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विश्व प्रसिद्ध ओम पर्वत के दीदार के लिए पहुंच रहे सैलानी, बर्फ से लकदक हैं पहाड़ियां - Pithoragarh Nabhidhang Om Parvat

सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में पर्यटन स्थलों की भरमार है. जिसका दीदार करने सैलानी देश-विदेश से पहुंचते हैं. वहीं विश्व प्रसिद्ध ओम पर्वत के दीदार के लिए भारी तादात में सैलानी नाभीढांग पहुंच रहे हैं.

Pithoragarh
विश्व प्रसिद्ध ओम पर्वत
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Published : Nov 2, 2021, 7:07 AM IST

Updated : Nov 2, 2021, 7:34 AM IST

पिथौरागढ़: विश्व प्रसिद्ध ओम पर्वत के दीदार के लिए भारी तादात में सैलानी नाभीढांग पहुंच रहे हैं. बीते दिनों हुई भारी बर्फबारी के बाद ये पूरा इलाका बर्फ से पटा हुआ है. इस इलाके में 3 फीट से अधिक बर्फ पड़ी हुई हैं. जबकि, चारों तरफ पहाड़ियां बर्फ से लकदक हैं. ऐसे में शिव के धाम ओम पर्वत का नजारा देखते ही बन रहा है.

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बीते दिनों हुई भारी बर्फबारी के कारण रास्ते बंद होने से ओम पर्वत के दर्शन के लिए आये सैकड़ों सैलानी फंस गए थे. जिन्हें प्रशासन द्वारा हेलीकॉप्टर की मदद से रेस्क्यू किया गया था. वहीं, अब मौसम साफ होने पर ओम पर्वत के दर्शन के लिए नाभीढांग में सैलानियों का तांता लगा हुआ है. ईटीवी भारत संवाददाता ने 14 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित नाभीढांग पहुंचकर हालात का जायजा लिया है.

ओम पर्वत के दीदार के लिए पहुंच रहे सैलानी.

पढ़ें-कड़ाके की ठंड पर आस्था भारी, बदरीनाथ धाम में बर्फबारी के बीच झूमे श्रद्धालु

इनरलाइन पास बनाना जरूरी

नाभीढांग को जोड़ने वाले रास्ते पर 3 फीट से अधिक बर्फ पड़ी थी. जिसे बीआरओ ने आवाजाही के खोल दिया है. ऐसे में भारी तादाद में देश भर से आये सैलानी ओम पर्वत के दर्शन के लिए नाभीढांग पहुंच रहे हैं. चीन और नेपाल का बॉर्डर होने के कारण यहां इनरलाइन छियालेख से आगे बढ़ने के लिए पर्यटकों को इनरलाइन पास बनाना पड़ता है.

बता दें कि 8 मई 2020 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा लिपुलेख सड़क का उद्घाटन करने के बाद ओम पर्वत की राह आसान हो गयी हैं. जबकि, इससे पहले प्रसिद्ध ओम पर्वत के दर्शन के लिए नजंग से मालपा, बूंदी, गर्बयांग होते हुये 69 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई को पार कर नाभीढांग पहुंचना पड़ता था.

पढ़ें-इन तीन राज्यों से उत्तराखंड आने वाले यात्री दें ध्यान, निगेटिव कोविड रिपोर्ट से ही मिलेगी एंट्री

मगर, अब चीन सीमा से सटे लिपुलेख तक सड़क की कटिंग पूरी होने के बाद यहां का सफर और आसान हो गया है. हालांकि, इस सड़क पर चौड़ीकरण और हॉटमिक्स का कार्य किया जाना शेष है. आध्यात्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम होने के कारण अब इस पूरे इलाके को विश्व पर्यटन के मानचित्र में स्थापित करने की मांग उठने लगी है.

ओम की बनती है आकृति

भोलेनाथ को सबसे बड़ा तपस्वी माना जाता है. उन्हें मानने वालों की तादाद असंख्य हैं. हिंदू धार्मिक मान्यताओं और पुराणों के अनुसार भगवान शिव हिमालय के कैलाश मानसरोवर पर वास करते हैंय लेकिन हिमालय में ओम पर्वत का एक विशेष स्थान है। माना जाता है कि इस जगह भी भगवान शिव का अस्तित्व रहा होगा. यह पर्वत भारत और तिब्बत की सीमा पर आज भी मौजूद है जिस पर हर साल बर्फ से ओम की आकृति बनती है.

ओम पर्वत को आदि कैलाश या छोटा कैलाश भी कहा जाता है. ओम पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से 6,191 मीटर (20,312 फीट) है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार हिमालय में कुल 8 जगह ओम की आकृति बनती है, लेकिन अभी तक सिर्फ इसी स्थान की खोज हुई है. इस पर्वत पर बर्फ गिरने से प्राकृतिक रूप से ओम की ध्वनि उत्पन्न होती है. ओम पर्वत तक ट्रेक करके भी पहुंचा जा सकता है.

कैलाश मानसरोवर का महत्व

कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है. सदियों से देवता, दानव, योगी, मुनि और सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं. मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाये स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है.

पिथौरागढ़: विश्व प्रसिद्ध ओम पर्वत के दीदार के लिए भारी तादात में सैलानी नाभीढांग पहुंच रहे हैं. बीते दिनों हुई भारी बर्फबारी के बाद ये पूरा इलाका बर्फ से पटा हुआ है. इस इलाके में 3 फीट से अधिक बर्फ पड़ी हुई हैं. जबकि, चारों तरफ पहाड़ियां बर्फ से लकदक हैं. ऐसे में शिव के धाम ओम पर्वत का नजारा देखते ही बन रहा है.

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बीते दिनों हुई भारी बर्फबारी के कारण रास्ते बंद होने से ओम पर्वत के दर्शन के लिए आये सैकड़ों सैलानी फंस गए थे. जिन्हें प्रशासन द्वारा हेलीकॉप्टर की मदद से रेस्क्यू किया गया था. वहीं, अब मौसम साफ होने पर ओम पर्वत के दर्शन के लिए नाभीढांग में सैलानियों का तांता लगा हुआ है. ईटीवी भारत संवाददाता ने 14 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित नाभीढांग पहुंचकर हालात का जायजा लिया है.

ओम पर्वत के दीदार के लिए पहुंच रहे सैलानी.

पढ़ें-कड़ाके की ठंड पर आस्था भारी, बदरीनाथ धाम में बर्फबारी के बीच झूमे श्रद्धालु

इनरलाइन पास बनाना जरूरी

नाभीढांग को जोड़ने वाले रास्ते पर 3 फीट से अधिक बर्फ पड़ी थी. जिसे बीआरओ ने आवाजाही के खोल दिया है. ऐसे में भारी तादाद में देश भर से आये सैलानी ओम पर्वत के दर्शन के लिए नाभीढांग पहुंच रहे हैं. चीन और नेपाल का बॉर्डर होने के कारण यहां इनरलाइन छियालेख से आगे बढ़ने के लिए पर्यटकों को इनरलाइन पास बनाना पड़ता है.

बता दें कि 8 मई 2020 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा लिपुलेख सड़क का उद्घाटन करने के बाद ओम पर्वत की राह आसान हो गयी हैं. जबकि, इससे पहले प्रसिद्ध ओम पर्वत के दर्शन के लिए नजंग से मालपा, बूंदी, गर्बयांग होते हुये 69 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई को पार कर नाभीढांग पहुंचना पड़ता था.

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मगर, अब चीन सीमा से सटे लिपुलेख तक सड़क की कटिंग पूरी होने के बाद यहां का सफर और आसान हो गया है. हालांकि, इस सड़क पर चौड़ीकरण और हॉटमिक्स का कार्य किया जाना शेष है. आध्यात्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम होने के कारण अब इस पूरे इलाके को विश्व पर्यटन के मानचित्र में स्थापित करने की मांग उठने लगी है.

ओम की बनती है आकृति

भोलेनाथ को सबसे बड़ा तपस्वी माना जाता है. उन्हें मानने वालों की तादाद असंख्य हैं. हिंदू धार्मिक मान्यताओं और पुराणों के अनुसार भगवान शिव हिमालय के कैलाश मानसरोवर पर वास करते हैंय लेकिन हिमालय में ओम पर्वत का एक विशेष स्थान है। माना जाता है कि इस जगह भी भगवान शिव का अस्तित्व रहा होगा. यह पर्वत भारत और तिब्बत की सीमा पर आज भी मौजूद है जिस पर हर साल बर्फ से ओम की आकृति बनती है.

ओम पर्वत को आदि कैलाश या छोटा कैलाश भी कहा जाता है. ओम पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से 6,191 मीटर (20,312 फीट) है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार हिमालय में कुल 8 जगह ओम की आकृति बनती है, लेकिन अभी तक सिर्फ इसी स्थान की खोज हुई है. इस पर्वत पर बर्फ गिरने से प्राकृतिक रूप से ओम की ध्वनि उत्पन्न होती है. ओम पर्वत तक ट्रेक करके भी पहुंचा जा सकता है.

कैलाश मानसरोवर का महत्व

कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है. सदियों से देवता, दानव, योगी, मुनि और सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं. मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाये स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है.

Last Updated : Nov 2, 2021, 7:34 AM IST
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