देहरादून: उत्तराखंड की लोक संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत अपने आप में अनूठी है. जिसे देखने हर साल देश-विदेश से लाखों सैलानी देवभूमि उत्तराखंड का रुख करते हैं. सैलानी यहां लोक संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत से अभिभूत दिखाई देते हैं. आज हम आपको कंडाली महोत्सव (Dharchula Kandali festival) के बारे में बताने जा रहे हैं. इस ऐतिहासिक मेले का रं समाज (Dharchula Ran Culture) के लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं, जिससे उनकी विरासत जुड़ी हुई है. बूंदी गांव, पांगू में कुंभ की तर्ज पर बारह साल बाद कंडाली पर्व मनाया जाता है. पर्व की लोककथा एक महिला के इकलौते बेटे की मौत से जुड़ी है.
लोक विरासत को समेटे लोग: पिथौरागढ़ की धारचूला तहसील (Pithoragarh Dharchula Tehsil) की चौदांस पट्टी में रं संस्कृति (Dharchula Ran Culture) के लोग निवास करते हैं, जो अपनी लोक संस्कृति और सामाजिक सद्भाव के लिये जाने जाते हैं. चीन और नेपाल सीमा से लगे सीमांत के चौदांस क्षेत्र में बारह वर्षों बाद बुराई का प्रतीक माने जाने वाले कंडाली वनस्पति को नष्ट किया जाता है. कंडाली महोत्सव को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिलता है. ग्रामीणों द्वारा कंडाली को नष्ट कर आने वाले बारह वर्षों के लिये क्षेत्र को संभावित सभी कष्टों से मुक्त होना माना जाता है. कंडाली पर्व को भी कुंभ की तर्ज पर बारह वर्ष में मनाया जाता है. पर्व में रिल और तलवार से दुश्मन का प्रतीक मानी जाने वाली वनस्पति (कंडाली) को नष्ट किया जाता है.
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पारंपरिक परिधान आकर्षण का केन्द्र: कंडाली पर्व में स्यंड़सै (शिव), गबला (गणेश) के अलावा ईष्ट, ग्राम देवताओं सहित पूर्वजों का आह्वान कर पूजा की जाती है. उत्सव में पहले दिन की उपासना चिलमन से शुरू होती है और चिलमन का मतलब तन और मन को पवित्र बनाना है. दूसरे दिन मैमसा होता है, जिसके तहत अपने पूर्वजों का गौरव गान कर उनसे मानसिक संबंध स्थापित करना होता है. कंडाली महोत्सव में पारंपरिक व्यंजनों को परोसा जाता है और लोग अपने पारंपरिक परिधानों में सज धज कर पर्व को मनाते हैं. साथ ही बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं पारंपरिक परिधान में नाचते गाते इस पुष्प को नष्ट करती हैं. वहीं इस पर्व में पारंपरिक परिधान लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहते हैं. वहीं कंडाली महोत्सव साल 2011 में आयोजित हुआ था, जिसके बाद साल 2023 में पर्व आयोजित होगा.
महिला ने किया था पौधे को श्रापित: लोक कथाओं के अनुसार सदियों पूर्व इस क्षेत्र में रहने वाली महिला का इकलौता 12 वर्षीय पुत्र बीमार पड़ गया था. उस समय सिर्फ जड़ी-बूटी से ही उपचार किया जाता था. जब बीमार बच्चे का कंडाली के पौधे से उपचार किया गया तो, लड़के की मौत हो गयी. इकलौते बच्चे की मौत के बाद महिला ने वनस्पति को श्राप दिया कि बारहवें वर्ष में जब तेरी टहनियां भी बारह हो जाएंगी तब तुझे भी नष्ट कर दिया जाएगा. तब से ही 12 साल में कंडाली उत्सव का आयोजन कर उसके पौधों को नष्ट किया जाता है.
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क्या होता है कंडाली पौधा: कंडाली का वानस्पतिक नाम आर्टिका डायोसिया है. ये भारत और नेपाल के उच्च मध्य हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है. कंडाली वनस्पति एक पुष्पीय पौधा है. इस पौधे में प्रतिवर्ष एक फूल खिलता है. बारहवें वर्ष में बारह फूल खिल जाते हैं. इसी के साथ इसे क्षेत्र के लिये अभिशप्त मानते हुए नष्ट करते हैं. इस पौधे को कंडाली के साथ ही किर्जी भी कहा जाता है. चौदास घाटा में कंडाली और बूंदी में इसे किर्जी नाम से जाना जाता है. बता दें कि कंडाली पर्व अब महोत्सव के रूप में मनाया जाता है. स्थानीय लोग इस पर्व को लेकर बड़ी संख्या में घर पहुंचते हैं. लोग इस विरासत से आने वाली युवा पीढ़ी को भी रूबरू कराने को लगातार प्रयासरत हैं.