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एक ऐसा रहस्यमय मंदिर, जहां माता की मूर्ति दिन में तीन बार बदलती है अपना स्वरूप - एक ऐसा रहस्यमय मंदिर

श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मां धारी देवी का मंदिर, जहां हर दिन एक चमत्कार होता है. दरअसल, इस मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है. मूर्ति सुबह में एक कन्या की तरह दिखती है, फिर दोपहर में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला के रूप में नजर आती है.

Maa Dhari Devi
देवी की मूर्ति दिन में तीन बार बदलती है अपना रूप
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Published : Jun 6, 2022, 5:02 AM IST

Updated : Jun 6, 2022, 3:44 PM IST

श्रीनगर: उत्तराखंड को देवताओं की भूमि यानी देवभूमि के रूप के रूप में विश्वभर में जाना जाता है. कहा जाता है कि उत्तराखंड के कण-कण में भगवान का वास है. विश्व प्रसिद्ध चारधाम (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गगोत्री और यमनोत्री) भी उत्तराखंड में ही मौजूद हैं. कहा जाता है कि इन चारों धामों की रक्षा मां धारी देवी करती हैं. मान्यता है कि मां धारी देवी की मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं.

धारी देवी की मूर्ति प्रातः काल श्रद्धालुओं को एक छोटी बच्ची के रूप में दिखाई देती हैं. दोपहर में मां का रूप एक महिला का हो जाता है. शाम के समय मां एक बुजुर्ग रूप में भक्तों को अपने दर्शन देती हैं. मां धारी देवी मंदिर के इतिहास द्वापर काल से बताया जाता है. कुछ ताम्र पत्रों में कहा गया है कि मां भगवती धारी देवी की पूजा अर्चना करने के बाद पांडव स्वर्गारोहण के लिए गए थे, यहां उन्होंने पूजा अर्चना की थी, जिसका सबूत यहां द्रौपदी शिला के रूप में यहां विद्यमान था. लेकिन बाढ़ के आने के कारण वो शिला नदी की बाढ़ में बह गई.

देवी की मूर्ति दिन में तीन बार बदलती है अपना रूप

जगतगुरु शंकराचार्य ने भी यहां आकर पूजा-अर्चना की थी. एक कहानी ये भी है कि मां धारी देवी की मूर्ति यहां बह कर आई थी, जो यही पर नदी में समाई हुई थी. लेकिन धारी गांव के रहने वाले एक व्यक्ति के स्वप्न्न में आकर भगवती ने उन्हें उस स्थान का पता दिया और उन्हें स्थापित करने को कहा. उनकी बात को मानते हुए नोरतु नाम के उस व्यक्ति ने मां की मूर्ति को नदी से बाहर निकाला. मूर्ति की पूजा-अर्चना की. ये स्थान धारी गांव के निकट था, जिसके कारण मां को धारी देवी नाम से जाना जाने लगा.

मंदिर के मुख्य पुजारी लक्ष्मी प्रसाद पांडे बताते है कि मां का नाम वैसे कल्याणी था. लेकिन धारी गांव में मंदिर होने के कारण मां को धारी देवी कहा गया, जबकि मंदिर के नजदीक के स्थान को कल्यासोड़ कहा गया. मंदिर के बारे में लोगों का ये भी मानना है कि 2013 में आए केदारनाथ की आपदा मां के प्रकोप के कारण ही आई.
पढ़ें- श्रीनगर: 10 दिन के अंदर मंदिर समिति को हैंडओवर होगा धारी देवी मंदिर

दरअसल, श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के कारण जब मंदिर नदी में डूबने लगा, तो मां की मूर्ति को एक क्रेन की मदद से मंदिर से बाहर निकाला गया. मूर्ति के बाहर आने के बाद उस क्रेन में भी आग लग गयी. मंदिर पूरी तरह से नदी में समा गया और केदरानाथ में भयंकर बाढ़ भी आ गयी.

मां भगवती धारी देवी में मंदिर में साल भर श्रद्धालु दूर-दराज से यहां पहुंचते हैं. बैंगलोर से आये गणेश का कहना था कि वे मां के दर्शन करने के लिए अपने परिवार के साथ यहां आए हैं. उन्होंने सुना था कि मां धारी देवी चारों धामों की रक्षक देवी है. उन्होंने बताया कि उन्होंने सभी की यात्रा सुरक्षित हो इसकी कामना की है.

श्रीनगर: उत्तराखंड को देवताओं की भूमि यानी देवभूमि के रूप के रूप में विश्वभर में जाना जाता है. कहा जाता है कि उत्तराखंड के कण-कण में भगवान का वास है. विश्व प्रसिद्ध चारधाम (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गगोत्री और यमनोत्री) भी उत्तराखंड में ही मौजूद हैं. कहा जाता है कि इन चारों धामों की रक्षा मां धारी देवी करती हैं. मान्यता है कि मां धारी देवी की मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं.

धारी देवी की मूर्ति प्रातः काल श्रद्धालुओं को एक छोटी बच्ची के रूप में दिखाई देती हैं. दोपहर में मां का रूप एक महिला का हो जाता है. शाम के समय मां एक बुजुर्ग रूप में भक्तों को अपने दर्शन देती हैं. मां धारी देवी मंदिर के इतिहास द्वापर काल से बताया जाता है. कुछ ताम्र पत्रों में कहा गया है कि मां भगवती धारी देवी की पूजा अर्चना करने के बाद पांडव स्वर्गारोहण के लिए गए थे, यहां उन्होंने पूजा अर्चना की थी, जिसका सबूत यहां द्रौपदी शिला के रूप में यहां विद्यमान था. लेकिन बाढ़ के आने के कारण वो शिला नदी की बाढ़ में बह गई.

देवी की मूर्ति दिन में तीन बार बदलती है अपना रूप

जगतगुरु शंकराचार्य ने भी यहां आकर पूजा-अर्चना की थी. एक कहानी ये भी है कि मां धारी देवी की मूर्ति यहां बह कर आई थी, जो यही पर नदी में समाई हुई थी. लेकिन धारी गांव के रहने वाले एक व्यक्ति के स्वप्न्न में आकर भगवती ने उन्हें उस स्थान का पता दिया और उन्हें स्थापित करने को कहा. उनकी बात को मानते हुए नोरतु नाम के उस व्यक्ति ने मां की मूर्ति को नदी से बाहर निकाला. मूर्ति की पूजा-अर्चना की. ये स्थान धारी गांव के निकट था, जिसके कारण मां को धारी देवी नाम से जाना जाने लगा.

मंदिर के मुख्य पुजारी लक्ष्मी प्रसाद पांडे बताते है कि मां का नाम वैसे कल्याणी था. लेकिन धारी गांव में मंदिर होने के कारण मां को धारी देवी कहा गया, जबकि मंदिर के नजदीक के स्थान को कल्यासोड़ कहा गया. मंदिर के बारे में लोगों का ये भी मानना है कि 2013 में आए केदारनाथ की आपदा मां के प्रकोप के कारण ही आई.
पढ़ें- श्रीनगर: 10 दिन के अंदर मंदिर समिति को हैंडओवर होगा धारी देवी मंदिर

दरअसल, श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के कारण जब मंदिर नदी में डूबने लगा, तो मां की मूर्ति को एक क्रेन की मदद से मंदिर से बाहर निकाला गया. मूर्ति के बाहर आने के बाद उस क्रेन में भी आग लग गयी. मंदिर पूरी तरह से नदी में समा गया और केदरानाथ में भयंकर बाढ़ भी आ गयी.

मां भगवती धारी देवी में मंदिर में साल भर श्रद्धालु दूर-दराज से यहां पहुंचते हैं. बैंगलोर से आये गणेश का कहना था कि वे मां के दर्शन करने के लिए अपने परिवार के साथ यहां आए हैं. उन्होंने सुना था कि मां धारी देवी चारों धामों की रक्षक देवी है. उन्होंने बताया कि उन्होंने सभी की यात्रा सुरक्षित हो इसकी कामना की है.

Last Updated : Jun 6, 2022, 3:44 PM IST
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