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9 नवंबर को होगा लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग का लोकार्पण! बरसों पुराना सपना होगा पूरा

उत्तराखंड में कंडी मार्ग का इतिहास करीब 200 साल पुराना है. इसके लिए क्षेत्र की जनता ने कई बार आंदोलन भी किए. आखिरकार अब उनका ये सपना पूरा होने जा रहा है. कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि हर हाल में राज्य स्थापना दिवस (9 नवंबर) को लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग का लोकार्पण किया जाएगा.

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Kandi Marg news
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Published : Sep 21, 2021, 5:43 PM IST

कोटद्वार: कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के लोगों का बरसों पुराना सपना साकार होने जा रहा है. सब कुछ सही रहा तो इसी साल राज्य स्थापना दिवस (09 नवंबर) को लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग का लोकार्पण किया जाएगा. उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने इसको लेकर खुद अधिकारियों को निर्देश भी दिए.

कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने मंगलवार को डीएफओ लैंसडाउन और लोक निर्माण विभाग दुगड्डा खंड के अधिशासी अभियंता के साथ लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग का दौरा किया. इस दौरान उन्होंने दोनों अधिकारियों को निर्देश दिए है कि सिगडड़ी स्रोत नदी पर बनने वाले पुल का निर्माण कार्य जल्द शुरू करवा दें. ताकि सड़क के निर्माण कार्य में तेजी लाए जा सकें. किसी भी हालत में राज्य स्थापना दिवस 9 नवंबर को मार्ग का लोकार्पण कर राज्य की जनता को समर्पित करना है.

पढ़ें- भारत-चीन सीमा को जोड़ने वाले 'SUPER' ब्रिज का निर्माण शुरू, BRTF कैप्टन ने दी थी शहादत

बता दें कि लगभग 9 करोड़ की लागत से बन रहे लालढांग-चिल्लरखाल वन मोटर मार्ग का निर्माण कार्य इन दिनों जोर-शोर से चल रहा है. इसके लिए पूर्व में राज्य योजना के तहत 6.13 करोड़ जारी हो चुके हैं. मंगलवार को वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों और लैंसडाउन वन प्रभाग के डीएफओ के साथ दौरा कर निर्माण कार्यों का जायजा लिया.

वहीं इस दौरान वन मंत्री हरक सिंह रावत ने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों और डीएफओ लैंसडाउन को सख्त निर्देश दिए कि वह निर्माण कार्य में तेजी लाए. किसी भी दशा में सड़क का निर्माण कार्य रुकना नहीं चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि 9 नवंबर राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर इस मार्ग का लोकार्पण कर इस मार्ग को जनता को समर्पित करना है.

बरसों पुरानी मांग होगी पूरी: लंबे समय से उठ रही है मांग गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार को हरिद्वार-देहरादून सहित देश-प्रदेश के दूसरे हिस्सों से जोड़ने के लिए चिलरखाल-लालढांग रोड (कंडी रोड) के निर्माण की मांग बहुत ही लंबे समय से उठाई जाती रही है. इसके लिए क्षेत्र की जनता ने कई बार आंदोलन भी किए. जनता की इस मांग पर भाजपा सरकार ने इस मोटरमार्ग का निर्माण करने की कवायद भी शुरू कर दी थी, लेकिन सख्त वन कानून का अड़ंगा लग जाने से इसका निर्माण अधर में लटक गया था. हालांकि अब ये सपना जल्द ही पूरा होने वाला है.

पढ़ें- सैलानी ध्यान दें: 1 अक्टूबर से कॉर्बेट पार्क में नाइट स्टे के लिए ऑनलाइन बुकिंग शुरू

कहां फंसा था पेच: दरअसल, कंडी मार्ग को राष्ट्रीय बोर्ड ने 56वीं बैठक में अनुमति दी थी, लेकिन इसमें दो शर्तें रखी थी. एक शर्त यह थी कि 710 मीटर की एलिवेटेड रोड होगी, जिसकी ऊंचाई आठ मीटर होनी चाहिए. इस पर राज्य सरकार सहमत नहीं थी. राज्य सरकार का तर्क था कि चूंकि यह राष्ट्रीय राजमार्ग नहीं है तो यहां एनएच की गाइडलाइन क्यों थोपी जा रही हैं. लिहाजा, राज्य सरकार लगातार इस बात पर जोर दे रही थी कि ऊंचाई छह मीटर हो और एलिवेटेड रोड की लंबाई 470 मीटर ही हो. हालांकि बाद में इस प्रस्ताव को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने पास कर दिया था.

यूपी जाने के झंझट से मिलेगी निजात: यह सड़क कोटद्वार भाबर ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है. इस सड़क के बनने से प्रदेश की जनता को कुमाऊं से देहरादून और देहरादून से कुमाऊं जाने के लिए उत्तर प्रदेश की सड़कों का सहारा नहीं लेना पड़ेगा.

कोरोना काल में ज्यादा काम आया ये रास्ता: कोरोना काल में इस सड़क का महत्व अधिक बढ़ गया है. यह मार्ग पौड़ी जिले के कोटद्वार समत अन्य स्थानों से मरीजों को चिकित्सा सुविधा के लिए ऋषिकेश व देहरादून आने-जाने के लिए सबसे सुगम है. इसके निर्माण से जहां उत्तर प्रदेश से होकर आने-जाने के झंझट से निजात मिलेगी, वहीं धन और समय की बचत भी होगी.

200 साल पुराना इतिहास है कंडी मार्ग का: उत्तराखंड में कंडी मार्ग का इतिहास करीब 200 साल पुराना है. उत्तर प्रदेश के वक्त में भी इसी मार्ग से हिल अलाउंस के लिए कर्मचारियों की पहाड़ और मैदान की श्रेणी का विभाजन होता था. असल में टनकपुर ब्रह्मदेव मंडी से कोटद्वार तक जाने वाला मार्ग लगभग दो सौ साल पुराना है. ब्रिटिश सरकार इसे सब माउंटेन सड़क के नाम से पुकारती थी. उत्तरप्रदेश के समय पहाड़ और मैदान की सीमा रेखा को इसी से तय किया जाता था. यानी उस समय सड़क के उत्तरी भाग में काम करने वाले सरकारी मुलाजिमों को यूपी सरकार हिल एनाउंस दिया करती थी.

कोटद्वार: कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के लोगों का बरसों पुराना सपना साकार होने जा रहा है. सब कुछ सही रहा तो इसी साल राज्य स्थापना दिवस (09 नवंबर) को लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग का लोकार्पण किया जाएगा. उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने इसको लेकर खुद अधिकारियों को निर्देश भी दिए.

कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने मंगलवार को डीएफओ लैंसडाउन और लोक निर्माण विभाग दुगड्डा खंड के अधिशासी अभियंता के साथ लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग का दौरा किया. इस दौरान उन्होंने दोनों अधिकारियों को निर्देश दिए है कि सिगडड़ी स्रोत नदी पर बनने वाले पुल का निर्माण कार्य जल्द शुरू करवा दें. ताकि सड़क के निर्माण कार्य में तेजी लाए जा सकें. किसी भी हालत में राज्य स्थापना दिवस 9 नवंबर को मार्ग का लोकार्पण कर राज्य की जनता को समर्पित करना है.

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बता दें कि लगभग 9 करोड़ की लागत से बन रहे लालढांग-चिल्लरखाल वन मोटर मार्ग का निर्माण कार्य इन दिनों जोर-शोर से चल रहा है. इसके लिए पूर्व में राज्य योजना के तहत 6.13 करोड़ जारी हो चुके हैं. मंगलवार को वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों और लैंसडाउन वन प्रभाग के डीएफओ के साथ दौरा कर निर्माण कार्यों का जायजा लिया.

वहीं इस दौरान वन मंत्री हरक सिंह रावत ने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों और डीएफओ लैंसडाउन को सख्त निर्देश दिए कि वह निर्माण कार्य में तेजी लाए. किसी भी दशा में सड़क का निर्माण कार्य रुकना नहीं चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि 9 नवंबर राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर इस मार्ग का लोकार्पण कर इस मार्ग को जनता को समर्पित करना है.

बरसों पुरानी मांग होगी पूरी: लंबे समय से उठ रही है मांग गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार को हरिद्वार-देहरादून सहित देश-प्रदेश के दूसरे हिस्सों से जोड़ने के लिए चिलरखाल-लालढांग रोड (कंडी रोड) के निर्माण की मांग बहुत ही लंबे समय से उठाई जाती रही है. इसके लिए क्षेत्र की जनता ने कई बार आंदोलन भी किए. जनता की इस मांग पर भाजपा सरकार ने इस मोटरमार्ग का निर्माण करने की कवायद भी शुरू कर दी थी, लेकिन सख्त वन कानून का अड़ंगा लग जाने से इसका निर्माण अधर में लटक गया था. हालांकि अब ये सपना जल्द ही पूरा होने वाला है.

पढ़ें- सैलानी ध्यान दें: 1 अक्टूबर से कॉर्बेट पार्क में नाइट स्टे के लिए ऑनलाइन बुकिंग शुरू

कहां फंसा था पेच: दरअसल, कंडी मार्ग को राष्ट्रीय बोर्ड ने 56वीं बैठक में अनुमति दी थी, लेकिन इसमें दो शर्तें रखी थी. एक शर्त यह थी कि 710 मीटर की एलिवेटेड रोड होगी, जिसकी ऊंचाई आठ मीटर होनी चाहिए. इस पर राज्य सरकार सहमत नहीं थी. राज्य सरकार का तर्क था कि चूंकि यह राष्ट्रीय राजमार्ग नहीं है तो यहां एनएच की गाइडलाइन क्यों थोपी जा रही हैं. लिहाजा, राज्य सरकार लगातार इस बात पर जोर दे रही थी कि ऊंचाई छह मीटर हो और एलिवेटेड रोड की लंबाई 470 मीटर ही हो. हालांकि बाद में इस प्रस्ताव को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने पास कर दिया था.

यूपी जाने के झंझट से मिलेगी निजात: यह सड़क कोटद्वार भाबर ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है. इस सड़क के बनने से प्रदेश की जनता को कुमाऊं से देहरादून और देहरादून से कुमाऊं जाने के लिए उत्तर प्रदेश की सड़कों का सहारा नहीं लेना पड़ेगा.

कोरोना काल में ज्यादा काम आया ये रास्ता: कोरोना काल में इस सड़क का महत्व अधिक बढ़ गया है. यह मार्ग पौड़ी जिले के कोटद्वार समत अन्य स्थानों से मरीजों को चिकित्सा सुविधा के लिए ऋषिकेश व देहरादून आने-जाने के लिए सबसे सुगम है. इसके निर्माण से जहां उत्तर प्रदेश से होकर आने-जाने के झंझट से निजात मिलेगी, वहीं धन और समय की बचत भी होगी.

200 साल पुराना इतिहास है कंडी मार्ग का: उत्तराखंड में कंडी मार्ग का इतिहास करीब 200 साल पुराना है. उत्तर प्रदेश के वक्त में भी इसी मार्ग से हिल अलाउंस के लिए कर्मचारियों की पहाड़ और मैदान की श्रेणी का विभाजन होता था. असल में टनकपुर ब्रह्मदेव मंडी से कोटद्वार तक जाने वाला मार्ग लगभग दो सौ साल पुराना है. ब्रिटिश सरकार इसे सब माउंटेन सड़क के नाम से पुकारती थी. उत्तरप्रदेश के समय पहाड़ और मैदान की सीमा रेखा को इसी से तय किया जाता था. यानी उस समय सड़क के उत्तरी भाग में काम करने वाले सरकारी मुलाजिमों को यूपी सरकार हिल एनाउंस दिया करती थी.

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