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3000 से अधिक परिवारों के लिए 'अभिशाप' बनी इंडो-चाइना बॉर्डर रोड, खाने के पड़े लाले

व्यास घाटी में ढुलाई का काम करने वाले और धारचूला क्षेत्र के हजारों पौनी-पोटर्स अब रोजी-रोटी को मोहताज नजर आ रहे हैं. सड़क बनने से प्रभावित परिवार मदद के लिए सरकार की ओर टकटकी लगाये देख रहे हैं.

indo china border
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Published : May 10, 2020, 8:21 PM IST

Updated : May 10, 2020, 9:53 PM IST

पिथौरागढ़: बीती 8 मई को केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इंडो-चाइना बॉर्डर को जोड़ने वाली लाइफलाइन लिपुलेख सड़क का उद्घाटन किया था. इस तरह भारत-चीन सीमा से सटे व्यास घाटी के 7 गांव आजादी के सात दशक बाद लाइफलाइन से तो जुड़ गये, लेकिन ये उनके लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है. एक तरफ सीमांत क्षेत्र के प्रहरियों के लिए ये सड़क किसी वरदान से कम नहीं है. मगर इस क्षेत्र के करीब 3000 परिवार ऐसे भी हैं, जिनका दाना-पानी सड़क बनने से पूरी तरह छिन गया है.

इंडो-चाइना बॉर्डर रोड से गहराया संकट

व्यास घाटी में ढुलाई का काम करने वाले और धारचूला क्षेत्र के हजारों पौनी-पोटर्स अब रोजी-रोटी को मोहताज नजर आ रहे हैं. सड़क बनने से प्रभावित परिवार मदद के लिए सरकार की ओर टकटकी लगाये देख रहे हैं.

गाला गांव की कलावती देवी
गाला गांव की कलावती देवी

पिथौरागढ़ में चीन सीमा को जोड़ने वाली सड़क लिपुलेख तक बनकर तैयार हो गयी है. सड़क बनने से भले ही व्यास घाटी के 7 गांव मुख्यधारा से जुड़ गये हों, मगर धारचूला क्षेत्र के करीब 3000 परिवारों को इस विकास की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है. सीमांत क्षेत्र में ढुलाई का काम करने वालों के साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा और भारत-चीन व्यापार में शिरकत करने वाले हजारों पौनी-पोटर्स परिवार अब दो जून की रोटी को मोहताज हो गये हैं.

पढ़े: मुंबई में फंसे युवक ने CM त्रिवेंद्र से लगाई मदद की गुहार, कहा- नहीं मिल रहा खाना

बकरियों पर सामान लादकर अपने परिवार का जिम्मा संभालने वाली गाला गांव की कलावती देवी का कहना है कि वो दशकों से पति के साथ ढुलाई का काम करती आ रही हैं और इसी के जरिए बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और पालन-पोषण करती हैं. कलावती बताती हैं कि पहले उन्हें एक खेप की ढुलाई में 4 से 5 हजार रुपये की कमाई होती थी.

मगर सड़क पहुंचने से उनकी आमदनी का एकमात्र जरिया भी छिन गया है. कलावती को अब बच्चों की परवरिश की चिंता खूब सता रही है. सीमांत क्षेत्र के हजारों परिवार भी इसी चिंता में डूबे हुये हैं और सरकार से रोजगार के अवसर मुहैया कराने की आस लगाये हुये हैं.

पिथौरागढ़: बीती 8 मई को केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इंडो-चाइना बॉर्डर को जोड़ने वाली लाइफलाइन लिपुलेख सड़क का उद्घाटन किया था. इस तरह भारत-चीन सीमा से सटे व्यास घाटी के 7 गांव आजादी के सात दशक बाद लाइफलाइन से तो जुड़ गये, लेकिन ये उनके लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है. एक तरफ सीमांत क्षेत्र के प्रहरियों के लिए ये सड़क किसी वरदान से कम नहीं है. मगर इस क्षेत्र के करीब 3000 परिवार ऐसे भी हैं, जिनका दाना-पानी सड़क बनने से पूरी तरह छिन गया है.

इंडो-चाइना बॉर्डर रोड से गहराया संकट

व्यास घाटी में ढुलाई का काम करने वाले और धारचूला क्षेत्र के हजारों पौनी-पोटर्स अब रोजी-रोटी को मोहताज नजर आ रहे हैं. सड़क बनने से प्रभावित परिवार मदद के लिए सरकार की ओर टकटकी लगाये देख रहे हैं.

गाला गांव की कलावती देवी
गाला गांव की कलावती देवी

पिथौरागढ़ में चीन सीमा को जोड़ने वाली सड़क लिपुलेख तक बनकर तैयार हो गयी है. सड़क बनने से भले ही व्यास घाटी के 7 गांव मुख्यधारा से जुड़ गये हों, मगर धारचूला क्षेत्र के करीब 3000 परिवारों को इस विकास की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है. सीमांत क्षेत्र में ढुलाई का काम करने वालों के साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा और भारत-चीन व्यापार में शिरकत करने वाले हजारों पौनी-पोटर्स परिवार अब दो जून की रोटी को मोहताज हो गये हैं.

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बकरियों पर सामान लादकर अपने परिवार का जिम्मा संभालने वाली गाला गांव की कलावती देवी का कहना है कि वो दशकों से पति के साथ ढुलाई का काम करती आ रही हैं और इसी के जरिए बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और पालन-पोषण करती हैं. कलावती बताती हैं कि पहले उन्हें एक खेप की ढुलाई में 4 से 5 हजार रुपये की कमाई होती थी.

मगर सड़क पहुंचने से उनकी आमदनी का एकमात्र जरिया भी छिन गया है. कलावती को अब बच्चों की परवरिश की चिंता खूब सता रही है. सीमांत क्षेत्र के हजारों परिवार भी इसी चिंता में डूबे हुये हैं और सरकार से रोजगार के अवसर मुहैया कराने की आस लगाये हुये हैं.

Last Updated : May 10, 2020, 9:53 PM IST
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