श्रीनगरः प्राचीन कमलेश्वर मंदिर में आयोजित होने वाली बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा की तैयारियां शुरू हो गई हैं. मंदिर प्रशासन मंदिर को सजाने और संवारने में जुटा हुआ है. इस मंदिर में खड़ा दीया अनुष्ठान किया जाता है. जो बेहद खास होता है. माना जाता है कि यहां जो भी निसंतान दंपति खड़ा दीया लेकर पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें संतान की प्राप्ति होती है. इस बार इसका आयोजन आगामी 17 नवंबर को यानी बैकुंठ चतुर्दशी के दिन किया जाएगा.
प्राचीन कमलेश्वर मंदिर में आयोजित होने वाले खड़ा दीया अनुष्ठान के लिए देशभर से अभी तक 90 निसंतान दंपतियों ने रजिस्ट्रेशन करवा दिया है. बीते साल कोरोना महामारी के चलते इसके भव्य आयोजन पर रोक लगी थी, लेकिन इस साल आयोजित होने वाले अनुष्ठान में ढील रहेगी. हालांकि, श्रद्धालुओं को दो गज की दूरी का पालन करना अनिवार्य होगा. मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने बताया कि इस साल 17 नवंबर को खड़े दीपक का आयोजन किया जा रहा है. जिसे लेकर रजिस्ट्रेशन शुरू हो गए हैं.
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मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन जो भी निसंतान दंपति सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करता है, उसे संतान की प्राप्ति होती है. इस दौरान निसंतान दंपति खड़े दीपक का अनुष्ठान करते हैं, उन्हें मन चाहा फल मिलता है. इस पूजा में रात भर दंपतियों को हाथ में जलता हुआ दीया रख कर भगवान शिव की पूजा करनी होती है. जिसे खड़े दीये का अनुष्ठान कहा जाता है.
भगवान विष्णु ने की थी शिव का आराधनाः मान्यता है कि भगवान विष्णु ने सुर्दशन चक्र की प्राप्ति के लिए कमलेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना की थी. इस दौरान व्रत के अनुसार भगवान विष्णु ने 100 कमलों को शिव आराधना के दौरान शिव लिंग मे चढ़ाना था, लेकिन तब भगवान शिव ने भक्ति की परीक्षा लेने के लिए 99 कमलों के बाद एक कमल छुपा दिया. जिसके बाद कमल अर्पण करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने नेत्र को चढ़ा दिया. जिसके बाद से ही भगवान विष्णु के नेत्रों को कमलनयन कहा जाता है.
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निसंतान दंपति ने देखी थी भगवान विष्णु की साधनाः भगवान विष्णु की भक्ति से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें सुर्दशन चक्र प्रदान किया था. तब भगवान विष्णु की इस पूजा को एक निसंतान दंपति भी देख रहा था. जिसके बाद उन्होंने भी इस विधि-विधान से भगवान की पूजा अर्चना की. जिसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्रप्ति हुई.
बड़ी संख्या में कमलेश्वर मंदिर पहुंचते हैं श्रद्धालुः एक और मान्यता के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम ने ब्रह्महत्या के पाप से बचने के लिए भगवान शिव की पूजा अर्चना की. जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली. द्वापर युग मे भगवान कृष्ण ने जामवंती के कहने पर कमलेश्वर मंदिर में 'खड़े दीये' का अनुष्ठान किया. जिसके बाद उन्हें स्वाम नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई. आज भी कलयुग में श्रद्धालु इन मान्यताओं को मानते हैं.