेकिन इस बार धाम में बर्फ देखना मुश्किल हो गया है. दो सप्ताह पहले धाम में एक फीट तक बर्फ गिरी थी, लेकिन तब से यहां बर्फ नहीं गिरी है. हालांकि धाम में ठंड अत्यधिक है. ठंड के कारण धाम में चल रहे सभी प्रकार के पुनर्निर्माण कार्य भी रूक गये हैं. वर्ष 2023 की यात्रा सीजन के दौरान धाम में अप्रैल से लेकर जून जैसे गर्म महीनों में बर्फबारी होती रही, जिस कारण यात्रा भी काफी प्रभावित रही.
पढ़ें-उत्तराखंड में जम गए नदी और झरने, कुदरत की कारीगरी देख आप भी कहेंगे वाह!

पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली ने बताया कि आज मौसम में भारी परिवर्तन दिख रहा है. जीवन के 70 वर्षों में आज तक यह स्थिति नहीं देखी है. जो चोटियां आजकल बर्फ से ढकी रहती थी, वह चोटियां बिना बर्फ की हैं. इस विषय में सिर्फ हिमालय के लोगों को नहीं, बल्कि पूरे देश के लोगों को सोचना चाहिए. उत्तराखंड के जंगलों में जो आग लगती है, उसने हिमालयी ग्लेशियरों को प्रभावित किया है. इसके अलावा हिमालय में जिस प्रकार से निर्माण कार्य चल रहे हैं, वह भी मौसम परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं. मौसम ने मानव को नहीं, बल्कि वन्य जीवों को भी कठिनाईयों में डाल दिया है. गौमुख ग्लेशियर की जो स्थिति 70 साल पहले थी, वह आज नहीं है. अभी भी समय है कि हमें चेत जाना चाहिए और हिमालय को बचाना चाहिए.

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कम बर्फबारी से पर्यावरणविद् चिंतित

रुद्रप्रयाग: इस सीजन उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जैसी बर्फबारी होनी चाहिये थी, वैसी नहीं हो पाई है. जिस कारण बर्फ से लकदक रहने वाली पहाड़ियों में कम बर्फबारी देखने को मिल रही है. जिससे पर्यावरणविद् खासे चिंतित नजर आ रहे हैं. प्रसिद्ध पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली का कहना है कि आज मौसम में भारी परिवर्तन दिख रहा है. जो चोटियां आजकल बर्फ से ढकी रहती थी, वह चोटियां बिना बर्फ की हैं.

केदारनाथ धाम तकरीबन साढ़े ग्यारह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. धाम के पूरब और पीछे की पहाड़ियां हमेशा बर्फ से ढकी रहती हैं. केदारनाथ के मौसम में कब परिवर्तन हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. वैसे तो धाम में नवंबर से लेकर मार्च तक बर्फबारी होती रहती है. सबसे अधिक बर्फबारी यहां दिसंबर और जनवरी के महीने में होती है, लेकिन इस बार धाम में बर्फ देखना मुश्किल हो गया है. दो सप्ताह पहले धाम में एक फीट तक बर्फ गिरी थी, लेकिन तब से यहां बर्फ नहीं गिरी है. हालांकि धाम में ठंड अत्यधिक है. ठंड के कारण धाम में चल रहे सभी प्रकार के पुनर्निर्माण कार्य भी रूक गये हैं. वर्ष 2023 की यात्रा सीजन के दौरान धाम में अप्रैल से लेकर जून जैसे गर्म महीनों में बर्फबारी होती रही, जिस कारण यात्रा भी काफी प्रभावित रही.
पढ़ें-उत्तराखंड में जम गए नदी और झरने, कुदरत की कारीगरी देख आप भी कहेंगे वाह!

पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली ने बताया कि आज मौसम में भारी परिवर्तन दिख रहा है. जीवन के 70 वर्षों में आज तक यह स्थिति नहीं देखी है. जो चोटियां आजकल बर्फ से ढकी रहती थी, वह चोटियां बिना बर्फ की हैं. इस विषय में सिर्फ हिमालय के लोगों को नहीं, बल्कि पूरे देश के लोगों को सोचना चाहिए. उत्तराखंड के जंगलों में जो आग लगती है, उसने हिमालयी ग्लेशियरों को प्रभावित किया है. इसके अलावा हिमालय में जिस प्रकार से निर्माण कार्य चल रहे हैं, वह भी मौसम परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं. मौसम ने मानव को नहीं, बल्कि वन्य जीवों को भी कठिनाईयों में डाल दिया है. गौमुख ग्लेशियर की जो स्थिति 70 साल पहले थी, वह आज नहीं है. अभी भी समय है कि हमें चेत जाना चाहिए और हिमालय को बचाना चाहिए.

Last Updated : Jan 3, 2024, 11:06 AM IST
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