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जंगल में ही बुझेगी वन्यजीवों की प्यास, वन विभाग ने बनाया ये खास प्लान

लैंसडौन वन प्रभाग के लालढांग और कोटद्वार रेंज पानी की दृष्टि से संवदेनशील क्षेत्र है. पानी की तलाश में जंगली जानवर आबादी का रुख ना करे इसके लिए वन विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी है. वन्यजीवों की प्यास बुझाने के लिए वन महकमा जंगलों में वाटर होल्स बनावा रहा है.

दिनों-दिन बढ़ रही गर्मी के कारण पानी के लिए संघर्ष करते वन्य जीव.
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Published : May 4, 2019, 2:47 PM IST

कोटद्वार: गर्मी का सीजन आते ही क्षेत्र में पानी की किल्लत शुरू हो जाती है. दिनों-दिन बढ़ रही गर्मी के कारण प्राकृतिक जल स्रोत भी सूखने लगे है. जिस कारण पानी की तलाश में जंगली जानवर आबादी का रुख कर रहे हैं. ऐसे में इंसानों और वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए वन विभाग ने भी अपनी कमर कस ली है. वन्यजीवों की प्यास बुझाने के लिए वन महकमे ने जंगलों में वाटर होल्स बनाने शुरू कर दिए हैं.

जानकारी देते डीएफओ वैभव कुमार.

बता दें कि लैंसडौन वन प्रभाग 43, 327 हेक्टेयर भूमि पर फैला है. जो लालढांग,कोटद्वार, कोटड़ी, दुगड्डा और लैंसडौन रेंजों से मिलकर बना है. इनमें से ज्यादातर वन रेंजों में नदियां हैं, जिनसे जानवर अपनी प्यास बुझा लेते है. लेकिन वन प्रभाग की लालढांग और कोटद्वार रेंज में रहने वाले वन्यजीव केवल प्राकृतिक जल स्रोतों पर ही निर्भर हैं. लेकिन भीषण गर्मी के चलते ये स्रोत भी सूख गए है. जिसके चलते अब जंगली जानवर पानी की तलाश में आबादी का रुख कर रहे है.

वहीं. इस मामले में लैंसडौन वन प्रभाग के डीएफओ वैभव कुमार ने बताया कि लैंसडौन वन प्रभाग के दुगड्डा, कोटड़ीऔर लैंसडौन रेंजों में पानी के लिए प्राकृतिक जल स्रोत और नदियां हैं. लेकिन लालढांग और कोटद्वार रेंज पानी की दृष्टि से संवदेनशील क्षेत्र है. पानी की तलाश में जंगली जानवर आबादी का रुख ना करे इसके लिए वन विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी है.

ये भी पढ़े: कॉर्बेट नेशनल पार्क में एक और बाघ की मौत, बिजरानी रेंज में मिला शव

जिसके चलते वन विभाग टाइगर प्रोजेक्ट एलीफेंट केंद्र पोषित योजनाओं के अंतर्गत जंगलों में वाटर होल बनाये जा रहे हैं. साथ ही प्राकृतिक स्रोतों को पुनर्जीवित भी किया जा रहा हैऔर जरुरत पड़ने पर टैंकरों से भी वाटर होल्स में पानी डाला जाएगा. ताकि जानवरों की पानी की जरुरत को पूरा किया जा सके.

कोटद्वार: गर्मी का सीजन आते ही क्षेत्र में पानी की किल्लत शुरू हो जाती है. दिनों-दिन बढ़ रही गर्मी के कारण प्राकृतिक जल स्रोत भी सूखने लगे है. जिस कारण पानी की तलाश में जंगली जानवर आबादी का रुख कर रहे हैं. ऐसे में इंसानों और वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए वन विभाग ने भी अपनी कमर कस ली है. वन्यजीवों की प्यास बुझाने के लिए वन महकमे ने जंगलों में वाटर होल्स बनाने शुरू कर दिए हैं.

जानकारी देते डीएफओ वैभव कुमार.

बता दें कि लैंसडौन वन प्रभाग 43, 327 हेक्टेयर भूमि पर फैला है. जो लालढांग,कोटद्वार, कोटड़ी, दुगड्डा और लैंसडौन रेंजों से मिलकर बना है. इनमें से ज्यादातर वन रेंजों में नदियां हैं, जिनसे जानवर अपनी प्यास बुझा लेते है. लेकिन वन प्रभाग की लालढांग और कोटद्वार रेंज में रहने वाले वन्यजीव केवल प्राकृतिक जल स्रोतों पर ही निर्भर हैं. लेकिन भीषण गर्मी के चलते ये स्रोत भी सूख गए है. जिसके चलते अब जंगली जानवर पानी की तलाश में आबादी का रुख कर रहे है.

वहीं. इस मामले में लैंसडौन वन प्रभाग के डीएफओ वैभव कुमार ने बताया कि लैंसडौन वन प्रभाग के दुगड्डा, कोटड़ीऔर लैंसडौन रेंजों में पानी के लिए प्राकृतिक जल स्रोत और नदियां हैं. लेकिन लालढांग और कोटद्वार रेंज पानी की दृष्टि से संवदेनशील क्षेत्र है. पानी की तलाश में जंगली जानवर आबादी का रुख ना करे इसके लिए वन विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी है.

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जिसके चलते वन विभाग टाइगर प्रोजेक्ट एलीफेंट केंद्र पोषित योजनाओं के अंतर्गत जंगलों में वाटर होल बनाये जा रहे हैं. साथ ही प्राकृतिक स्रोतों को पुनर्जीवित भी किया जा रहा हैऔर जरुरत पड़ने पर टैंकरों से भी वाटर होल्स में पानी डाला जाएगा. ताकि जानवरों की पानी की जरुरत को पूरा किया जा सके.

Intro:एंकर- कड़कड़ाती गर्मी से मनुष्य ही नहीं बल्कि जंगली जानवरों के हलक भी सूखने की लगे हैं, इन दिनों लैंसडौन वन प्रभाग के अंतर्गत आने वाले प्राकृतिक स्रोत गर्मी और आग लगने के कारण सूख चुके हैं जिस कारण लैंसडौन वन प्रभाग में विचरण करने वाले जंगली जानवर हाथी, गुलदार, टाइगर, चीतल भालू जैसे तमाम जंगली जानवर पानी के लिए इस दर-दर भटक रहे हैं वहीं वन विभाग के अधिकारियों ने जंगली जानवरो के पानी की सुविधा के लिए जगह जगह वाटरहाल और प्राकृतिक स्रोतों की खोज कर उनके आसपास वॉटर हाल बनाये है,


Body:वीओ1- बता दे कि लैंसडौन वन प्रभाग लालढांग, कोटद्वार, कोटडी, दुगड्डा और लैंसडौन रेंज पांच रेंजों और 43, 327 हेक्ट्रियर भूमि से व अधिकांस हिसा जिला बिजनोर से सट कर बना हुआ है, लैंसडौन वन प्रभाग की लालढांग और कोटद्वार रेज में गर्मियों के सीजन में पानी की किल्लत हो जाती है, जिसके चलते ही इन दोनों रेंजों के जंगली जानवर पानी की तलाश में कोसो दूर तक भटकते रहते है। बाकी रेंजों में पानी के लिये नदिया है, चिलचिलाती गर्मी के चलते हर साल सेकड़ो हेक्टियर भूमि वनाग्नि से जल कर राख हो जाता है, जिसके चलते है लैंसडौन वन प्रभाग में पानी के प्रकार्तिक स्रोत सूख गए है,
सरकार को इन प्रकार्तिक स्रोतों को रिचार्ज करवाने के लिये ठोस कदम उठाने चाहिये।


Conclusion:विओ2- वहीं लैंसडौन वन प्रभाग के डीएफओ वैभव कुमार का कहना है कि हमारे यहां पानी की दृष्टि से लालढांग कोटद्वार रेंज संवदेनशील है, बाकी दुगड्डा, कोटडी और लैंसडौन रेंजों में पानी के लिए प्राकृतिक स्रोत और नदिया है हमने प्रोजेक्ट टाइगर प्रोजेक्ट एलीफेंट के अंतर्गत केंद्र पोसित योजनाओं के अंतर्गत जंगलो में वॉटर हॉल बनाये जाते है प्राकृतिक स्रोतों की मरमत की जाती है जरूरत पड़ने पर टैंकरों से भी वाटर हॉलो में पानी डाला जाता है,गर्मी के सीजन को देखते हुए हमने जंगलो में वॉटर हॉलो की मरमत कर दी है जिससे कि उनमें हर समय पानी रह सके।
बाइट वैभव कुमार डीएफओ लैंसडौन
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