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बेरीनाग: मांगों को लेकर आशा कार्यकत्रियों की हड़ताल शुरू

आशा वर्कर्स का कहना है कि कोरोनाकाल में सभी ने अपना काम बखूबी निभाया, लेकिन जब मेहनताना देने की बात आती है, तो राज्य सरकार अपने हाथ पीछे खींच लेती है.

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आशा वर्करों का धरना प्रदर्शन
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Published : Aug 8, 2020, 9:18 AM IST

बेरीनाग: मांगों को लेकर आशा कर्मियों ने प्रदर्शन कर कार्य बहिष्कार कर दिया है. आशा वर्कर्स ने पहले दिन कार्यबहिष्कार कर महिला अस्पताल के सामने धरना दिया.

दरअसल, जनपद में विभिन्न मांगों को लेकर आशा कार्यकत्रियां तीन दिवसीय हड़ताल शुरू हो गई है. आशा वर्कर्स ने न्यूनतम वेतन, स्थायीकरण, लॉकडाउन भत्ता, पेंशन, बीमा सुरक्षा और मुख्य सवालों को उठाते हुए तीन दिवसीय हड़ताल शुरू कर दिया है. आशा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि कोरोनाकाल के समय उनसे जरूरत से ज्यादा काम लिया गया. लेकिन इसका कोई भी मानदेय नहीं दिया गया.

ये भी पढ़ें: पिछले 2 सालों में 8 IAS और 14 PCS के खिलाफ हुई शिकायतें, RTI में हुआ खुलासा

उनका आरोप है कि उत्तराखंड सरकार ने आशाओं का चयन केवल मातृ शिशु दर को कम करने के लिए किया था. लेकिन आशा वर्करों पर विभिन्न तरह के सर्वे और जानकारियां जुटाने का काम थोपा गया. कोरोनाकाल में आशाओं को घर-घर जाकर कोरोना मरीजों को चिन्हित करने काम और उनका स्वास्थ्य परीक्षण करने का काम भी सौंपा गया है. इसके लिए प्रशासन की ओर से किसी तरह की सुरक्षा किट उपलब्ध नहीं कराई गई है.

ये भी पढ़ें: केदारनाथ हाईवे पर नासूर बना बांसबाड़ा, अब तक 10 लोगों की लील चुका जिंदगी

आशाओं का आरोप है कि राज्य सरकार उनका उत्पीड़न कर रही है और कार्य का उचित मानदेय नहीं दे रही है. उनका कहना है कि अगर काम बढ़ा है तो उसी हिसाब से भुगतान भी मिलना चाहिए. आशाओं ने कहा कि आशाओं के सवालों पर सरकार विचार करना तो दूर आशाओं के ज्ञापनों का जवाब तक देना जरूरी नहीं समझती है. वहीं आशा कार्यकर्ताओं ने उपजिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को 11 सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन भेजा है.

बेरीनाग: मांगों को लेकर आशा कर्मियों ने प्रदर्शन कर कार्य बहिष्कार कर दिया है. आशा वर्कर्स ने पहले दिन कार्यबहिष्कार कर महिला अस्पताल के सामने धरना दिया.

दरअसल, जनपद में विभिन्न मांगों को लेकर आशा कार्यकत्रियां तीन दिवसीय हड़ताल शुरू हो गई है. आशा वर्कर्स ने न्यूनतम वेतन, स्थायीकरण, लॉकडाउन भत्ता, पेंशन, बीमा सुरक्षा और मुख्य सवालों को उठाते हुए तीन दिवसीय हड़ताल शुरू कर दिया है. आशा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि कोरोनाकाल के समय उनसे जरूरत से ज्यादा काम लिया गया. लेकिन इसका कोई भी मानदेय नहीं दिया गया.

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उनका आरोप है कि उत्तराखंड सरकार ने आशाओं का चयन केवल मातृ शिशु दर को कम करने के लिए किया था. लेकिन आशा वर्करों पर विभिन्न तरह के सर्वे और जानकारियां जुटाने का काम थोपा गया. कोरोनाकाल में आशाओं को घर-घर जाकर कोरोना मरीजों को चिन्हित करने काम और उनका स्वास्थ्य परीक्षण करने का काम भी सौंपा गया है. इसके लिए प्रशासन की ओर से किसी तरह की सुरक्षा किट उपलब्ध नहीं कराई गई है.

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आशाओं का आरोप है कि राज्य सरकार उनका उत्पीड़न कर रही है और कार्य का उचित मानदेय नहीं दे रही है. उनका कहना है कि अगर काम बढ़ा है तो उसी हिसाब से भुगतान भी मिलना चाहिए. आशाओं ने कहा कि आशाओं के सवालों पर सरकार विचार करना तो दूर आशाओं के ज्ञापनों का जवाब तक देना जरूरी नहीं समझती है. वहीं आशा कार्यकर्ताओं ने उपजिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को 11 सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन भेजा है.

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