पिथौरागढ़: उत्तराखंड के जंगलों में दुर्लभ हिमालयन लाल गिलहरी का जोड़ा देखा गया है. ये गिलहरी कौतूहल का विषय बना हुआ है. मध्य हिमालय में पाई जाने वाली ये उड़ने वाली लाल गिलहरी नेवले के आकार की होती है. जो अपने पंजों को पैराशूट की तरह इस्तेमाल कर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगाती है. ये उड़ने वाली गिलहरी 30 से 40 फीट तक संतुलन बनाकर छलांग लगा सकती है.
पिथौरागढ़ के फॉरेस्ट एरिया में उड़ने वाली हिमालयन लाल गिलहरी की तस्वीर कैमरे में कैद हुई है. थल तहसील के गार्जिला गांव के जंगल में लाल गिलहरी का जोड़ा देखा गया है. एक साल पहले ये दुर्लभ गिलहरी रुद्रप्रयाग के जंगलों में दिखाई दी थी. इसका वैज्ञानिक नाम टेरोमायनी है. जो पीटाॉरिस्ट फिलिपेंसीस परिवार की है. ये गिलहरी पेड़ के कोठर में रहती है. रात के समय ये शाकाहारी गिलहरी भोजन की तलाश में निकलती है.
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भारत में 12 प्रजातियां पाई जाती हैं
गिलहरी की कुल 50 प्रजातियों में से भारत में 12 प्रजातियां पाई जाती है. जिसमें से उड़न गिलहरी भी एक है. उड़न गिलहरी अपने पंजों में मौजूद फर की मदद से एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर बड़े ही नियंत्रण के साथ ग्लाइड करती है.
उड़ने के दौरान करती है ग्लाइड
पिथौरागढ़ के उप प्रभागीय वनाधिकारी नवीन पंत ने बताया कि थल के गर्जिला गांव के जंगल में हिमालयन लाल गिलहरी का एक जोड़ा देखा गया. उड़न गिलहरी की खूबी है कि यह एक पेड़ से दूसरे या नीचे उतरने के लिए ग्लाइड करती है. विचरण करते समय अपने चारों पैरों को समान दूरी पर फैलाती है. पैरों के बीच की लचीली चमड़ी एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगाते समय पैराशूट के रूप में खुलती है. इससे वह आसानी से अपने शरीर को नियंत्रित कर हवा में सुरक्षित छलांग लगती है, इसलिए इसे उड़न गिलहरी कहा जाता है.