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विश्व रेबीज दिवस आज, जानिए रोकथाम के उपाए - Rabies prevention measures

जानवरों के काटने से मानव में रेबीज वायरस फैलता है. अगर समय रहते इसका इलाज नहीं किया जाए तो व्यक्ति की मौत भी हो सकती है. आज विश्व रेबीज दिवस है. जानिए रेबीज वायरस और इसकी रोकथाम के बारे में.

विश्व रेबीज दिवस
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Published : Sep 28, 2020, 11:17 AM IST

Updated : Sep 28, 2020, 2:49 PM IST

श्रीनगर: आज विश्व रेबीज दिवस है. रेबीज की रोकथाम के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष 28 सितंबर को रेबीज डे मनाया जाता है. ये दिवस फ्रांस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पास्चर की पुण्य तिथि के तौर पर भी लोगों को याद रहता है.

बात अगर श्रीनगर की करें तो यहां प्रतिमाह करीब 35 से 40 लोग बंदरों, कुत्तों और जंगली सुअरों के काटने की वजह से अस्पताल आते हैं, जिनको रेबीज के टीके लगाए जाते हैं. कई बार किसी जानवर के काटने पर बरती गई लापरवाही के कारण व्यक्ति की रेबीज से मौत भी हो सकती है.

रेबीज की रोकथाम के बारे में जानकारी

ये भी पढ़ें: बाल-बाल बचीं जज साहिबा, भरभरा कर गिरा सिविल कोर्ट की छत का प्लास्टर

श्रीनगर संयुक्त अस्पताल के एमएस और वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. डीपी चौहान बताते हैं कि श्रीनगर में वे हर माह 35 से 40 लोगों को देखते हैं, जिन्हें कोई ना कोई जानवर काट लेता है. उन्होंने बताया कि ऐसी परिस्थिति में मरीज को तुरंत अस्पताल आना चाहिए, वरना मरीज को रेबीज होने की आशंका होती है और इससे उसकी मौत भी हो सकती है. संयुक्त अस्पताल में जानवरों द्वारा काटे गए मरीजों को समय-समय पर रेबीज की वैक्सीन लगाई जाती है. ऐसा तब होता है, जब काटे गए जानवर की मौत हो जाती है. अमूमन रेबीज वाले जानवर काटने के बाद मर जाते हैं. इससे अनुमान लगता है कि जानवर रेबीज से पीड़ित था.

रेबीज एक विषाणु जनित रोग है. ये पूरी तरह से रोकथाम योग्य विषाणु है. ये रोग जानवरों के काटने से मनुष्य में फैलता है. ये अधिकतर कुत्ते के काटने से ही होता है. मनुष्य के शरीर में यह वायरस रेबीज से पीड़ित जानवर के काटने, उससे होने वाले घाव को खरोंचने एवं लार के प्रवेश से होता है. अमूमन इसके लक्षण एक से तीन माह के बीच दिखाई पड़ते हैं.

श्रीनगर: आज विश्व रेबीज दिवस है. रेबीज की रोकथाम के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष 28 सितंबर को रेबीज डे मनाया जाता है. ये दिवस फ्रांस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पास्चर की पुण्य तिथि के तौर पर भी लोगों को याद रहता है.

बात अगर श्रीनगर की करें तो यहां प्रतिमाह करीब 35 से 40 लोग बंदरों, कुत्तों और जंगली सुअरों के काटने की वजह से अस्पताल आते हैं, जिनको रेबीज के टीके लगाए जाते हैं. कई बार किसी जानवर के काटने पर बरती गई लापरवाही के कारण व्यक्ति की रेबीज से मौत भी हो सकती है.

रेबीज की रोकथाम के बारे में जानकारी

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श्रीनगर संयुक्त अस्पताल के एमएस और वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. डीपी चौहान बताते हैं कि श्रीनगर में वे हर माह 35 से 40 लोगों को देखते हैं, जिन्हें कोई ना कोई जानवर काट लेता है. उन्होंने बताया कि ऐसी परिस्थिति में मरीज को तुरंत अस्पताल आना चाहिए, वरना मरीज को रेबीज होने की आशंका होती है और इससे उसकी मौत भी हो सकती है. संयुक्त अस्पताल में जानवरों द्वारा काटे गए मरीजों को समय-समय पर रेबीज की वैक्सीन लगाई जाती है. ऐसा तब होता है, जब काटे गए जानवर की मौत हो जाती है. अमूमन रेबीज वाले जानवर काटने के बाद मर जाते हैं. इससे अनुमान लगता है कि जानवर रेबीज से पीड़ित था.

रेबीज एक विषाणु जनित रोग है. ये पूरी तरह से रोकथाम योग्य विषाणु है. ये रोग जानवरों के काटने से मनुष्य में फैलता है. ये अधिकतर कुत्ते के काटने से ही होता है. मनुष्य के शरीर में यह वायरस रेबीज से पीड़ित जानवर के काटने, उससे होने वाले घाव को खरोंचने एवं लार के प्रवेश से होता है. अमूमन इसके लक्षण एक से तीन माह के बीच दिखाई पड़ते हैं.

Last Updated : Sep 28, 2020, 2:49 PM IST
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